रिपोर्ट: प्रदीप कुमार
श्रीगंगानगर. कहते हैं कि जब इंसान किसी कार्य को लगन के साथ करे तो कुछ भी असम्भव नहीं है. कुछ ऐसी ही दिलचस्प ओर रोचक कहानी है सूरतगढ निवासी पूनमचंद सुराणा की. नागौर निवासी पूनमचंद सुराणा वर्ष 1982 में किसी काम की तलाश में नागौर से सूरतगढ़ आए थे. काम की तलाश करते—करते रजाई बनाने का खुद का एक छोटा सा कारोबार शुरू किया. आज वे रजाई, बैडशीट, बैड कवर, तकिया अन्य प्रोडेक्ट के बड़े व्यवसायी बन गए हैं.
पूनमचंद सुराणा ने बताया कि जब 1982 से पहले वो रुई से सर्जिकल रुई बनाने का काम करते थे. इसके बाद से उनके मन मे रजाई बनाने की ओर अपना खुद का कारखाना खोल लिया. पूनमचंद सुराणा बताते हैं कि सन 1992 से 2003 तक वो रुई से रजाईयां बनाकर बेचते थे. उसके बाद धीरे धीरे सिलकोनाइज फाइबर का चलन बढ़ा और रुई का उत्पादन कम होने लगा तो अब सिलकोनाइज फाइबर से तैयार रजाईयां बनाकर भारत के अनेक हिस्सो में सप्लाई करते हैं.
विदेशी मशीनों से बनती हैं रजाई
पूनमचंद सुराणा ने बताया कि भारत में डिज़ाइनिंग मशीनों की अनुपलब्धता के कारण उन्होंने चीन से डिजाइनिग मशीन मंगाई. इस डिजाइनिंग मशीन में 50 सुई एक साथ चलती हैं, जिससे एक साथ कपड़े पर डिजाइन तैयार होते हैं और करीब एक घंटे में 100 से ज्यादा रजाइयों का कपड़ा तैयार होता है.
कम खर्च में तैयार हो जाती हैं सिलकोरनाइज फाइबर की रजाई
पूनम चंद सुराणा ने बताया कि रूई के कम उत्पादन के चलते वे रजाई व तकियों में सिलकोनाइज फाइबर उपयोग करते है. जिसका उत्पादन मुख्यत पेट्रो रिफाइनरी से होता है. जो कि मुख्यतः जामनगर, गुजरात व दिल्ली व होशियारपुर में मिलता है. क्योंकि रूई से बनी रजाई की धुलाई करने से रूई टूट जाती है, वहीं वजन भी ज्यादा होता है. सिलकोनाइज फाइबर की रजाई रूई की रजाई की तुलना में कम खर्च में तैयार हो जाती हैं.
पूनमचंद सुराणा ने बताया की कारखाने की शुरुआत के दौरान वे कच्चा माल खरीदने बाहर जाते थे और उसी के साथ मार्केटिंग का काम शुरू कर दिया और अपने द्वारा निर्मिइत प्रोडक्ट को देश के विभिन्न राज्यों में भेजने लगे और प्रोडक्ट की अलग पहचान होने के कारण देश के अलग अलग हिस्सों सप्लाई करते हैं. वहीं राजस्थान में गर्मी के मौसम में डिमांड नहीं होने पर ठंडे इलाके जैसे लेह लदाख, जम्मू कश्मीर सहित अन्य राज्यों में वे रजाई सप्लाई करते हैं.
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