Rajasthan: प्रदेश कांग्रेस संगठन में कलह की नई कहानी, विधायक हावी हुये तो उठने लगे सवाल

विधायक आधारित सत्ता संगठन के सिस्टम पर खूब सवाल उठ रहे हैं और एक बड़ा खेमा इसके खिलाफ है.
प्रदेश कांग्रेस (Congress) में इन दिनों ने एक नई कलह देखने को मिल रही है. संगठन पदाधिकारियों के अभाव में पार्टी में विधायक और विधायक उम्मीदवारों का दबादबा बढ़ता जा रहा है. इस पर पार्टी के भीतर सवाल (Question) उठ रहे हैं.
- News18 Rajasthan
- Last Updated: November 25, 2020, 7:29 AM IST
जयपुर. कांग्रेस (congress) में आंतरिक कलह की नई कहानी सामने आने लगी है. कांग्रेस में विधायकों का दबदबा (MLA's dominance) लगातार बढ़ता ही जा रहा है. इसके पीछे चुनावी राजनीति (Electoral politics) एक बड़ा कारण बताया जा रहा है. चुनाव नहीं लड़ने वाले नेता और कार्यकर्ता विधायकों की राय को जरूरत से ज्यादा तरजीह मिलने पर सवाल भी उठा रहे हैं. नेताओं के इस वर्ग का तर्क है कि संगठन पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को भी बराबर तवज्जो मिलनी चाहिए. कांग्रेस के इस विधायक आधारित सिस्टम पर अब सवाल भी उठने लगे हैं.
सचिन पायलट खेमे की बगावत और फिर सुलह के बाद तो विधायकों का सत्ता संगठन में दबदबा और बढ़ गया है. कांग्रेस में फिलहाल 14 जुलाई के बाद से कोई पदाधिकारी नहीं है. ऐसे हालात में विधायक और विधायक का चुनाव हारे हुए उम्मीदवार ही संगठन का पर्याय बन चुके हैं. विधायक आधारित संगठन के इस नए मॉडल की झलक निकाय और पंचायत चुनाव में देखने को मिली. पार्टी के अहम फैसलों में विधायक और विधायक उम्मीदवारों की राय को बहुत ज्यादा तवज्जो मिलने लगी है.
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पार्टी में चार माह से ज्यादा समय से कोई पदाधिकारी नहीं हैहाल ही निकाय चुनाव और पंचायतीराज चुनाव के टिकट वितरण में विधायक और विधायक उम्मीदवारों की जमकर चली है. स्थानीय स्तर की राजनीतक नियुक्तियों में भी विधायक या विधायक उम्मीदवार की राय ही अहमियत रखती है. पार्टी में चार माह से ज्यादा समय से कोई पदाधिकारी नहीं है. ऐसे में विधायक ही संगठन हैं.

विधायक या विधायक उम्मीदवार की अपने क्षेत्र में टीम होती है
कांग्रेस में यह नई बात नहीं है जब विधायक संगठन पर विधायक हावी हुए हो. पिछले कई बरसों से कांग्रेस संगठन की पकड़ ढीली हुई है. तब से संगठन पदाधिकारियों की बजाय विधायकों का ही दबदबा बढ़ता जा रहा है. विधायक या विधायक उम्मीदवार की अपने क्षेत्र में टीम होती है. वह कांग्रेस संगठन की टीम से बड़ी होती है. कांग्रेस मास बेस पार्टी होने के कारण संगठन की टीम उतनी डेडिकेटेड होकर काम नहीं करती. लेकिन विधायक या विधायक उम्मीदवार की टीम अपने नेता के प्रति ज्यादा जवाबदेह और समर्पित होती है.
संगठन के ब्लॉक स्तरीय पदाधिकारी पीछे रह जाते हैं
विधायक की टीम ही चुनाव के बाद उसके निर्वाचन क्षेत्र का मैनेजमेंट संभालती है. इस सिस्टम में कांग्रेस संगठन के ब्लॉक स्तरीय पदाधिकारी पीछे रह जाते हैं. ब्लॉक और जिला स्तर पर पार्टी पदाधिकारी भी विधायक की इच्छा से ही बनते हैं. इस व्यवस्था से विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस संगठन के पदाधिकारी विधायक की राय से ही बनते हैं. जो पार्टी नेता-कार्यकर्ता विधायक के खेमे के नहीं होते है उन्हें जगह नहीं मिलती. विधायक आधारित ग्रासरूट संगठन सिस्टम के समर्थकों के अपने तर्क है. लेकिन कांग्रेस पार्टी के भीतर इस सिस्टम के खिलाफ विचार रखने वाले नेता-कार्यकर्ताओं की भी कमी नहीं है.
फिलहाज इस सिस्टम के बदलने की संभावना कम ही नजर आती है
बीजेपी की तरह कांग्रेस कैडर बेस पार्टी नहीं है. इसकी वजह से भी विधायक ज्यादा हावी हैं. कांग्रेस में फिलहाज इस सिस्टम के बदलने की संभावना कम ही नजर आती है. क्योंकि विधायकों के पास अपनी टीम है जो ग्राउंड पर अपने नेता के लिए काम करती है. कभी कभार यही टीम पार्टी संगठन का भी काम करती दिखती है. विधायक आधारित सत्ता संगठन के सिस्टम पर सवाल भी खूब उठ रहे हैं और एक बड़ा खेमा इसके खिलाफ है.
सचिन पायलट खेमे की बगावत और फिर सुलह के बाद तो विधायकों का सत्ता संगठन में दबदबा और बढ़ गया है. कांग्रेस में फिलहाल 14 जुलाई के बाद से कोई पदाधिकारी नहीं है. ऐसे हालात में विधायक और विधायक का चुनाव हारे हुए उम्मीदवार ही संगठन का पर्याय बन चुके हैं. विधायक आधारित संगठन के इस नए मॉडल की झलक निकाय और पंचायत चुनाव में देखने को मिली. पार्टी के अहम फैसलों में विधायक और विधायक उम्मीदवारों की राय को बहुत ज्यादा तवज्जो मिलने लगी है.
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पार्टी में चार माह से ज्यादा समय से कोई पदाधिकारी नहीं हैहाल ही निकाय चुनाव और पंचायतीराज चुनाव के टिकट वितरण में विधायक और विधायक उम्मीदवारों की जमकर चली है. स्थानीय स्तर की राजनीतक नियुक्तियों में भी विधायक या विधायक उम्मीदवार की राय ही अहमियत रखती है. पार्टी में चार माह से ज्यादा समय से कोई पदाधिकारी नहीं है. ऐसे में विधायक ही संगठन हैं.
विधायक या विधायक उम्मीदवार की अपने क्षेत्र में टीम होती है
कांग्रेस में यह नई बात नहीं है जब विधायक संगठन पर विधायक हावी हुए हो. पिछले कई बरसों से कांग्रेस संगठन की पकड़ ढीली हुई है. तब से संगठन पदाधिकारियों की बजाय विधायकों का ही दबदबा बढ़ता जा रहा है. विधायक या विधायक उम्मीदवार की अपने क्षेत्र में टीम होती है. वह कांग्रेस संगठन की टीम से बड़ी होती है. कांग्रेस मास बेस पार्टी होने के कारण संगठन की टीम उतनी डेडिकेटेड होकर काम नहीं करती. लेकिन विधायक या विधायक उम्मीदवार की टीम अपने नेता के प्रति ज्यादा जवाबदेह और समर्पित होती है.
संगठन के ब्लॉक स्तरीय पदाधिकारी पीछे रह जाते हैं
विधायक की टीम ही चुनाव के बाद उसके निर्वाचन क्षेत्र का मैनेजमेंट संभालती है. इस सिस्टम में कांग्रेस संगठन के ब्लॉक स्तरीय पदाधिकारी पीछे रह जाते हैं. ब्लॉक और जिला स्तर पर पार्टी पदाधिकारी भी विधायक की इच्छा से ही बनते हैं. इस व्यवस्था से विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस संगठन के पदाधिकारी विधायक की राय से ही बनते हैं. जो पार्टी नेता-कार्यकर्ता विधायक के खेमे के नहीं होते है उन्हें जगह नहीं मिलती. विधायक आधारित ग्रासरूट संगठन सिस्टम के समर्थकों के अपने तर्क है. लेकिन कांग्रेस पार्टी के भीतर इस सिस्टम के खिलाफ विचार रखने वाले नेता-कार्यकर्ताओं की भी कमी नहीं है.
फिलहाज इस सिस्टम के बदलने की संभावना कम ही नजर आती है
बीजेपी की तरह कांग्रेस कैडर बेस पार्टी नहीं है. इसकी वजह से भी विधायक ज्यादा हावी हैं. कांग्रेस में फिलहाज इस सिस्टम के बदलने की संभावना कम ही नजर आती है. क्योंकि विधायकों के पास अपनी टीम है जो ग्राउंड पर अपने नेता के लिए काम करती है. कभी कभार यही टीम पार्टी संगठन का भी काम करती दिखती है. विधायक आधारित सत्ता संगठन के सिस्टम पर सवाल भी खूब उठ रहे हैं और एक बड़ा खेमा इसके खिलाफ है.