रिपोर्ट-निशा राठौड़
उदयपुर.कहते हैं कि मेहनत से तकदीर बदली जा सकती है कुछ ऐसे ही संघर्ष की कहानी उदयपुर शहर के भदेसर गांव के रहने वाले मोहन खटीक की भी है. मधुमेन के नाम से प्रख्यात मोहन खटीक न सिर्फ खुद के लिए बल्कि अब दूसरों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी कार्य कर रहे हैं. 10 मधुमक्खियों के डिब्बों से शुरू हुआ यह सफर अब करीब 125 मधुमक्खी के डिब्बों तक पहुंच चुका है. साथ ही यह गांव के अन्य ग्रामीणों को भी इस रोजगार से जोड़ रहे हैं.
कभी करते थे हीरा घिसाई का काम, अब खुद बनें हीरा
मोहन खटीक ने बताया कि वह गुजरात में हीरा घसाई का कार्य किया करते थे. जिससे उन्हें महीने का करीब 3 से ₹4000 मेहनताना मिला करता था. लेकिन अपने गांव लौटने के बाद उन्होंने 10 वर्ष पहले अपने किसी दोस्त की राय पर मधुमक्खी पालन करना अपने खेतों में शुरू किया. इसके बाद यह सफर लगातार आगे बढ़ता गया और सालाना करीब 7 से ₹8 लाख की अतिरिक्त आय मधुमक्खी पालन से कर रहे है. यही नहीं मोहन अब अपने गांव के अन्य ग्रामीणों के लिए भी रोजगार के साधन उपलब्ध करा रहे है. जिससे ग्रामीणों का कहना है की मोहन हमारे गांव का हीरा है.
10 डिब्बों से शुरू किया मधु मक्खी पालन, अब अपने प्रोडक्ट्स बेच रहे बाजारों में
मधुमेन मोहन लाल खटीक ने बताया कि उन्होंने अपने खेत की कुछ हिस्से में 10 डिब्बों से मधुमक्खी पालन शुरू किया.अब यह संख्या बढ़ कर करीब 125 हो चुकी है. वह अपने खेत पर ही इनका शहद निकलते है. जिसे जय भेरुनाथ शहद के नाम से बाजार में बेचते है. राजस्थान के साथ ही गुजरात महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश में भी इनके शहद की डिमांड बढ़ी है.
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