जयपुर. राजस्थान की गहलोत सरकार के राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में निजी हॉस्पिटल चौथे दिन भी बंद रहे. आंदोलनकारी डॉक्टरों ने एसएमएस अस्पताल के बाहर आरएमसी रजिस्ट्रेशन की प्रतियां जलाईं. डॉक्टरों ने आईएमए से समर्थन मांगा और शाम होने तक चिकित्सा जगत से जुड़े तमाम संगठनों से सहयोग की अपील करते हुए आंदोलन को और उग्र करने का ऐलान किया. अब तक सरकार और आंदोलनकारी डॉक्टरों के बीच किसी भी तरह की वार्ता की कोई गुंजाइश की संभावना नहीं दिख रही है.
निजी चिकित्सकों ने विरोध प्रदर्शन का आगाज एसएमएस मेडिकल कॉलेज के बाहर आरएमसी रजिस्ट्रेशन की प्रतियां जलाकर किया. आंदोलनकारी चिकित्सक जब गहलोत सरकार के विरोध में नारेबाजी कर रहे थे, उस वक्त एसएमएस मेडिकल कॉलेज की इमरजेंसी में चिकित्सक गंभीर मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे थे. रेजीडेंटस के स्ट्राइक पर चले जाने से चिकित्सा सेवाओं पर बुरा असर पड़ा, मगर डयूटी पर तैनात डॉक्टरों ने हालात काबू में होने का दावा किया है.
हड़ताल के कारण करनी पड़ रही कड़ी मशक्कत
एसएमएस अस्पताल में आपातकालीन सेवाओं के प्रभारी डॉ. राजेश शर्मा ने कहा कि प्राइवेट अस्पताल बंद होने से मरीजों का भार लगातार बढ रहा है. साथ ही रेजीडेंट डॉक्टरों के हड़ताल पर चले जाने से चिकित्सा सेवाओं को ठीक से चलाए रखने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है. हालांकि, उन्होंने हालात के नियंत्रण में होने का दावा किया. उन्होंने कहा कि गंभीर मरीजों की जिंदगी बचाने की हर संभव कोशिश की जा रही है. सह प्रभारी डॉक्टर बीपी मीना ने बताया कि रेजीडेंट डॉक्टर की हड़ताल का असर है, पर हम गंभीर मरीजों को हर हाल में बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.
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एक बार फिर खटखटाएंगे राजभवन का दरवाजा
एसएमएस मेडिकल कॉलेज के बाहर विरोध प्रदर्शन के बाद आंदोलनकारी डॉक्टरों ने कुछ मिनटों के लिए जेएलएन मार्ग पर जाम लगा दिया. पुलिस ने मौके पर पहुंच कर डॉक्टरों को समझाइश देकर वहां से हटा दिया. गुस्साए निजी चिकित्सकों ने इसके बाद जेएमए का रुख किया और दिन भर आगे की रणनीति बनाने के लिए कई बैठकें की गईं. इसमें तय हुआ कि आंदोलनकारी डॉक्टर एक बार फिर राजभवन का दरवाजा खटखटाएंगे. उनका मानना था कि बिल भले ही विधानसभा से पारित हुआ है, मगर गर्वनर जब तक इस पर दस्तखत नहीं करेंगे ये अमल में नहीं आ सकेगा.
सभी संगठनों को साथ लाने का संकल्प
आईएमए के साथ निजी चिकित्सकों की ऑनलाइन मैराथन बैठक हुई, जिसमें प्रदेश की गहलोत सरकार पर चौतरफा दबाव बनाने की रणनीति पर मंथन कर आंदोलन को देशव्यापी बनाने पर चर्चा की गई. उनका कहना है कि सरकार जब तक आरटीएच पर डॉक्टरों के साथ बैठक कर कोई समाधान नहीं निकालेगी तब तक निजी चिकित्सालय पूरी तरह बंद रहेंगे. डॉक्टरों ने 9 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है जो आंदोलन में एकजुटता बनाए रखेगी और सरकार के किसी भी दबाव का मुकाबला करने के लिए यही कमेटी लगातार रणनीति बनाएगी. चर्चा में नर्सिंग, फार्मेसी, डेंटल, फिजियोथैरेपी, हौम्योपैथी और आयुर्वेद से जुड़े संगठनों को भी साथ लेने का संकल्प लिया गया है. आंदोलनकारियों का कहना था कि सरकार प्रदेश में इस कानून के जरिए निजी अस्पतालों पर इंस्पेक्टर राज लागू करना चाहती है. गन प्वाइंट पर चिकित्सक आखिर कैसे इलाज कर पायेगा. चिकित्सकों को कहीं अपील का अधिकार ही नहीं रहेगा तो वो कैसे अपने अधिकारों की रक्षा कर पाएंगे.
सरकार कर सकती सख्ती
बहरहाल सरकार और निजी चिकित्सकों के बीच टकराव के हालात जारी हैं. निजी अस्पतालों के दरवाजे मरीजों के लिए बंद हैं तो रेजीडेंटस के आंदोलन का हिस्सा बन जाने से चिकित्सा सेवाएं बुरी तरह चरमरा रही हैं. इमरजेंसी मरीजों को ही सरकारी अस्पतालों में इलाज मिल रहा है, मगर रूटीन ऑपरेशन टालने पड़ रहे हैं. ऐसे में कोई बीच का रास्ता नहीं निकाला गया और आंदोलन लंबा चला तो न जाने कितने मरीजों को इसकी कीमत जान की बाजी लगाकर चुकानी पड़ सकती है. ऐसे में सरकार आंदोलनकारी डॉक्टरों के खिलाफ सख्त कदम भी उठा सकती है.
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