घुमंतू जातियों की पीड़ा- मतदान के अधिकार से वंचित हैं प्रदेश के लाखों लोग
घुमंतू जातियों की पीड़ा- मतदान के अधिकार से वंचित हैं प्रदेश के लाखों लोग
प्रतीकात्मक तस्वीर।
प्रदेश के विभिन्न इलाके में बिना ठौर-ठिकाने के घूम रही घुमंतू जातियों के लाखों लोग आज भी मतदान से वंचित हैं. रोजी रोटी की तलाश में इधर से उधर घूमने वाली इन जातियों की स्थिति में आजादी के बाद से आज तक कोई विशेष अंतर नहीं आ पाया है.
प्रदेश के विभिन्न इलाके में बिना ठौर-ठिकाने के घूम रही घुमंतू जातियों के लाखों लोग आज भी मतदान से वंचित हैं. रोजी रोटी की तलाश में इधर से उधर घूमने वाली इन जातियों की स्थिति में आजादी के बाद से आज तक कोई विशेष अंतर नहीं आ पाया है. बरसों से राजनीतिक पार्टियां अपने घोषणा-पत्रों में महज दिखावे के लिए इनके लिए एक-दो लाइनें लिखती जरूर हैं, लेकिन उन पर अमल कभी नहीं हो पाता है.
यही कारण है कि ठौर-ठिकाने के अभाव में घुमंतू जातियों के दो तिहाई से अधिक लोगों के पास अपनी पहचान के सरकारी दस्वावेज के नाम की कागज की चिंदी भी नहीं है. इसके अभाव में ये लोग इनके लिए बनने वाली योजनाओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं. वोट बैंक नहीं होने के कारण राजनीतिक दल भी इनकी कोई परवाह नहीं करते हैं.
संख्या को लेकर कोई रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई
राजस्थान में डूंगरपुर भीलवाड़ा, बांसवाड़ा जालोर और चित्तौड़गढ़ समेत अरावली पहाड़ी की तलहटी के विभिन्न हिस्सों में ये घुमंतू जनजाति घूमती हुई देखी जा सकती हैं. छोटे-मोटे अपराधों के लिए इन्हें दोषी ठहरा दिया जाता है. अनुमान के अनुसार प्रदेश की आबादी का करीब 8% यानी 55 लाख लोग घुमंतू समुदायों से आते हैं. अनुमान इसीलिए क्योंकि राजस्थान सरकार ने कभी कोई रिपोर्ट सार्वजनिक पटल पर नहीं रखी, जिससे घुमंतुओं की 32 जातियों की असल संख्या का पता चल सके. आजीविका की तलाश में ये लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं. राजस्थान सरकार के अनुसार बंजारा, कालबेलिया, रेबारी, सांसी, कंजर, गाड़िया लोहार, साठिया, गरासिया, डामोर, मुंडा, नायक और कोरी समेत सहित कुल 32 घुमंतू जातियां हैं.
72% लोगों के पास पहचान के दस्तावेज तक नहीं
मालवाहक, पशुपालक या शिकारी, धार्मिक खेल दिखाने वाले और मनोरंजन करने वाले लोग इनमें मुख्य रूप से आते हैं. प्रदेश में आजादी के इतने लंबे समय के बावजूद भी 98% घुमंतू जातियों के पास अपनी कोई जमीन नहीं है. इनमें से 57% झोंपड़ियों में रह रहे हैं. 72% लोगों के पास अपनी पहचान के दस्तावेज तक नहीं हैं. दस्तावेज के अभाव में ये सरकारी लोक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं उठा पाते हैं. प्रशासन के सामने दिक्कत रहती है कि इनका कोई स्थाई ठिकाना नहीं रहता है. ऐसी स्थिति में इनके पास दस्तावेज नहीं होते हैं