रिपोर्ट – मोहित शर्मा
करौली. राजपूताने की देशी रियासत रही धार्मिक नगरी करौली में महाशिवरात्रि पशु मेला सदियों से यहाँ के मेला ग्राउंड परिसर में आयोजित होता आ रहा है. फागुन मास की शुक्ल पूर्णिमा को लगने वाला यह मेला राजस्थान के प्रमुख पशु मेलों में शुमार है और पूर्वी राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला माना जाता है. लेकिन अब करौली में लगने वाले इस विशाल मेले की रौनक समय के साथ साथ घटती जा रही है. करीब 10 साल पहले इस मेले में हजारों की संख्या में पशु आते थे. जिसमें वर्तमान की बात की जाए तो अब 500 पशु भी इस मेले में नहीं आते हैं. जिसका सबसे बड़ा कारण है सुविधाओं में कमी.
250 वर्ष पुराना है इस पशु मेले का इतिहास
करौली के इतिहास की जानकारी रखने वाले वरिष्ठ इतिहासकार वेणुगोपाल शर्मा ने बताया कि करौली का महाशिवरात्रि पशु मेला ऐतिहासिक मेला है. जो आज से करीब 250 वर्ष पहले राजा हरबक्श पाल के समय में शुरू हुआ था. उस समय इस मेले के पुरे परिसर को कलकता कहते थे. राजा के पुत्र अमोलक पाल ने इस मेले के परिसर का नाम कलकता रखा था. जिसे वर्तमान में मेला ग्राउंड के नाम से जाना जाता है. इस मेले में बहुत दूर-दूर से लोग पशु खरीदने आते थे. करौली में लगने वाले इस मेले में उस समय बहुत चुनिंदा पशु मिलते थे. और पूरे उत्तर भारत में इस मेले की पहचान थी. मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब तक के लोग यहां बड़ी संख्या में पशु खरीदने आते थे.
प्रमुख रूप से बैलों का था यह मेला
इतिहासकार वेणु गोपाल शर्मा का कहना है कि महाशिवरात्रि पर लगने वाला यह मेला प्रमुख रूप से बैलों का था. इतिहास के पन्नों के अनुसार 26 फरवरी 1919 को झांसी से कैप्टन डन इस मेले में बैल खरीदने आए थे. पहले इस मेले में अच्छी-अच्छी नस्ल के घोड़े और बैल मिलते थे. जिनका किसान खेती में उपयोग करते थे. लेकिन आधुनिक मशीनरी आने के कारण यह मेला ऊंटों में सिमटकर रह गया है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पहले जो इस मेले की ख्याति थी वह पहले अधिक थी और अब कम है. वर्तमान में जो इसकी बेरूनी स्थिति दिखाई देती है. उससे अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता यह इतना ऐतिहासिक मेला रहा होगा.
प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं इस मेले के प्रश्न
सबसे खास बात यह है कि राजस्थान के इस प्रमुख महाशिवरात्रि पशु मेले के कई प्रतियोगी परीक्षाओं में भी प्रश्न पूछे जाते हैं. यही कारण है कि कई जीके की पुस्तकों में भी इस मेले का विस्तार से लेख देखने को मिलता है. पहले यह मेला रियासत काल में रियासत के अधीन रहता था. जो सरकार के अधीन आ जाने के बाद अब हर साल पशुपालन विभाग द्वारा आयोजित किया जाता है.
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