Bye-Bye 2020: कोर्ट के चक्कर लगाती रही बसपा, माकपा और AAP अपनी राजनीतिक जमीन तलाशती रही

मायावती की पार्टी बसपा ने पंचायतीराज चुनाव और निकाय चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारे लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी. (फाइल फोटो)
Bye-Bye 2020: इस वर्ष बसपा, माकपा और आम आदमी पार्टी (BSP, CPI & AAP) प्रदेश की राजनीति में कोई बड़ी भूमिका नहीं निभा पाई. बसपा जहां कोर्ट (Court) के चक्कर लगाती रही वहीं माकपा और आप अपनी राजनीतिक जमीन (political land) तलाशती रही.
- News18 Rajasthan
- Last Updated: December 31, 2020, 3:10 PM IST
जयपुर. दो साल पहले विधानसभा चुनाव में 6 सीटें जीतकर प्रदेश में उभरी मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) वर्ष 2020 में राजस्थान में बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर पाई. गत बसपा के सभी 6 विधायकों ने पार्टी का दामन छोड़कर कांग्रेस (Congress) का हाथ थाम लिया था. इस प्रकरण के बाद पार्टी में मचे गदर के कारण बचीखुची साख को भी बट्टा लग गया था. इस वर्ष बसपा अपने बागी विधायकों के अधिकारों पर रोक लगवाने के लिये हाई कोर्ट के चक्कर लगाती रही, लेकिन कुछ कर नहीं पाई. वहीं माकपा (CPI) भी इस साल कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर पाई. विधानसभा में 2 सीटों पर काबिज माकपा में राज्यसभा चुनाव के समय बिखराव देखने को मिला. दूसरी ओर आम आदमी पार्टी (AAP) पूरे साल संगठन को मजबूत करने की बात करती रही लेकिन किया कुछ भी नहीं.
बहुजन समाज पार्टी भी साल 2020 में राजनीतिक उठापटक की वजह से सुर्खियों में रही. वर्ष 2019 में अपने सभी 6 विधायक कांग्रेस के हाथों गंवा चुकी बसपा साल 2020 में कांग्रेस को घेरने के प्रयास में लगी रही लेकिन सफलता हाथ नहीं लग सकी. राज्यसभा चुनाव में पार्टी ने कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों को वोटिंग के अधिकार से रुकवाने का प्रयास किया और मामले को लेकर हाईकोर्ट भी पहुंची लेकिन नतीजा सिफर रहा. इसी तरह सियासी संकट के दौरान भी पार्टी विश्वास मत के दौरान बागी विधायकों को वोटिंग से रुकवाने के लिए हाईकोर्ट पहुंची. उधर पार्टी सुप्रीमो मायावती ने कोटा के जेके लॉन अस्पताल में बच्चों की मौत और सियासी संकट जैसे मामलों को लेकर बार-बार कांग्रेस को आड़े हाथ लिया. पार्टी ने पंचायतीराज चुनाव और निकाय चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारे लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में आया बिखराव
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी साल 2020 में अपने विधायक बलवान पूनिया के रूख की वजह से सुर्खियों में रही. राज्यसभा चुनाव में पार्टी ने किसी भी दल के पक्ष में मतदान नहीं करने का निर्णय लिया था. लेकिन पार्टी विधायक बलवान पूनिया कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने पहुंच गए. पार्टी ने इसके लिए बलवान पूनिया को एक साल के लिए पार्टी से निष्कासित भी किया. इसके बावजूद बलवान पूनिया पार्टी लाइन पर नहीं चले और सियासी संकट के दौरान मुख्यमंत्री निवास पर हुई विधायक दल की बैठक में शामिल हुए. प्रदेश में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी साल 2020 में धरने-प्रदर्शनों में तो खूब सक्रिय रही लेकिन पंचायतीराज चुनाव और नगर निकाय चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन ज्यादा अच्छा नहीं रहा.आम आदमी पार्टी को नहीं मिला जनता का साथ
आम आदमी पार्टी वर्ष 2020 में प्रदेश में कुछ खास नहीं कर पाई. पार्टी ने जनता से जुड़े मुद्दे उठाकर अपनी जमीनी पैठ बनाने की कोशिश की लेकिन ज्यादा कामयाबी हासिल नहीं हो पाई. नगर निकाय चुनाव में पार्टी को अपना सिम्बल नहीं मिला जिसके चलते पार्टी की जमीनी पैठ का सही तरीके से आकलन ही नहीं हो सका. पार्टी को संगठनात्मक नियुक्तियों का भी इंतजार रहा. रामपाल जाट के पार्टी प्रदेशाध्यक्ष पद से इस्तीफा दिए जाने के बाद पार्टी साल 2020 में बिना अध्यक्ष के ही रही. राज्य में पार्टी दिल्ली के कामकाज की ही दुहाई देती नजर आई और पार्टी का खुद का कोई खास दबदबा नजर नहीं आया.
बहुजन समाज पार्टी भी साल 2020 में राजनीतिक उठापटक की वजह से सुर्खियों में रही. वर्ष 2019 में अपने सभी 6 विधायक कांग्रेस के हाथों गंवा चुकी बसपा साल 2020 में कांग्रेस को घेरने के प्रयास में लगी रही लेकिन सफलता हाथ नहीं लग सकी. राज्यसभा चुनाव में पार्टी ने कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों को वोटिंग के अधिकार से रुकवाने का प्रयास किया और मामले को लेकर हाईकोर्ट भी पहुंची लेकिन नतीजा सिफर रहा. इसी तरह सियासी संकट के दौरान भी पार्टी विश्वास मत के दौरान बागी विधायकों को वोटिंग से रुकवाने के लिए हाईकोर्ट पहुंची. उधर पार्टी सुप्रीमो मायावती ने कोटा के जेके लॉन अस्पताल में बच्चों की मौत और सियासी संकट जैसे मामलों को लेकर बार-बार कांग्रेस को आड़े हाथ लिया. पार्टी ने पंचायतीराज चुनाव और निकाय चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारे लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में आया बिखराव
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी साल 2020 में अपने विधायक बलवान पूनिया के रूख की वजह से सुर्खियों में रही. राज्यसभा चुनाव में पार्टी ने किसी भी दल के पक्ष में मतदान नहीं करने का निर्णय लिया था. लेकिन पार्टी विधायक बलवान पूनिया कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने पहुंच गए. पार्टी ने इसके लिए बलवान पूनिया को एक साल के लिए पार्टी से निष्कासित भी किया. इसके बावजूद बलवान पूनिया पार्टी लाइन पर नहीं चले और सियासी संकट के दौरान मुख्यमंत्री निवास पर हुई विधायक दल की बैठक में शामिल हुए. प्रदेश में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी साल 2020 में धरने-प्रदर्शनों में तो खूब सक्रिय रही लेकिन पंचायतीराज चुनाव और नगर निकाय चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन ज्यादा अच्छा नहीं रहा.आम आदमी पार्टी को नहीं मिला जनता का साथ
आम आदमी पार्टी वर्ष 2020 में प्रदेश में कुछ खास नहीं कर पाई. पार्टी ने जनता से जुड़े मुद्दे उठाकर अपनी जमीनी पैठ बनाने की कोशिश की लेकिन ज्यादा कामयाबी हासिल नहीं हो पाई. नगर निकाय चुनाव में पार्टी को अपना सिम्बल नहीं मिला जिसके चलते पार्टी की जमीनी पैठ का सही तरीके से आकलन ही नहीं हो सका. पार्टी को संगठनात्मक नियुक्तियों का भी इंतजार रहा. रामपाल जाट के पार्टी प्रदेशाध्यक्ष पद से इस्तीफा दिए जाने के बाद पार्टी साल 2020 में बिना अध्यक्ष के ही रही. राज्य में पार्टी दिल्ली के कामकाज की ही दुहाई देती नजर आई और पार्टी का खुद का कोई खास दबदबा नजर नहीं आया.