रिपोर्ट: पुनीत माथुर
जोधपुर. प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी जोधपुर में त्यौहार मनाने का अलग ही रिवाज है. यहां हर त्यौहार चरम के साथ मनाए जाते है. हाल ही में चल रहे गणगौर पर्व की समाप्ती पर शुक्रवार को जोधपुर में फगडा घुडला मेले का आयोजन किया गया. यह मेला 55 सालों से चल रहा है. वैसे तो गणगौर उत्सव के दौरान महिलाएं घुड़ला लेकर निकलती है. लेकिन खास बात यह है कि इसमें एक पुरूष महिला का रूप धारण कर सिर पर घुड़ला उठाकर निकलता है.
दो महीने पहले ही शुरु हो जाते ऑडिशन
दरअसल इस बार फगडा बनकर घुड़ला उठाने का मौका बिजनसमैन निखिल गांधी को मौका मिला. लगातार दो माह तक कई युवकों के आडिशन होने के बाद निखिल का चयन किया गया. इस मेले की परंपरा 1969 से शुरू हुई थी जब सबसे पहले लेखराज महिला बने थे. मेले के आयोजन में मुख्य भूमिका गांधी परिवार की होती है. इस बार लंबे अंतराल के बाद फगडा बनने के लिए गांधी परिवार के युवक का चयन किया गया. पिछली बार अक्षय लोहिया बना था.
तैयार होने मेंलगते है छह से आठ घंटे
युवक को महिला का रूप धारण की प्रक्रिया काफी लंबी होती है. पार्लर की एक पूरी टीम लगती है. युवक के मेनिक्योर पेडिक्योर सहित सभी तरह के श्रृंगार से जुडे काम होते है. उसके पैर से अंगुली के नाखून से लेकर सिर तक महिलाओं से जुडे सभी श्रृंगार करते है. उसे मेहंदी लगाई जाती है. इस दिन से पहले कई बार उसके उबटन किया जाता है. उसके बाद लाल सुर्ख जोडा पहनाया जाता है. इसमें महिलाएं भी उसे तेयार करने में शामिल होती है. तैयार होने के बाद लोग उसके महिला होने पर जरा सा भी संदेह नहीं कर सकते.
इसलिए निकाला जाता है घुड़ला
1578 में अजमेर की शाही सेना ने जोधपुर रियासत के पीपाड के पासगणगौर पूजा कर रहीं कुछ महिलाओं का अपहरण कर लिया था. यह काम सेनापति घुड़ले खां ने किया था. इसका पता लगने पर राव जोधा के पुत्र राव सातल ने वहां जाकर मोर्चा संभाला. घुड़ले खां का सिर काट दिया. इससे पहले उसके सिर पर कई तीर मारे गए थे. उसका सिर महिलाअेां को दे दिया. महिलाएं इसे अपनी विजय के रूप में लेकर घूमी थी. संदेश दिया था कि महिलाओं के साथ बुरा करने का अंजाम बुरा होता है. इसके बाद से धींगा गवर से पहले महिलाएं मिट्टी के मटका जिसके चारों तरफ कई छेद होते है. उसमें दीपक लगाकर घूमती है. छेद वाला मटका घुड़ले खां का प्रतीक बन गया. महिलाएं घरों में घुडला रखती है. कन्याएं इसे उठाकर घूमती है. लेकिन 1969 में जोधपुर में फगडा घुड़ला कमेटी का गठन कर इसे बड़े मेले का रूप दिया गया. फगडे के नाम पर पुरुष को महिला बनाने का क्रम शुरू हुआ.
देर रात शुरु हुई शोभायात्रा
जोधपुर में देर रात बारिश होने के कारण शोभायात्रा रात को 11:00 बजे शुरू हुई और रात को 3:00 बजे घंटाघर के पास गुलाब सागर जाकर समाप्त हुई. इस दौरान सिटी पुलिस, खांडा फलमा, आडा बाजार और कुम्हरिया कुआं की 40 से अधिक झांकियां निकली. सबसे पीछे फगड़ा-घुड़ला में सोलह श्रृंगार के साथ महिला वेशभूषा में सबसे अंतिम पंक्ति में चलने वाला युवक मेले में आकर्षण का केंद्र रहा. झांकियां मनोरंजन के साथ अध्यात्म का दर्शनकरवातीनजरआई.
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