राजस्थान के किसानों ने भरी हुंकार: कल करेंगे दिल्ली कूच, जिला और तहसील मुख्यालयों पर भी होंगे प्रदर्शन

किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा है कि जो किसान दिल्ली जाने में असमर्थ हैं वो प्रदेश में ही रहकर जिला और तहसील मुख्यालयों पर धरना-प्रदर्शन करेंगे.
राजस्थान के किसानों (Farmers) ने भी अब हुंकार भर दी है. वे अपनी मांगों को लेकर दिल्ली कूच करेंगे. किसान कृषि कानूनों (Agricultural laws) को वापस लिए जाने की मांग कर रहे हैं.
- News18 Rajasthan
- Last Updated: November 27, 2020, 10:52 PM IST
जयपुर. अपनी मांगों को लेकर अब राजस्थान के किसान (Farmer) भी दिल्ली कूच करेंगे. किसान महापंचायत ने शनिवार को दिल्ली (Delhi) कूच कर घेराव का ऐलान किया है. किसान कृषि कानूनों (Agricultural laws) को वापस लिए जाने की मांग कर रहे हैं. इसके साथ ही सभी उपजों की सालभर ग्राम सेवा सहकारी स्तर पर एमएसपी खरीद और सम्पूर्ण उपज की खरीद के लिए कानून बनाने की भी मांग की जा रही है.
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा है कि जो किसान दिल्ली जाने में असमर्थ हैं वो प्रदेश में ही रहकर जिला और तहसील मुख्यालयों पर धरना-प्रदर्शन करेंगे. आंदोलन को लेकर जाट ने प्रदेशाध्यक्ष किशन डागर और प्रदेश संयोजक सत्यनारायण सिंह समेत प्रमुख पदाधिकारियों से चर्चा की. उन्होंने कहा कि देश के किसान कमाई छोड़कर लड़ाई के लिए विवश हैं. वे खेत छोड़कर सड़कों पर हैं. यह स्थिति केन्द्र सरकार की विदेशी निवेशकों को रिझाने की नीति के चलते उत्पन्न हुई है.
जयपुर में बड़ा हादसा: हाईटेंशन लाइन की चपेट में आई प्राइवेट बस, आग लगी, 3 यात्रियों की मौत, 5 झुलसे
पहले भेजे गए चेतावनी पत्र
रामपाल जाट ने कहा कि पूर्व में बार-बार मांगों को लेकर केंद्र सरकार को चेतावनी पत्र भेजे गए. लेकिन सरकार ने इन पर कोई ध्यान नहीं दिया. प्रधानमंत्री को पहला पत्र 14 जून 20200 को लिखा गया था. उसमें उल्लेख किया गया था कि इन कानूनों के कारण कृषि उपजों के व्यापार पर बड़े पूंजी वालों का एकाधिकार हो जायेगा. पूंजीपति कृषि उत्पादों के कम से कम दाम चुकायेगे और उपभोक्ता की जेब से उन्हीं उत्पादों को बेचकर अधिक से अधिक दाम वसूलेंगे. इसी प्रकार संविदा खेती से किसान अपने खेत पर मालिक से मजदूर बनकर रह जायेगा. दूसरा चेतावनी पत्र 21 जुलाई 2020 को लिखा गया था. उसमें इन कानूनों को वापिस नहीं लेने पर देशभर में किसानों द्वारा आन्दोलन करने की चेतावनी दी गई थी.
एमएसपी खरीद का बने कानून
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट के मुताबिक किसानों में रोष इसलिए भी है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी के लिए केन्द्र सरकार ने अब तक कानून नहीं बनाया है. जबकि किसानों की सुनिश्चित आय एवं मूल्य का अधिकार विधेयक-2012 के प्रारूप के आधार पर निजी विधेयक को लोकसभा ने 8 अगस्त 2014 को बहस के लिए सर्वसम्मति से स्वीकार किया था. यह स्थिति तब है जब अन्नदाता पिछले 10 वर्षों से इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं.
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा है कि जो किसान दिल्ली जाने में असमर्थ हैं वो प्रदेश में ही रहकर जिला और तहसील मुख्यालयों पर धरना-प्रदर्शन करेंगे. आंदोलन को लेकर जाट ने प्रदेशाध्यक्ष किशन डागर और प्रदेश संयोजक सत्यनारायण सिंह समेत प्रमुख पदाधिकारियों से चर्चा की. उन्होंने कहा कि देश के किसान कमाई छोड़कर लड़ाई के लिए विवश हैं. वे खेत छोड़कर सड़कों पर हैं. यह स्थिति केन्द्र सरकार की विदेशी निवेशकों को रिझाने की नीति के चलते उत्पन्न हुई है.
जयपुर में बड़ा हादसा: हाईटेंशन लाइन की चपेट में आई प्राइवेट बस, आग लगी, 3 यात्रियों की मौत, 5 झुलसे
पहले भेजे गए चेतावनी पत्र
रामपाल जाट ने कहा कि पूर्व में बार-बार मांगों को लेकर केंद्र सरकार को चेतावनी पत्र भेजे गए. लेकिन सरकार ने इन पर कोई ध्यान नहीं दिया. प्रधानमंत्री को पहला पत्र 14 जून 20200 को लिखा गया था. उसमें उल्लेख किया गया था कि इन कानूनों के कारण कृषि उपजों के व्यापार पर बड़े पूंजी वालों का एकाधिकार हो जायेगा. पूंजीपति कृषि उत्पादों के कम से कम दाम चुकायेगे और उपभोक्ता की जेब से उन्हीं उत्पादों को बेचकर अधिक से अधिक दाम वसूलेंगे. इसी प्रकार संविदा खेती से किसान अपने खेत पर मालिक से मजदूर बनकर रह जायेगा. दूसरा चेतावनी पत्र 21 जुलाई 2020 को लिखा गया था. उसमें इन कानूनों को वापिस नहीं लेने पर देशभर में किसानों द्वारा आन्दोलन करने की चेतावनी दी गई थी.
एमएसपी खरीद का बने कानून
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट के मुताबिक किसानों में रोष इसलिए भी है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी के लिए केन्द्र सरकार ने अब तक कानून नहीं बनाया है. जबकि किसानों की सुनिश्चित आय एवं मूल्य का अधिकार विधेयक-2012 के प्रारूप के आधार पर निजी विधेयक को लोकसभा ने 8 अगस्त 2014 को बहस के लिए सर्वसम्मति से स्वीकार किया था. यह स्थिति तब है जब अन्नदाता पिछले 10 वर्षों से इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं.