राजस्थान में डॉक्टर लगातार राइट टू हेल्थ बिल का विरोध कर रहे हैं. (न्यूज 18 हिन्दी)
जयपुर. राजस्थान में सरकार और डॉक्टरों के बीच तनातनी की स्थिति लगातार बनी हुई है. राइट टू हेल्थ बिल को लेकर दोनों आमने-सामने हैं. स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक पर मंगलवार सदन में चर्चा होगी, लेकिन इस बिल के विरोध में पिछले 2 दिन से प्रदेश के निजी चिकित्सक आंदोलन कर रहे हैं. सड़क पर चिकित्सकों के संग्राम के बीच सरकार इस बिल पर चर्चा करवाने का फैसला लिया है. विपक्ष ने साफ कर दिया है कि वह बिल के प्रावधानों के विरोध में हैं. सरकार निजी चिकित्सकों को विश्वास में लेने के बाद ही बिल पास करवाए. सोमवार को बिल के विरोध में विधानसभा घेराव करने पहुंचे चिकित्सकों पर पुलिस ने हल्का बल प्रयोग किया था, जिसमें कुछ डॉक्टर्स को चोटें भी आईं. इस घटना के बाद डॉक्टरों ने कार्य बहिष्कार का ऐलान कर दिया.
विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने पॉइंट ऑफ इंफॉर्मेशन के जरिए यह मामला सदन में भी उठाया. इसके बाद चिकित्सा मंत्री की विरोध कर रहे चिकित्सकों के प्रतिनिधिमंडल से भी चर्चा हुई, लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया. राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में आंदोलन कर रहे निजी चिकित्सकों को अब सरकारी डॉक्टर का भी साथ मिल गया है. मेडिकल कॉलेज टीचर एसोसिएशन ऑफ राजस्थान और राजस्थान मेडिकल कॉलेज टीचर एसोसिएशन सहित अखिल राजस्थान सेवारत चिकित्सक संघ की ओर से मंगलवार सुबह 9:00 से 11:00 बजे तक 2 घंटे का कार्य बहिष्कार करने की घोषणा की गई. चिकित्सकों पर किए गए लाठीचार्ज के विरोध में एसोसिएशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स (जार्ड) ने सुबह 8 बजे से संपूर्ण कार्य बहिष्कार कर दिया है. जार्ड के अध्यक्ष नीरज दामोर ने कहा कि बिल वापस नहीं होने पर हड़ताल भी की जा सकती है.
राइट टू हेल्थ बिल का A to Z: जनता को क्या मिलेंगे फायदे और डॉक्टर क्यों कर रहे हैं इसका विरोध?
राइट टू हेल्थ बिल को लेकर निजी चिकित्सकों के संगठन का कहना है कि इसके अमलज में आने के बाद अस्पतालों का संचालन बहुत कठिन हो जाएगा. राइट टू हेल्थ बिल का मकसद केवल वोटर को लुभाना है, क्योंकि इस बिल से नागरिकों को कोई भी अधिक लाभ होता नहीं दिख रहा है. इस बिल से डॉक्टर और मरीज के संबंध खराब होंगे. उनके बीच विश्वास में कमी के साथ उपचार की क्वालिटी में भी कमी आएगी. सभी का स्वास्थ्य का अधिकार सुरक्षित हो यह सरकार की जिम्मेदारी है. नागरिकों को अधिकार है, लेकिन इसे निजी चिकित्सकों और चिकित्सालय पर थोपा नहीं जा सकता है. संगठन का कहना है कि बिल में इमरजेंसी में मरीज का बिना शुल्क जमा किए उपचार करने का प्रावधान है, लेकिन बिल में इमरजेंसी की परिभाषा को स्पष्ट नहीं है. इसके अलावा हॉस्पिटल को किस तरह भुगतान किस तरह से किया जाएगा, इस बारे में भी कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है.
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