रिपोर्ट: निशा राठौड़
उदयपुर. मेवाड़ के आराध्य देव के रूप में पूजे जाने वाले प्रभु सांवलिया सेठ प्रदेश के सबसे अमीर भगवानों में से एक है. यहां पर हर महीने करोड़ों रुपये का चढ़ावा आता है. इसके साथ ही विदेशी मुद्रा और सोने-चांदी की वस्तुएं भी भक्त यहां पर भेंट करते हैं. भगवान सांवलिया के मंदिर परिसर में बने खुले चौक में इन करोड़ों रुपए की गणना मंदिर परिसर के सदस्यों द्वारा की जाती है. हर महा चतुर्दशी के मौके पर इस भंडारे को खोला जाता है.
इस महीने सांवलिया सेठ के भंडार से निकले 10 करोड़ 01 लाख 33 हजार रुपए
मेवाड़ के प्रसिद्ध कृष्णधाम सांवलिया जी में भगवान श्री सांवलिया सेठ के भंडार से 10 करोड़ 01 लाख 33 हजार रुपए निकले. इस बार होली के मौके पर भगवान श्री सांवलिया सेठ के भंडारसे प्राप्त राशि की गणना तीन चरणों में की गई. होलिका दहन के दिन डेढ़ माह में भंडार खोला गया था. होलिका दहन के दिन प्रथम चरण में की गई गणना में 07 करोड़ 15 लाख 10 हजार रुपए की राशि प्राप्त हुई थी. शेष बची राशि की गणना गुरुवार को दूसरे चरण में की गई. गुरुवार को की गई गणना में 02 करोड़ 16 लाख 55 हजार रुपए की राशि प्राप्त हुई. शुक्रवार को गणना के अंतिम दौर तीसरे चरण की गणना में 69 लाख 68 हजार रुपए की राशि प्राप्त हुई. भगवान श्री सांवलिया सेठ के भंडार से प्राप्त सम्पूर्ण राशि की गणना में तीनों चरणों में कुल 10 करोड़ 01 लाख 33 हजार रुपए की राशि प्राप्त हुई. साथ ही भंडार से 849 ग्राम सोना और10 किलो चांदी भी प्राप्त हुई. इधर मंदिर मंडल भेंट कक्ष औरकार्यालय में नगद औरमनीआर्डर के रूप में 01 करोड़ 13 लाख 11 हजार रुपए, 164 ग्राम 400 मिलीग्राम सोना और21 किलो 926 ग्राम 190 मिलीग्राम चांदी भेंट स्वरूप प्राप्त हुई.
प्रमुख कृष्ण धाम मंदिर,रोजाना हजारों भक्त आते है
उदयपुर संभाग के चित्तौड़ जिले में स्थित मंडफिया गांव में सांवलिया सेठ का मंदिर बना हुआ है. यह मेवाड़ का प्रमुख कृष्ण धाम मंदिर है. यह आस्था का प्रमुख केंद्र माना गया है. मंदिर में हजारों भक्तों रोजाना दर्शन करने पहुंचते हैं अमावस्या के मौके पर यहां पर हर महीने मेले का आयोजन किया जाता है.
सेठों के सेठ की उपाधि दी गई भगवान को,कई व्यापारियों के पार्टनर
सावलिया जी मंदिर के भगवान को सेठों के सेठ की उपाधि दी गई है. माना जाता है कि भगवान को कई व्यापारियों ने अपना पार्टनर बना रखा है और अपने व्यापार के लाभ में से हिस्सा भगवान को चढ़ावे के रूप में चढ़ाते हैं. इसी के चलते यहां पर करोड़ों रुपए का चढ़ावा हर महीने एकत्रित होता है. न सिर्फ भारतीय बल्कि विदेशों में भी रहने वाले व्यापारियों ने भी भगवान सांवलिया सेठ को पार्टनर बनाया है जिससे इन्हें यह उपाधि दी गई है.
मीरा के गिरधर गोपाल की मूर्ति मानी जाती है सांवलिया सेठ की प्रतिमा
चित्तौडगढ़ के मंडफिया स्थित श्री सांवलिया सेठ का मंदिर करीब 450 साल पुराना है. मेवाड़ राजपरिवार की ओर से इस मंदिर का निर्माण करवाया है. ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री सांवलिया सेठ का संबंध मीरा बाई से है. किवदंतियों के अनुसार सांवलिया सेठ मीरा बाई के वही गिरधर गोपाल है, जिनकी वह पूजा किया करती थी.
तत्कालीन समय में संत-महात्माओं की जमात में मीरा बाई इन मूर्तियों के साथ भ्रमणशील रहती थी. दयाराम नामक संत की ऐसी ही एक जमात थी जिनके पास ये मूर्तियां थी. बताया जाता है की जब औरंगजेब की सेना मंदिरों में तोड़-फोड़ कर रही थी तब मेवाड़ में पहुंचने पर मुगल सैनिकों को इन मूर्तियों के बारे में पता लगा. मुगलों के हाथ लगने से पहले ही संत दयाराम ने प्रभु- प्रेरणा से इन मूर्तियों को बागुंड-भादसौड़ा की छापर में एक वट- वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदकर पधरा दिया.
किवदंतियों के अनुसार में कालान्तर में सन 1840 मे मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुर्जर नामक ग्वाले को सपना आया की भादसोड़ा-बागूंड गांव की सीमा के छापर में भगवान की तीन मूर्तिया जमीन में दबी हुई हैं. जब उस जगह पर खुदाई की गई तो सपना सही निकला और वहां से एक जैसी तीन मूर्तिया प्रकट हुईं.
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