IND vs AUS: यह भारत की युवाशक्ति की जीत है, इसे आंकड़ों में तौलने की गलती मत करिए

भारत ने बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में 2-1 से जीत हासिल की.
India vs Australia: भारतीय टीम के एडिलेड में 36 रन पर आउट होने के बाद माना जा रहा था कि ऑस्ट्रेलिया 'क्लीन स्वीप' करेगा. इस बारे में प्रशंसक, आलोचक और पूर्व खिलाड़ियों के बीच यही आम राय थी. इस बारे में मैंने साथी क्रिकेट लेखकों और कुछ पूर्व क्रिकेटरों के साथ एक सर्वे किया और शायद ही किसी ने असहमति जताई हो.
- News18Hindi
- Last Updated: January 20, 2021, 8:55 PM IST
भारत और ऑस्ट्रेलिया (India vs Australia) के बीच हुई क्रिकेट सीरीज हम जीत गए, ये जीत ऐतिहासिक हो गई. यह इच्छाशक्ति की जीत है. क्या कोई भी इस ऐतिहासिक और महान क्रिकेट सीरीज जीत के बारे में सोच सकता था? नहीं, ऐसा तो शायद ही किसी ने सोचा हो. हम एडिलेड में हुए मैच की दूसरी पारी में मात्र 36 रन बना सके थे. ऑस्ट्रेलिया ने उस मैच को 8 विकेट के अंतर से जीता था. यह एक बड़ा अंतर तो नहीं है, लेकिन जिस तरह से भारतीय टीम का पतन हुआ वह बहुत निराशाजनक था. ऐसा लग रहा था कि हार की इस घटना के बाद भारतीय टीम शायद ही उबर पाए. भारत टीम के प्रशंसक भी उससे उम्मीद छोड़ चुके थे.
एडिलेड में भारतीय टीम के प्रदर्शन के बाद ऑस्ट्रेलिया के 'क्लीन स्वीप' को लेकर प्रशंसक, आलोचक और पूर्व खिलाड़ियों के बीच यही आम राय थी. इस बारे में मैंने साथी क्रिकेट लेखकों और कुछ पूर्व क्रिकेटरों के साथ एक सर्वे किया और शायद ही किसी ने असहमति जताई हो. सब लोगों के मन में यही बात थी कि अब ऑस्ट्रेलिया सारे मैच जीत जाएगी. केवल एक साथी ने कहा था कि यदि बारिश हो जाए तो भारत एक टेस्ट उबार सकता है.
यह निंदनीय नहीं था, जैसा अब लग सकता है; बल्कि यह तो सच्चाई थी. जब एक टीम इस तरह के शर्मनाक पतन से गुजरे और वह भी अपने दौरे की शुरुआत में ही, तो उस स्थिति से उबर पाना बहुत मुश्किल हो जाता है. 1974 में लॉर्ड्स के मैदान पर भारत को सबसे कम स्कोर 42 पर इंग्लैंड ने आउट कर दिया था और तब इंग्लैंड ने अगले मैच में भारत को एक पारी से हराया था और सीरीज 3-0 से अपने नाम की थी.
इस तरह के बड़ी असफलताएं खिलाड़ियों के दिमागों पर कहर बरपा देती हैं. इतनी बुरी हार तो सबसे अच्छे खिलाड़ी भी अपना आत्मविश्वास खो सकता है, वह पराजयवादी बन सकता है. ऐसी निराशा तो पूरी टीम को अपनी चपेट में ले सकती है. ऐसे संकट के समय सीनियर साथियों की प्रतिक्रिया, उनके बातचीत में उपयोग किए गए शब्दों और उनकी बॉडी लैंग्वेज पर जूनियर्स की निगाहें थमी रहती हैं. ऐसे में निराशा का एक सुझाव पहले से ही कठिन परिस्थिति को विनाशकारी बना सकता है.
मैं इस श्रृंखला के तथ्यों और आंकड़ों पर बात नहीं करूंगा, भारतीय टीम में आए बड़े बदलाव को उजागर करते हैं क्योंकि ये पहले से सार्वजनिक डोमेन में हैं और वह भी भरपूर मात्रा में.
मैं उस बदलाव पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं जिसके कारण भारतीय टीम ने यह करिश्मा संभव कर दिखाया. दौरे की शुरुआत के पहले मुख्य कोच रवि शास्त्री के साथ हुई बातचीत पर फिर से ध्यान देना होगा क्योंकि यह बहुत महत्वपूर्ण है. रवि शास्त्री ने इस सीरीज को लेकर दो बातों पर जोर दिया था. पहली बात थी व्यक्तिगत और टीम के गौरव की. उन्होंने कहा था कि पूर्णआत्मविश्वास हो कि हम ऑस्ट्रेलिया को हरा सकते हैं. रवि शास्त्री ने कहा कि अगर ऑस्ट्रेलिया ये समझ जाए कि आप में लड़ने की शक्ति नहीं है तो वह आप को हरा देंगे. दूसरी बात हर पंच का काउंटरपंच तैयार हो. बल्लेबाजी हो या गेंदबाजी हर बात का माकूल जवाब दिया जाए. इस बात का कोई संकेत नहीं होना चाहिए कि आप किसी भी तरह से कमतर हैं. शास्त्री ने कहा कि यही चर्चा कई खिलाड़ियों के साथ लगातार की गई. न्यूजीलैंड के पिछले सीजन और कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान जब भी संभव हुआ ऐसी चर्चा लगातार होती रहीं.
यह दोनों बातें बताती हैं कि भारत ने किस तरीके से अपने आप को जवाबी हमले के लिए तैयार किया. साथ ही किस तरीके से टीम प्रबंधन और सीनियर खिलाड़ियों ने एडिलेड की हार के बाद तेजी से अपने आपको संगठित किया. मुझे लगता है कि क्रिकेट कौशल से इतर इन बताए गए पहलुओं की दिशा में फोकस को थोड़ा सा बदलने के बाद यह संभव हो पाया है. यह पहलू आमतौर पर खेल रडार से नीचे होते हैं लेकिन अब उत्कृष्टता और सफलता के लिए यह बातें अमूल्य हो गई हैं.

टीम मैनेजमेंट के सामने सबसे बड़ी चुनौती एडिलेड की हार के बाद आत्मविश्वास बहाल करने की थी. 1 घंटे के भीतर टीम 36 रनों पर आउट हो गई थी, भारत के लिए अपने टेस्ट क्रिकेट इतिहास में यह सबसे कम रन है. यह भी जानना होगा कि इससे पहले आईसीसी ने भारत को टेस्ट रैंकिंग के दूसरे स्थान पर रखा था, ऐसी टीम से 36 रनों जैसी परफार्मेंस की शायद किसी ने कल्पना की हो.
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टीम के लिए इस बात को तर्कसंगत बनाया गया ऐसी घटनाएं कई दशकों में एक बार होती हैं. दुर्भाग्य से यह हमारे साथ हो गया. चलो इससे आगे बढ़ा जाए. इसके लिए जरूरी था फोकस में बदलाव ताकि टीम निराशा के गहरे गड्ढे में ना गिरे. अब धैर्य, दृढ़ संकल्प, गर्व और महत्वाकांक्षा की अपेक्षाकृत ज्यादा जरूरत थी.
वहीं, ऑस्ट्रेलिया 2018 में मिली हार के बाद इस सीरीज को जीतने के लिए बेताब था. उसकी अधीरता में गलती होने की ज्यादा गुंजाइश थी. अब तय किया गया कि उनको नीचे झुकाने के लिए उन पर हमला बोला जाए. चाहे जो हो जाए अपने डर के लक्षण ना दिखाएं. केवल लड़ते रहे. हालांकि शास्त्री और कप्तान राहाणे को उम्मीद नहीं थी कि इस सीरीज में किस तरीके के घटनाक्रम सामने आएंगे?

टीम के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज विराट कोहली के पितृत्व अवकाश पर घर लौटने की जानकारी पहले से थी इसलिए यह बड़ा नुकसान नहीं बनी इसके लिए पहले से योजना को बनाकर रख लिया गया था. जिस बात की जानकारी नहीं थी वह थीं चोटें. सीरीज के बढ़ने के साथ साथ ये चोटें भी बढ़ती गई. पहले ही टेस्ट में शमी और दूसरे में उमेश तीसरे में अश्विन, जडेजा, बिहारी और बुमराह एक के बाद एक घायल हुए. सिडनी में तो हालत सबसे नाजुक थी ऐसा शायद ही कभी हुआ हो.
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गाबा में हुए चौथे टेस्ट में सीनियर खिलाड़ियों के चोटिल होने के कारण भारत का दारोमदार नए खिलाड़ियों पर ही था और खास तौर पर गेंदबाजी पर. इधर भारत की ओर से गेंदबाजी में मोहम्मद सिराज अपना तीसरा टेस्ट खेल रहे थे तो दो अन्य गेंदबाजों के लिए यह दूसरा मैच था और अन्य दो तो अपना पहला टेस्ट खेल रहे थे.
वहीं, ऑस्ट्रेलिया के लिए गाबा का मैदान अभेद किला था जिसमें वह पिछले 32 सालों में कभी भी टेस्ट नहीं हारा था. ऐसी परिस्थितियों में यहां होने वाले भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच टेस्ट का परिणाम हमेशा की तरह ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में लग रहा था. लेकिन 5 दिनों के आकर्षक और जोरदार क्रिकेट में इस नतीजे को एकदम से बदल दिया. भारत में असंभव को संभव कर दिखाया. मैं उन खिलाड़ियों को याद रखूंगा जिन्होंने इस ऐतिहासिक सीरीज की जीत को संभव बनाया. इनमें से कई ने अहम योगदान दिए, भले ही वे अंकों में प्रभावशाली ना हों लेकिन यह एक विजय थी, यह इच्छाशक्ति की विजय थी जो कि दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण है. इसने साबित किया कि भारत की टीम दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कॉमेंटेटर हैं. देश-विदेश के अखबारों और पत्रिकाओं में कॉलम लिखते हैं. यह लेखक के निजी विचार हैं.)
एडिलेड में भारतीय टीम के प्रदर्शन के बाद ऑस्ट्रेलिया के 'क्लीन स्वीप' को लेकर प्रशंसक, आलोचक और पूर्व खिलाड़ियों के बीच यही आम राय थी. इस बारे में मैंने साथी क्रिकेट लेखकों और कुछ पूर्व क्रिकेटरों के साथ एक सर्वे किया और शायद ही किसी ने असहमति जताई हो. सब लोगों के मन में यही बात थी कि अब ऑस्ट्रेलिया सारे मैच जीत जाएगी. केवल एक साथी ने कहा था कि यदि बारिश हो जाए तो भारत एक टेस्ट उबार सकता है.
यह निंदनीय नहीं था, जैसा अब लग सकता है; बल्कि यह तो सच्चाई थी. जब एक टीम इस तरह के शर्मनाक पतन से गुजरे और वह भी अपने दौरे की शुरुआत में ही, तो उस स्थिति से उबर पाना बहुत मुश्किल हो जाता है. 1974 में लॉर्ड्स के मैदान पर भारत को सबसे कम स्कोर 42 पर इंग्लैंड ने आउट कर दिया था और तब इंग्लैंड ने अगले मैच में भारत को एक पारी से हराया था और सीरीज 3-0 से अपने नाम की थी.
इस तरह के बड़ी असफलताएं खिलाड़ियों के दिमागों पर कहर बरपा देती हैं. इतनी बुरी हार तो सबसे अच्छे खिलाड़ी भी अपना आत्मविश्वास खो सकता है, वह पराजयवादी बन सकता है. ऐसी निराशा तो पूरी टीम को अपनी चपेट में ले सकती है. ऐसे संकट के समय सीनियर साथियों की प्रतिक्रिया, उनके बातचीत में उपयोग किए गए शब्दों और उनकी बॉडी लैंग्वेज पर जूनियर्स की निगाहें थमी रहती हैं. ऐसे में निराशा का एक सुझाव पहले से ही कठिन परिस्थिति को विनाशकारी बना सकता है.

भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 4 मैचों की टेस्ट सीरीज में 2-1 से हराया.
मैं इस श्रृंखला के तथ्यों और आंकड़ों पर बात नहीं करूंगा, भारतीय टीम में आए बड़े बदलाव को उजागर करते हैं क्योंकि ये पहले से सार्वजनिक डोमेन में हैं और वह भी भरपूर मात्रा में.
मैं उस बदलाव पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं जिसके कारण भारतीय टीम ने यह करिश्मा संभव कर दिखाया. दौरे की शुरुआत के पहले मुख्य कोच रवि शास्त्री के साथ हुई बातचीत पर फिर से ध्यान देना होगा क्योंकि यह बहुत महत्वपूर्ण है. रवि शास्त्री ने इस सीरीज को लेकर दो बातों पर जोर दिया था. पहली बात थी व्यक्तिगत और टीम के गौरव की. उन्होंने कहा था कि पूर्णआत्मविश्वास हो कि हम ऑस्ट्रेलिया को हरा सकते हैं. रवि शास्त्री ने कहा कि अगर ऑस्ट्रेलिया ये समझ जाए कि आप में लड़ने की शक्ति नहीं है तो वह आप को हरा देंगे. दूसरी बात हर पंच का काउंटरपंच तैयार हो. बल्लेबाजी हो या गेंदबाजी हर बात का माकूल जवाब दिया जाए. इस बात का कोई संकेत नहीं होना चाहिए कि आप किसी भी तरह से कमतर हैं. शास्त्री ने कहा कि यही चर्चा कई खिलाड़ियों के साथ लगातार की गई. न्यूजीलैंड के पिछले सीजन और कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान जब भी संभव हुआ ऐसी चर्चा लगातार होती रहीं.
यह दोनों बातें बताती हैं कि भारत ने किस तरीके से अपने आप को जवाबी हमले के लिए तैयार किया. साथ ही किस तरीके से टीम प्रबंधन और सीनियर खिलाड़ियों ने एडिलेड की हार के बाद तेजी से अपने आपको संगठित किया. मुझे लगता है कि क्रिकेट कौशल से इतर इन बताए गए पहलुओं की दिशा में फोकस को थोड़ा सा बदलने के बाद यह संभव हो पाया है. यह पहलू आमतौर पर खेल रडार से नीचे होते हैं लेकिन अब उत्कृष्टता और सफलता के लिए यह बातें अमूल्य हो गई हैं.

ब्रिस्बेन टेस्ट की जीत का जश्न मनाते भारतीय खिलाड़ी.
टीम मैनेजमेंट के सामने सबसे बड़ी चुनौती एडिलेड की हार के बाद आत्मविश्वास बहाल करने की थी. 1 घंटे के भीतर टीम 36 रनों पर आउट हो गई थी, भारत के लिए अपने टेस्ट क्रिकेट इतिहास में यह सबसे कम रन है. यह भी जानना होगा कि इससे पहले आईसीसी ने भारत को टेस्ट रैंकिंग के दूसरे स्थान पर रखा था, ऐसी टीम से 36 रनों जैसी परफार्मेंस की शायद किसी ने कल्पना की हो.
यह भी पढ़ें: IPL 2021: RCB ने कोहली, सिराज सहित 12 स्टार खिलाड़ियों को किया रिटेन, जानिए कौन हुआ बाहर
टीम के लिए इस बात को तर्कसंगत बनाया गया ऐसी घटनाएं कई दशकों में एक बार होती हैं. दुर्भाग्य से यह हमारे साथ हो गया. चलो इससे आगे बढ़ा जाए. इसके लिए जरूरी था फोकस में बदलाव ताकि टीम निराशा के गहरे गड्ढे में ना गिरे. अब धैर्य, दृढ़ संकल्प, गर्व और महत्वाकांक्षा की अपेक्षाकृत ज्यादा जरूरत थी.
वहीं, ऑस्ट्रेलिया 2018 में मिली हार के बाद इस सीरीज को जीतने के लिए बेताब था. उसकी अधीरता में गलती होने की ज्यादा गुंजाइश थी. अब तय किया गया कि उनको नीचे झुकाने के लिए उन पर हमला बोला जाए. चाहे जो हो जाए अपने डर के लक्षण ना दिखाएं. केवल लड़ते रहे. हालांकि शास्त्री और कप्तान राहाणे को उम्मीद नहीं थी कि इस सीरीज में किस तरीके के घटनाक्रम सामने आएंगे?

भारत की ऐतिहासिक जीत का जश्न मनाते फैंस (AP)
टीम के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज विराट कोहली के पितृत्व अवकाश पर घर लौटने की जानकारी पहले से थी इसलिए यह बड़ा नुकसान नहीं बनी इसके लिए पहले से योजना को बनाकर रख लिया गया था. जिस बात की जानकारी नहीं थी वह थीं चोटें. सीरीज के बढ़ने के साथ साथ ये चोटें भी बढ़ती गई. पहले ही टेस्ट में शमी और दूसरे में उमेश तीसरे में अश्विन, जडेजा, बिहारी और बुमराह एक के बाद एक घायल हुए. सिडनी में तो हालत सबसे नाजुक थी ऐसा शायद ही कभी हुआ हो.
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गाबा में हुए चौथे टेस्ट में सीनियर खिलाड़ियों के चोटिल होने के कारण भारत का दारोमदार नए खिलाड़ियों पर ही था और खास तौर पर गेंदबाजी पर. इधर भारत की ओर से गेंदबाजी में मोहम्मद सिराज अपना तीसरा टेस्ट खेल रहे थे तो दो अन्य गेंदबाजों के लिए यह दूसरा मैच था और अन्य दो तो अपना पहला टेस्ट खेल रहे थे.
वहीं, ऑस्ट्रेलिया के लिए गाबा का मैदान अभेद किला था जिसमें वह पिछले 32 सालों में कभी भी टेस्ट नहीं हारा था. ऐसी परिस्थितियों में यहां होने वाले भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच टेस्ट का परिणाम हमेशा की तरह ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में लग रहा था. लेकिन 5 दिनों के आकर्षक और जोरदार क्रिकेट में इस नतीजे को एकदम से बदल दिया. भारत में असंभव को संभव कर दिखाया. मैं उन खिलाड़ियों को याद रखूंगा जिन्होंने इस ऐतिहासिक सीरीज की जीत को संभव बनाया. इनमें से कई ने अहम योगदान दिए, भले ही वे अंकों में प्रभावशाली ना हों लेकिन यह एक विजय थी, यह इच्छाशक्ति की विजय थी जो कि दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण है. इसने साबित किया कि भारत की टीम दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कॉमेंटेटर हैं. देश-विदेश के अखबारों और पत्रिकाओं में कॉलम लिखते हैं. यह लेखक के निजी विचार हैं.)