झुंझुनूं जिले के खेतड़ी कस्बे में स्थित मां वाराही के 500 वर्ष पुराने मां वाराही देवी के मंदिर में माता शव पर विराजमान है.
कर्षन सिंह शेखावत
झुंझुनूं. जिले के खेतड़ी कस्बे में वाराही देवी का अनूठा मंदिर है, जहां पर मां वार्ताली वाराही के अवतार में मनुष्य के शव पर विराजमान हैं. मान्यता है कि यहां के लोग खेतड़ी की कुलदेवी के चरणों में धोक लगाकर ही शुभ कार्य की शुरुआत करते हैं. मंदिर के पुजारी ने बताया कि मंदिर की स्थापना करीब 500 साल पहले मेघ गर्जना के दौरान वार्ताली वाराही के रूप में माता की प्रतिमा प्रकट हुई थी. उन्होंने बताया कि वाराही माता के 2 स्वरूप होते हैं. पहला स्वरूप वाराही जो शांत स्वरूप की घोड़ी पर सवारी करती हैं तथा दूसरा मां वार्ताली वाराही जिसमें माता विकराल रूप में भैंस की सवारी करती हैं.
मंदिर में स्थापित वाराही माता मनुष्य के शव पर विराजमान हैं. इसकी स्थापना से पहले सामने शिव की प्रतिमा स्थापित करवाई गई थी. खेतड़ी कस्बे में कोई भी मांगलिक कार्य वार्ताली वाराही मां की पूजा के बिना शुरू नहीं किया जाता है. नवरात्र में यहां विशेष आयोजन किया जाता है. छठ और महाष्टमी पर यहां मेले जैसा माहौल रहता है.
राजा भोपाल सिंह आते थे चरणों में धोक लगाने
रियासतकाल के राजा-महाराजा माता की चौखट पर शीश छुकाने आते थे. खेतड़ी के राजा भोपाल सिंह अपना हर कार्य शुरू करने से पहले मां के चरणों में धोक लगाने आते थे. खेतड़ी के अंबे मार्केट में स्थित मां वाराही देवी खेतड़ी निवासियों की आराध्य देवी मानी जाती हैं. यहां के व्यापारी और ग्रामीण अपना कार्य मां वाराही देवी के चरणों में धोक लगाकर ही शुरू करते हैं. पहले यहां जंगल था, जो धीरे-धीरे अब आबादी में परिवर्तित हो गया है. शादी-विवाह और अन्य मांगलिक कार्यों में सबसे पहले मां वाराही देवी के मंदिर में पूजा पाठ व प्रसाद चढ़ाया जाता है. यहां के निवासियों के दिन की शुरुआत भी मां वाराही के दर पर धोक लगाकर ही होती है.
नवरात्रि में हुई थी स्थापना
ऐसा कहा जाता है कि खेतड़ी की माता वाराही की स्थापना नवरात्र के छठ के दिन हुई है, इसलिए यहां छठ पूजन का विशेष महत्व है. अष्टमी और चतुर्दशी को ही माता वाराही की विशेष पूजा होती है. अष्टमी को वाराही देवी मंदिर में मेले जैसा माहौल रहता है और दूर-दूर से भक्त यहां माता वाराही के दर्शन के लिए आते हैं.
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