वेस्ट से बनी अगरबत्ती
रिपोर्ट:पुनीत माथुर
जोधपुर. कहते है कोई भी कार्य शुरू करने की कोई उम्र नहीं होती, चाहे उम्र 20 की हो 30 की या 60 से ऊपर की. ऐसे में न्यूज 18 आपकों रूबरू करा रहा हैजोधपुर के 67 वर्ष ऊपर डॉक्टर छापर की. जिन्होंने इस कहावत को चरितार्थ किया है. 67 वर्षीय डॉ.संतोष छापर जोकि जोधपुर बड़ला चौक के निवासी है.उन्होंने ना सिर्फ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने का निश्चय किया बल्कि वेस्ट मैनेजमेंट से अपना उद्यम भी विकसित किया.
दरअसल डॉ छापर मंदिर और पेड़ों से गिरने वाले फूल पत्तियों का इस्तेमाल कर अगरबत्तियों का निर्माण करते है.प्रेम मंदिर में चढ़ने वाले फूल की पत्तियों को इकट्ठा करते है.साथ ही पेड़ों से जो पत्तियां सूख कर नीचे गिर जाती है उन्हें इकट्ठा करते है. फिर उन्हें फूलों की पत्तियों अलग-अलग करते है.पत्तियों को सुखाकर उनका बुरादा किया जाता है और इसमें दूसरे आयुर्वेदिक इनग्रेडिएंट्स का बुरादा मिलाकर अगरबत्ती का पेस्ट तैयार करते हैं. इसके बाद में वे अपने ही जुगाड़ से बनाई हुई पाईप से एक पतली डंडी का आकार देते है.फिर उन्हें सुखाकर पैकेजिंग कर मार्केट में विक्रय करते है.
डॉक्टर छापर का कहना है कि वे विभिन्न प्रकार के फूलों की पत्तियों और पेड़ों की पत्तियों द्वारा गुलाब, नीलगिरी,लोबान, नागर मोथा, कपूर कांचली, आशापुरा धूप हस्तनिर्मित धूपबत्ती बनाते है.इनकी धूपबत्ती ना सिर्फ ईको फ्रेंडली है. पर्यावरण संरक्षणको मजबूत करने वाली अमृतधारा जो कपूर और अजवाइन, पुदीना औरनीलगिरी की धूप बती भी डॉक्टर छापर बनाते है. हर महीने अगरबत्तियोंको विक्रय करने से छापर को 8 से 10 हजार की आय भी हो रही है.
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