नई दिल्ली. चैंपियन चांदी का चम्मच लेकर पैदा नहीं होते. वो तो कांटों से खेलते हैं. धूप में जलते हैं. रेत में झुलसते हैं. कमजोरी को अपना हथियार बना लेते हैं. भारत की चैंपियन महिला अंडर-19 टीम की हर खिलाड़ी की कहानी तकरीबन ऐसी है. इन खिलाड़ियों की मेहनत का जश्न रविवार को सारे भारत ने मनाया. जैसे ही भारत ने इंग्लैंड को हराकर अंडर-19 महिला विश्व कप जीता, देश के हर कोने में दीवाली सा माहौल हो गया. हम यहां भारतीय टीम की ऐसी ही 5 सदस्यों की कहानी लेकर आए हैं, जिनकी जिद, जुनून, जोश और जज्बे ने भारत को विश्व चैंपियन बनाया.
शुरुआत करते हैं टीम की अगुवा यानी कप्तान शेफाली वर्मा से. शेफाली आज भारतीय क्रिकेट का जाना-पहचाना नाम है. लेकिन कम लोग ही जानते हैं कि इस युवा क्रिकेटर का यह मुकाम हासिल करने के लिए ना सिर्फ मैदान पर पसीना बहाना पड़ा, बल्कि समाज से भी लड़ना पड़ा. शेफाली वर्मा का जन्म हरियाणा के रोहतक जिले में हुआ. उन्हें बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौक था. उनके पिता संजीव वर्मा की भी क्रिकेट में दिलचस्पी थी. पिता इंटरनेशनल क्रिकेट खेलना चाहते थे, लेकिन उनका यह सपना पूरा न हो सका था. पिता ने बेटी में यह सपना साकार तय करना तय किया. उन्होंने पहले घर पर ही बेटी को ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी. जब उन्हें लगा कि अब शेफाली को प्रोफेशनल ट्रेनिंग मिलनी चाहिए तो उन्होंने क्रिकेट एकेडमी का रुख किया. लेकिन यहां दिक्कत आ गई. लड़की होने के कारण शेफाली को किसी भी एकेडमी में प्रवेश नहीं मिला. शेफाली के पिता ने भी हार नहीं मानी. उन्होंने 9 साल की शेफाली के बाल काट दिए, ताकि वह लड़कों की तरह दिखने लगे. इसके बाद शेफाली को क्रिकेट एकेडमी में जगह मिल गई. शेफाली की इसके बाद की उड़ान से हर कोई वाकिफ है. आज वह भारत की पहली ऐसी महिला कप्तान बन गई हैं, जिन्होंने भारत को विश्व चैंपियन बनाया है.
पिता की कैंसर और भाई की सांप काटने से मौत
शेफाली के बाद कहानी अर्चना देवी की, जिन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ फाइनल 2 विकेट झटके. उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले की इस खिलाड़ी का बचपन बड़े कष्ट में बीता है. अर्चना की मां सावित्री देवी के मुताबिक उन्हें बेटी को यहां तक पहुंचाने में बहुत ताने सुनने पड़े. अर्चना के पिता की कैंसर से मौत हो गई थी. इस कारण बचपन में ही उन्हें पिता का प्यार नहीं मिल पाया. संकट तब और बढ़ गया जब भाई की सांप काटने से मौत हो गई. इसके बाद समाज ने अपना कुरूप चेहरा दिखाया. लोगों ने अर्चना की मां पर जादू-टोने के आरोप भी लगा डाले. लेकिन सावित्री देवी ने हार नहीं मानी. उन्होंने बेटी को कस्तूरबा गांधी स्कूल में दाखिला दिलवाया. यहीं से अर्चना की किस्मत पलट गई. यहां अर्चना को टीचर पूनम गुप्ता का सहारा मिला. टीचर ने अर्चना में खिलाड़ी के गुण देखे. वह अर्चना को अपने साथ ट्रेनिंग सेंटर ले आई. तब रिश्तेदारों ने इसका विरोध किया. कहानी लंबी है…. जिसका अंत यह है कि अब वही लोग अर्चना का रिश्तेदार बताने में गर्व महसूस कर रहे हैं, जो कभी उसे क्रिकेट नहीं खेलने देना चाहते थे.
त्रिशा के पिता ने बेच दी खेती की जमीन
अब बात त्रिशा रेड्डी की. त्रिशा रेड्डी के क्रिकेटर बनने के सफर में उनके पिता गोंगाड़ी रेड्डी का बड़ा रोल है. त्रिशा के पिता जिम चलाते थे. इसके अलावा होटल में फिटनेस ट्रेनर का काम भी करते थे. लेकिन, जब उन्हें लगा कि बेटी में क्रिकेटर बनने का हुनर है तो वह उसे ज्यादा वक्त देने लगे. इसके लिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और फिर आधी कीमत पर जिम भी बेच दिया. जब यह भी नाकाफी साबित हुआ तो बेटी की ट्रेनिंग के लिए सिकंदराबाद शिफ्ट हो गए. पैसों की तंगी हुई तो खेती की जमीन भी बेच दी, लेकिन त्रिशा की ट्रेनिंग में अड़चन नहीं आने दी. त्रिशा ने भी अपने पिता के सपने को पूरा किया. आज सारा देश उन पर नाज कर रहा है.
सौम्या कपड़े धोने वाली थापी से क्रिकेट खेलती थीं
सौम्या तिवारी बचपन में कपड़े धोने वाली थापी से क्रिकेट खेला करती थीं. मोहल्ले वाले घर के पास खेलने पर टोका-टोकी करते. सौम्या फिर भी ना मानतीं. बेटी सौम्या का जुनून देख पिता मनीष तिवारी उन्हें क्रिकेट एकेडमी ले गए. एकेडमी में केवल लड़के खेलते हैं, यह कहकर कोच ने सौम्या को ट्रेनिंग देने से मना कर दिया. मान-मनौव्वल के बाद सौम्या को एक एकेडमी में जगह मिल गई. वहां ट्रेनिंग कर रहे लड़कों ने सौम्या का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. सौम्या डटी रहीं. फिर एक दिन उन्होंने लड़कों के साथ इंटर क्लब मैच में 2 विकेट लेकर अपना जवाब दिया. आज सौम्या अंडर-19 टीम की स्टार ऑलराउंडर है.
कोच नूशीन के जख्म को मिला मरहम
भारत के चैंपियन बनने का जिक्र और जश्न कोच नूशीन अल खदीर के बिना पूरा नहीं हो सकता. नूशीन का विश्व चैंपियन बनने का सपना 18 साल पहले फाइनल में टूट गया था. तब ऑस्ट्रेलिया ने भारत को हराकर वुमंस वनड वर्ल्ड कप जीता था. नूशीन तब से उस मौके को ढूंढ़ रही थीं जो उनके इस जख्म पर मरहम लगा सके. यह मरहम भारतीय महिला अंडर19 टीम की खिताबी जीत में मिला. अब नूशीन का नाम भले ही वर्ल्ड चैंपियन खिलाड़ियों में शुमार नहीं है. लेकिन वह रोजर बिन्नी, लालचंद राजपूत जैसे चुनिंदा भारतीय कोच की लिस्ट में जरूर शामिल हो गई हैं, जिनके नाम बतौर कोच विश्व खिताब है.
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