Rajasthan: बीटीपी के समर्थन वापसी से गहलोत सरकार को कोई खतरा नहीं, संकेत खतरनाक हैं

बीटीपी के गहलोत सरकार से समर्थन वापसी के बाद उसकी असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से गठबंधन की संभावनाएं बढ़ गई हैं.
प्रदेश की अशोक गहलोत सरकार (Ashok Gehlot government) से समर्थन वापसी के बीटीपी के कदम से प्रदेश की सियासत एक बार बार फिर गरमा गयी है. हालांकि बीटीपी (BTP) के इस कदम से गहलोत सरकार कोई खतरा पैदा नहीं हो रहा है, लेकिन कांग्रेस (Congress) के लिये इसके संकेत अच्छे नहीं माने जा रहे हैं.
- News18 Rajasthan
- Last Updated: December 24, 2020, 10:34 AM IST
जयपुर. भारतीय ट्राईबल पार्टी (BTP) बीटीपी द्वारा अशोक गहलोत सरकार (Ashok Gehlot government) से समर्थन वापस लेने के बाद एक बार फिर प्रदेश की सियासत गरमा गयी है. हालांकि बीटीपी के 2 विधायकों के समर्थन वापस (Withdrawal of support) लेने से गहलोत सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन राजनीतिक तौर पर इस समर्थन वापसी के संकेत कांग्रेस के लिए शुभ नहीं माने जा रहे हैं. सरकार के पास अब भी 119 विधायकों का समर्थन है.
कांग्रेस के दो विधायकों मास्टर भंवरलाल और कैलाश त्रिवेदी के देहांत के बाद अब कांग्रेस के 105 विधायक रह गये हैं. सरकार में शामिल आरएलडी के विधायक सुभाष गर्ग गहलोत मंत्रिमंडल के सदस्य हैं. 13 निर्दलीय विधायक फिलहाल सरकार के समर्थन में हैं. वहीं 2 माकपा विधायक भी अघोषित रूप से सरकार के साथ हैं. इस तरह सरकार के पास माकपा को जोड़कर 121 और बिना माकपा के 119 विधायकों का समर्थन है. इसलिए फिलहाल संख्या बल के लिहाज से सरकार की सेहत पर बीटीपी के समर्थन वापस लेने का कोई असर नहीं पड़ेगा.
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बीटीपी की ओवैसी की पार्टी से गठबंधन की संभावनाएं बढ़ी
बीटीपी के गहलोत सरकार से समर्थन वापसी के बाद उसकी असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से गठबंधन की संभावनाएं बढ़ गई हैं. ओवैसी बीटीपी को पहले ही गठबंधन का न्योता दे चुके हैं. ओवैसी के न्यौते का बीटीपी ने भी सकारात्मक जवाब दिया था. अगर यह गठबंधन हुआ तो पूरे राजस्थान में राजनीति नई करवट लेगी. क्योंकि इस गठबंधन से प्रदेश की करीब 50 सीटों पर कांग्रेस के समीकरण बिगड़ेंगे. ये वो सीटें हैं जिनमें अल्पसंख्यक और आदिवासी बहुल वोट ज्यादा हैं.
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कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगना तय है
बीटीपी का आदिवासी वोटों पर खासा प्रभाव है और यह प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. वहीं ओवैसी मुस्लिम वर्ग के वोटों को अपनी तरफ करना चाहते हैं. आदिवासी और मुस्लिम कांग्रेस का परम्परागत वोट बैंक रहा है. वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य का देखते हुये आगे इस वोट बैंक में सेंध लगना तय है. अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस को इसका बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है.
कांग्रेस के दो विधायकों मास्टर भंवरलाल और कैलाश त्रिवेदी के देहांत के बाद अब कांग्रेस के 105 विधायक रह गये हैं. सरकार में शामिल आरएलडी के विधायक सुभाष गर्ग गहलोत मंत्रिमंडल के सदस्य हैं. 13 निर्दलीय विधायक फिलहाल सरकार के समर्थन में हैं. वहीं 2 माकपा विधायक भी अघोषित रूप से सरकार के साथ हैं. इस तरह सरकार के पास माकपा को जोड़कर 121 और बिना माकपा के 119 विधायकों का समर्थन है. इसलिए फिलहाल संख्या बल के लिहाज से सरकार की सेहत पर बीटीपी के समर्थन वापस लेने का कोई असर नहीं पड़ेगा.
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बीटीपी के गहलोत सरकार से समर्थन वापसी के बाद उसकी असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से गठबंधन की संभावनाएं बढ़ गई हैं. ओवैसी बीटीपी को पहले ही गठबंधन का न्योता दे चुके हैं. ओवैसी के न्यौते का बीटीपी ने भी सकारात्मक जवाब दिया था. अगर यह गठबंधन हुआ तो पूरे राजस्थान में राजनीति नई करवट लेगी. क्योंकि इस गठबंधन से प्रदेश की करीब 50 सीटों पर कांग्रेस के समीकरण बिगड़ेंगे. ये वो सीटें हैं जिनमें अल्पसंख्यक और आदिवासी बहुल वोट ज्यादा हैं.
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कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगना तय है
बीटीपी का आदिवासी वोटों पर खासा प्रभाव है और यह प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. वहीं ओवैसी मुस्लिम वर्ग के वोटों को अपनी तरफ करना चाहते हैं. आदिवासी और मुस्लिम कांग्रेस का परम्परागत वोट बैंक रहा है. वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य का देखते हुये आगे इस वोट बैंक में सेंध लगना तय है. अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस को इसका बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है.