जैन समाज महारासा
रिपोर्ट-निशा राठौड़
उदयपुर. प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवति आचार्य श्री शांति सागर जी की सन 1934 की चातुर्मास स्थली आयड़ उदयपुर में उन्ही की अक्षुण्ण मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परंपरा के पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिघि 108 आचार्य श्री वर्धमानसागर जी का भव्य मंगल प्रवेश हुआ है. इसी परंपरा के मुनि 108 श्री दयासागर जी से दीक्षित गणिनी आर्यिका 105 श्री सुप्रकाशमति माताजी ने संघ सहित आगवानी की है. इस आशीर्वाद मिलन को देखने के लिए हजारों श्रावक-श्राविकाएं सहित समाज के लोग मौजूद रहे. झीलों की नगरी में मंगल प्रवेश के बाद लोगो ने खूब अनुमोदना की है.
आचार्य 108 श्री वर्धमान सागर जी ने अपने दादा आचार्य श्री की चातुर्मास स्थली आयड़ में प्रवेश कर रोमांचित और प्रसन्न हुए. वात्सल्य वारिघि पंचम पट्टाधीश 108 आचार्य श्री वर्धमान सागर जी गुरुदेव का 30 साधुओं सहित झीलों की, 18 जिनालयों की नगरी में संघस्थ साधु मुनि श्री चिन्मय सागर जी,मुनि श्री प्रशम सागर जी, मुनि श्री प्रबुद्ध सागर जी ,आर्यिका श्री मुदित मति माताजी, आर्यिका श्री प्रणत मति जी की जन्म नगरी उदयपुर के लिए विहार चल रहा है. संघ का उदयपुर की उप नगर सीमा में प्रवेश चल रहा है. अप्रैल और मई माह में आचार्य श्री संघका समागम प्राप्त होगा. विदेश में रहने वाले भक्त भी बाल ब्रह्मचारी श्री गजू भैय्या एवम् श्री परमीत के अनुसार 29 मार्च को प्रातः प्रतिक्रमण , श्री जी के अभिषेक पश्चात आचार्य संघ की आहार चर्या आयड मे हुई है.
आचार्य श्री ने अपने प्रवचन में प्रथमचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के वर्ष 2024 में होने जा रहे आचार्य पदारोहण के शताब्दी वर्ष को पूरे भारतवर्ष में बड़े उत्साह से आयोजित करने की प्रेरणा देते हुए झीलों की नगरी उदयपुर को धर्मनगरी बताते हुए भगवान महावीर स्वामी के संदेशों को प्रेरक बताते हुए उनकी व्याख्या की.
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