रिपोर्ट: कृष्ण कुमार
नागौर. न्यूज 18 आपको आज नागौर के एक ऐसे तालाब के बारे में बताने जा रहा है जो कि संतो की देन से भरा रहता था. नागौर के रोल कस्बे के पास अलनाव तालाब स्थित है जो कि संतो की तपस्या के लिए जाना जाता था. वहां परआज भी साधु द्वारा की गई तपस्या की कुटिया बनी हुई है. नागौर के इस तालााब को लेकर एक बेहद रोचक कहानी जुड़ी हुई है. ग्रामीण बताते है कि इस तालाब को लेकर साधुओं की बड़ी महत्वता जुड़ी हुई है. इस तालाब का निर्माण 500 वर्षो से अधिक पुराना है.
500 साल पुराना तालाब का इतिहास
ग्रामीण चूनाराम ने बताया कि इस तालाब का निर्माण 500 वर्षों से अधिक पुराना है. इसका निर्माण अरणाकाम बिंणजारा द्वारा करवाया गया था. इस तालाब के साथ में तीन और गांवो में नाडी का निर्माण करवाया गया था. कहते है कि यहां पर बिणजारों द्वारा व्यापार करने लिए रोल व बुगरड़ा गांव की सीमा ( काकड़) पर रुके थे. वहां पर पानी की सुविधा नहीं होने पर तालाब का निर्माण करवाया गया और इस तालाब को अलनाव तालाब के नाम से जाना गया. इसके बाद साधु संतो की यह तपस्या स्थली बन चुका था.
साधुओं से जुड़ा तालाब का रहस्य
इस तालाब को लेकर साधुओं को लेकर इतिहास जुड़ा हुआ हैं. कहते है कियहां पर संत लक्ष्मण दास और मूर्खदास जी ने तपस्या की. ग्रामीणों की जानकारी के अनुसार यहां परगांव में अकाल पड़ने पर लक्ष्मणदास जी के चमत्कार के कारण एक मटकी के जल से अलनाव तालाब को वापिस जल से भर दिया था. प्राचीन समय में यह तालाब आस पास के 5-6 गांवों की प्यास बुझाने का कार्य करता था.
वर्तमान समय में पानी को तरस रहा तालाब
यह ऐतिहासिक तालाब वर्तमान समय में पानी से खुद तरस रहा है. क्योंकि यह तालाब वर्तमान समय में खाली पड़ा हैं. इस तालाब के घाट पर साधुओं की कुटियां और बाबा रामदेव का मंदिर बना हुआ है.
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