टी20 वर्ल्ड कप में 2007 अगर उम्मीदों का साल था तो 2009 उलटफेरों का. 2007 में धोनी के धुरंधरों ने ट्रॉफी जीती. सचिन, गांगुली, सहवाग के बिना उतरी टीम इंडिया तब अपने साथ उम्मीद लेकर गई थी और ट्रॉफी लेकर आई थी. लेकिन 2009 में तस्वीर पूरी तरह बदली हुई थी. इस साल टी20 वर्ल्ड कप का दूसरा एडीशन खेला गया. इस बार टीमें ज्यादा तैयारी के साथ उतरीं. ज्यादा भरोसा लेकर उतरीं.
यह अलग बात है कि इस बार क्रिकेट ने कुछ और ही सोच रखा था. ‘जेंटलमेन गेम’ ने इस बार अपना चिरपरिचित रंग दिखाया और उलटफेरों – अनिश्तिताओं का ऐसा रंगमंच सजा कि ऑस्ट्रेलिया पहले ही राउंड में बाहर हो गया. वहीं, 2007 में चैंपियन का रुतबा हासिल करने वाले भारत ने हार की हैट्रिक बनाई. वह दूसरे राउंड में अपने सारे मैच हार गया. खिताब जीता उस पाकिस्तान ने, जिसके खेल की गारंटी दुनिया में शायद ही कोई ले सके.
तो वर्ल्ड कप टेल्स के दूसरे एपिसोड में आज बात, इसी उलटफेर वाले वर्ल्ड कप की. यह वर्ल्ड कप इंग्लैंड में खेला गया. अंग्रेजों की धरती एशियाई टीमों को कभी ज्यादा रास नहीं आई. हां, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका और वेस्टइंडीज की ताकत यहां दुगनी हो जाती है. और मेजबानों के तो कहने ही क्या…
भारतीय टीम भी इस बार ज्यादा ताकत के साथ उतरी. वीरेंद्र सहवाग, जहीर खान की वापसी हुई तो रवींद्र जडेजा जैसा रंगरूट पहली बार टीम का चेहरा बना. कुल मिलाकर यह टीम कागज पर 2007 से बेहतर नजर आ रही थी. लेकिन कहते हैं ना… मुकाबले यदि कागज पर हुआ करते तो बात ही क्या थी. खैर, भारतीय टीम ने पहले राउंड में अपने दोनों मैच आसानी से जीते. उसने बांग्लादेश को 25 रन और आयरलैंड को 6 विकेट से हराया. इस तरह वह दूसरे राउंड में आ पहुंची. जहां उसके सामने दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और वेस्टइंडीज थे. इन तीनों ही टीमों ने भारत को हराया और इसके साथ ही ‘धोनी ब्रिगेड’ का खेल खत्म हो गया.
उधर, ऑस्ट्रेलिया पहले ही राउंड में श्रीलंका और वेस्टइंडीज से हारकर घर लौट चुका था. भारत को हराने वाले अंग्रेज भी सेमीफाइनल तक नहीं पहुंच पाए. न्यूजीलैंड की उड़ान भी टॉप-4 से पहले ही थम गई. लेकिन पाकिस्तान ने पहले राउंड में इंग्लैंड से मिली हार के बाद ऐसी वापसी की कि दुनिया को अगला चैंपियन नजर आने लगा. उसने सुपर-8 में न्यूजीलैंड को 6 विकेट और आयरलैंड को 39 रन के बड़े अंतर से हराया. पाकिस्तान का यह प्रदर्शन इसलिए भी काबिलेगौर था कि वह इस टूर्नामेंट में अपने नंबर-1 गेंदबाज शोएब अख्तर के बिना उतरा था.
यह तकरीबन ऐसी ही स्थिति थी, जैसी इस बार भारत की है. भारत इस बार जसप्रीत बुमराह के बिना वर्ल्ड कप खेलेगा, जो मौजूदा समय के सबसे बेहतरीन गेंदबाज हैं. बदकिस्मती से बुमराह चोटिल हो गए हैं. 2009 में पाकिस्तान को भी अख्तर की चोट से झटका लगा था, लेकिन तब वह इससे उबरने में कामयाब रहा.
बहरहाल, टी20 वर्ल्ड कप की ओर वापस लौटते हैं. सेमीफाइनल में पाकिस्तान का सामना दक्षिण अफ्रीका से हुआ. पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका का यह मुकाबला शाहिद अफरीदी के लिए याद किया जाता है, जिसमें उन्होंने ना सिर्फ 34 गेंद पर 51 रन की बेशकीमती पारी खेली, बल्कि 2 विकेट भी झटके. उधर, दूसरे सेमीफाइनल में श्रीलंका ने वेस्टइंडीज का काम तमाम किया. इस तरह इंग्लैंड की धरती पर दो एशियाई टीमों के बीच फाइनल मुकाबला सेट हो गया.
उलटफेरों का दौर अब फाइनल का रुख कर चुका था. सामने दो ऐसी टीमें थी, जो एकदूसरे की रग-रग से वाकिफ थीं. दोनों टीमों के पास बेहतरीन तेज गेंदबाज थे, लेकिन उनकी असली ताकत स्पिन अटैक ही थी. स्पिन-पेस के इस फेर में सबसे पहले श्रीलंका फंसा. वह 20 ओवर के इस खेल में 138 रन ही बना सका. श्रीलंका को इस स्कोर पर रोकने में सबसे अहम भूमिका अब्दुल रज्जाक ने निभाई थी, जिनकी ताकत पेस या स्पिन नहीं, बल्कि सहज और सटीक गेंदबाजी थी. रज्जाक ने अपने पहले ही स्पेल में सनथ जयसूर्या, महेला जयवर्धने और जेहान मुबारक का काम तमाम किया और बाकी का काम दूसरे गेंदबाजों ने संभाला.
अगर फाइनल मुकाबला हो तो अक्सर छोटा लगने वाला स्कोर भी बड़ा साबित होता है. वर्ल्ड कप का इतिहास इस बात को बखूबी साबित करता है. लेकिन पाकिस्तान ने इस बार किसी रिकॉर्ड की ओर नहीं देखा. सेमीफाइनल की तरह फाइनल में शाहिद अफरीदी का तूफान देखने को मिला. इस कमाल के खिलाड़ी ने 40 गेंद पर 54 रन की खूबसूरत पारी खेली और लंका की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. कप्तान यूनिस खान ने ट्रॉफी उठाई और पाकिस्तान ने फिर साबित किया कि क्रिकेट एक खिलाड़ी से नहीं चलता. अगर टीम में जिद और जुनून हो तो शोएब अख्तर जैसे खिलाड़ी की कमी भी नहीं खलती. रेस्ट इज हिस्ट्री…
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