रिपोर्ट: शक्ति सिंह
कोटा. नवरात्र में माता की महिमा का गुणगान, पूजन व दर्शन खास फल देने वाला माना गया है. देवी की प्रसन्नता के लिए कोई व्रत रखता है तो कोई उपवास तो कोई देवी के पाठ में तल्लीन हो जाता है. कोटा के सभी माता मंदिरों में 9 दिनों तक माता के भजन और अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा. साथ ही शाम को महाआरती का भी आयोज होगा. वैसे तो तो कोटा में काफी प्राचीन देवी मंदिर हैं. लेकिन, यहां स्थित दाढ़ देवी मंदिर की काफी मान्यता है. माना जाता है कि यहां के कुंड के पानी का फसलों पर छिड़काव करने से फसल खराब नहीं होती.
घने जंगलों के बीच बना है मंदिर
इतिहासकार फिरोज अहमद ने बताया कि कोटा शहर से 10 किलोमीटर दूर घने जंगलों के बीच दाढ़ देवी का मंदिर स्थित है. इतिहासकार के अनुसार 13—14 शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण हुआ था. जिसे कैथून के तंवर शासकों द्वारा बनवाया गया था. यहां माता रक्त दंतिका देवी विराजित हैं, क्योंकि देवी की दाढ़ बाहर निकली हुई है. इस कारण देवी का नाम दाढ़ देवी कर दिया और मंदिर इसी नाम से विख्यात हो गया. यहां मंदिर के बाहर स्थित कुण्ड श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है. मंदिर में आने वाले श्रद्धालु इस कुंड के पानी को ले जाकर अपने खेतों में छिड़काव करते हैं, जिससे फसलों में कीड़े और रोग नहीं लगते. साल में दो बार नवरात्र में यहां मेला लगता है. काफी दूरदराज से श्रद्धालु इस मंदिर में पहुंचते हैं. कई श्रद्धालु पैदल नंगे पांव अपनी मनोकामना लेकरपहुंचते हैं. साथ ही जिन श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण हो जाती है. वे लोग माताजी को चढ़ावा चढ़ाने भी पहुंचते हैं.
रियासतकाल में दागी जाती थी तोप
दाढ़ देवी कैथून के तंवर क्षत्रियों की इष्ट देवी है. रियासतकाल में दशहरा के समय कोटा के महाराव माता के पूजन के लिए लवाजमें के साथ जाते थे. माता के पूजन के समय तोप दागी जाती थी. कुछ बदलाव के साथ कुछ परम्पराएं अब भी निभाई जाती हैं. आज भी पूर्व राजपरिवार के सदस्य नवरात्र में दाढ़ देवी के दर्शन व पूजन को जाते हैं. वर्तमान में मंदिर की व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी देवस्थान विभाग के पास है.
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