जोधपुर जिले के पीपाड़ शहर में शुक्रवार को राज पुरोहित समाज के लोगों ने सामाजिक स्तर पर होने वाले शादी समारोहों में किसी तरह का नशा नहीं करने का फैसला लिया है. बाड़ा खुर्द में राज पुरोहित समाज के लोगों ने इस की शुरुआत करते हुए बंशीलाल सिंह, विजय सिंह की पुत्रियों एवं कालु सिंह के पुत्र की शादी के पाट बिठाने की परम्परा के दौरान आयोजित सभाओं मे किसी प्रकार का नशा नहीं किया गया.
गौरतलब है कि गत दिनों आसोतरा स्थित ब्रह्मा मंदिर में आयोजित कार्यक्रम में समाज के 1500 गांवों के प्रतिनिधियों ने एक नशा मुक्त समाज की स्थापना करने का संकल्प लिया था. उसी मुहिम को लेकर शुरुआत की गई. मारवाड़ एवं थली में राजपुरोहित (जमीदार) अन्य ब्राह्मणों की अपेक्षा अधिक है. ये लोग राजपूतों के मोरूसी गुरू है और पिरोयत (पुरोहित) कहलाते हैं.
यदि राजपुरोहित इतिहास पर एक दृष्टि डाले तो पायेंगे कि राजपूतानें में राजपुरोहितों का इतिहास में सदैव ही ऐतिहासिक योगदान रहा है. ये राज-परिवार के स्तम्भ रहे हैं. इन्हें समय-समय पर अपनी वीरता एवं शौर्य के फलस्वरूप जागीरें प्राप्त हुई हैं. उत्तर वैदिक काल में भी राजगुरू पुरोहितों का चयन उन श्रेष्ठ ऋषि-मुनियों में से होता था जो राजनीति, सामाजिक नीति, युद्धकला, विद्वता, चरित्र आदि में कुशल होते थे.
कालान्तर में यह पद वंशानुगत इन्हीं ब्राह्मणों में से अपने-अपने राज्य एवं वंश के लिए राजपुरोहित चुने गए. इसके अतिरिक्त राजाओं की कन्याओं के वर ढूंढना व सगपन हो जाने पर विवाह की धार्मिक रीतियां सम्पन्न करना तथा नवीन उत्तराधिकारी के सिंहासनासीन होने पर उनका राज्याभिषेक करना आदि था. ये कार्य राज-परिवार के प्रतिनिधि व सदस्य होने के कारण करते थे.
वैसे साधारणतया इनका प्रमुख व्यवसाय कृषि मात्र था. पिरोयतों की कौम एक नहीं अनेक प्रकार के ब्राह्मणों से बनी है. इस कौम का भाट गौडवाड़ परगने के गांव चांवडेरी में रहता है. उसकी बही से और खुद पिरोयतों के लिखाने से नीचे लिखे माफिक अलग-अलग असलियत उनकी खांपों की मालूम हुई है.
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FIRST PUBLISHED : February 16, 2018, 19:49 IST