राजस्थान कांग्रेस में पिछले कुछ चुनावों का ट्रेंड - बागियों पर कार्रवाई के बजाए मनाने की रणनीति

पिछले छह चुनावों में यह देखने को मिला कि कांग्रेस पार्टी अपने बागी नेताओं पर कार्रवाई करने के बजाए चुप रहती है. (सांकेतिक फोटो)
पिछले कुछ चुनावों से कांग्रेस में एक नया ट्रेंड सेट होता नजर आ रहा है. पार्टी अब बागियों पर कार्रवाई करने के बजाय उन पर नरम रुख अपना रही है. ऐसा इसलिए कि चुनाव जीतने के बाद उन्हें आसानी से अपने पाले में मिलाया जा सके.
- News18Hindi
- Last Updated: January 23, 2021, 7:37 PM IST
जयपुर. चुनाव में राजनीतिक दलों को बगावत का भी सामना करना पड़ता है. पार्टी लाइन (Party line) के खिलाफ जाकर चुनाव लड़ने वाले पदाधिकारियों-कार्यकर्ताओं पर पार्टी द्वारा अनुशासन का डंडा चलाया जाता है. लेकिन जयपुर कांग्रेस (Jaipur Congress) में पिछले कुछ चुनावों से एक नई परम्परा देखने को मिल रही है. पार्टी अब बागियों (rebels) पर कड़ी कार्रवाई करने के बजाय उनके प्रति नरम रुख अपना रही है. पिछले कुछ चुनावों में पार्टी के खिलाफ जाकर चुनाव लड़ने वाले कार्यकर्ताओं पर पार्टी द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई और इसी तरह के आसार 90 नगर निकायों के चुनाव में भी नजर आ रहे हैं. इस बार भी बड़ी संख्या में कांग्रेसी नेता पार्टी के आधिकारिक प्रत्याशियों के खिलाफ मैदान में ताल ठोंक रहे हैं, लेकिन पार्टी ने अभी तक इन पर कार्रवाई करने के लिए कोई अनुशासन समिति नहीं बनाई है.
पिछले छह चुनावों का ट्रेंड
पिछले कुछ चुनावों की अगर बात करें तो 6 नगर निगमों के चुनाव में पार्टी द्वारा बागियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है. उसके बाद जिला परिषद और पंचायत समिति सदस्यों के चुनाव में भी पार्टी का यही रुख रहा. 12 जिलों में हुए 50 नगर निकाय चुनावों में भी पार्टी ने बागियों पर कार्रवाई नहीं की और अब 90 नगर निकायों के चुनाव में भी पार्टी की मंशा इसी तरह की नजर आ रही है.
कार्रवाई न करने की खास रणनीतिबागियों पर कार्रवाई नहीं करने के इस नए ट्रेंड के पीछे कांग्रेस की एक खास रणनीति नजर आ रही है. ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि चुनाव जीते हुए नेताओं को आसानी से अपने पाले में मिला लिया जाए. कांग्रेस की रणनीति अब बागियों पर कार्रवाई के बजाय ज्यादा से ज्यादा जगहों पर अपने बोर्ड बनाने की है. पिछले चुनावों में भी कांग्रेस की यही नीति रही. जो भी बागी चुनाव जीता उसे अपने पाले में मिलाकर बोर्ड बनाने की कवायद की गई. एक बार कार्रवाई कर दिए जाने के बाद फिर जीते हुए नेता को अपने पाले में मिलाने में मुश्किलें आती हैं. यही वजह है कि पार्टी द्वारा बागियों पर कार्रवाई की ही नहीं जा रही ताकि जैसे ही कोई बागी जीतकर आए उसे पार्टी की रीति-नीतियां याद दिलाकर फिर से अपने साथ कर लिया जाए. नगर निकाय और पंचायतीराज के चुनाव अपेक्षाकृत काफी छोटे होते हैं और इसमें निर्दलीय बड़ी संख्या में चुनाव जीतकर आते हैं. कई बार इस प्रकार की स्थितियां बनती हैं कि इन निर्दलीयों को अपने साथ मिलाए बिना बोर्ड नहीं बन सकता. लिहाजा ऐसी स्थितियों के लिए बागियों पर कार्रवाई नहीं करने में ही कांग्रेस को भलाई नजर आ रही है.
पिछले छह चुनावों का ट्रेंड
पिछले कुछ चुनावों की अगर बात करें तो 6 नगर निगमों के चुनाव में पार्टी द्वारा बागियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है. उसके बाद जिला परिषद और पंचायत समिति सदस्यों के चुनाव में भी पार्टी का यही रुख रहा. 12 जिलों में हुए 50 नगर निकाय चुनावों में भी पार्टी ने बागियों पर कार्रवाई नहीं की और अब 90 नगर निकायों के चुनाव में भी पार्टी की मंशा इसी तरह की नजर आ रही है.
कार्रवाई न करने की खास रणनीतिबागियों पर कार्रवाई नहीं करने के इस नए ट्रेंड के पीछे कांग्रेस की एक खास रणनीति नजर आ रही है. ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि चुनाव जीते हुए नेताओं को आसानी से अपने पाले में मिला लिया जाए. कांग्रेस की रणनीति अब बागियों पर कार्रवाई के बजाय ज्यादा से ज्यादा जगहों पर अपने बोर्ड बनाने की है. पिछले चुनावों में भी कांग्रेस की यही नीति रही. जो भी बागी चुनाव जीता उसे अपने पाले में मिलाकर बोर्ड बनाने की कवायद की गई. एक बार कार्रवाई कर दिए जाने के बाद फिर जीते हुए नेता को अपने पाले में मिलाने में मुश्किलें आती हैं. यही वजह है कि पार्टी द्वारा बागियों पर कार्रवाई की ही नहीं जा रही ताकि जैसे ही कोई बागी जीतकर आए उसे पार्टी की रीति-नीतियां याद दिलाकर फिर से अपने साथ कर लिया जाए. नगर निकाय और पंचायतीराज के चुनाव अपेक्षाकृत काफी छोटे होते हैं और इसमें निर्दलीय बड़ी संख्या में चुनाव जीतकर आते हैं. कई बार इस प्रकार की स्थितियां बनती हैं कि इन निर्दलीयों को अपने साथ मिलाए बिना बोर्ड नहीं बन सकता. लिहाजा ऐसी स्थितियों के लिए बागियों पर कार्रवाई नहीं करने में ही कांग्रेस को भलाई नजर आ रही है.