ऑस्ट्रेलिया को बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में वापसी के लिए अपनी ताकत पर भरोसा जताना है. (AP)
नई दिल्ली. पैट कमिंस की अगुआई वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम भारत दौरे पर टेस्ट की नंबर-1 टीम की हैसियत से आई थी. लेकिन, 5 दिन में ही उसकी बादशाहत खत्म हो गई. नागपुर में खेला गया बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी का पहला टेस्ट ऑस्ट्रेलिया ढाई दिन में हार गया. इसके बाद दिल्ली में भी कंगारू टीम इतने ही दिन में ढेर हो गई. यानी 5 दिन के भीतर ही उसका नंबर-1 का रुतबा चला गया. दिल्ली टेस्ट जीतते ही भारत टेस्ट में भी नंबर-1 हो गया.
अब ऑस्ट्रेलिया पर सीरीज में क्लीन स्वीप का खतरा मंडरा रहा है. अगले 2 टेस्ट यानी 10 दिन में अगर ऑस्ट्रेलिया वापसी में नाकाम रहा तो उसका वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप यानी टेस्ट का विश्व कप जीतने का सपना भी टूट सकता है. क्योंकि अगर ऑस्ट्रेलिया अगले 2 टेस्ट हार गया तो उसके विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने की राह मुश्किल हो सकती है. आखिर क्यों भारत दौरा ऑस्ट्रेलिया के लिए इतना चुनौतीपूर्ण बन गया है. इसकी एक बड़ी वजह है, ऑस्ट्रेलिया को अपनी ताकत पर ही भरोसा न होना. वो कैसे आइए बताते हैं.
2004 में ऑस्ट्रेलिया तेज गेंदबाजों के दम पर जीता था
ऑस्ट्रेलिया ने पिछली बार भारत में टेस्ट सीरीज 2004 में जीती थी. इसके बाद से 19 साल बीत गए और ऑस्ट्रेलिया को भारत में भारत को हराने का सपना पूरा नहीं हो पाया है. 2004 में कंगारू टीम एडम गिलक्रिस्ट की कप्तानी में भारत में 4 टेस्ट की सीरीज जीती थी. तब ऑस्ट्रेलिया को उसके तेज गेंदबाजों ने जीत दिलाई थी और यही हमेशा से ही ऑस्ट्रेलिया की ताकत है, जिसपर उसे इस दौरे पर भरोसा नहीं दिख रहा.
2004 में ऑस्ट्रेलिया के 3 तेज गेंदबाजों जेसन गिलेस्पी, ग्लेन मैक्ग्रा और माइक कास्प्रोविच ने 4 टेस्ट की बॉर्डर-गावस्कर सीरीज में कुल मिलाकर 43 विकेट लिए थे जबकि शेन वॉर्न की अगुआई में ऑस्ट्रेलिया के स्पिन गेंदबाजों ने उस दौरे पर कुल 25 विकेट लिए थे. यानी तेज गेंदबाजों के आधे.
2004 की इस सीरीज में भारतीय गेंदबाजों का रिकॉर्ड देखें तो ऑस्ट्रेलिया से बिल्कुल उलट है. अनिल कुंबले, हरभजन सिंह और मुरली कार्तिक ने पूरी सीरीज में कुल 60 विकेट लिए थे. जबकि तेज गेंदबाजों के खाते में महज 13 विकेट आए थे. इससे साफ है कि घर में भारत की ताकत स्पिन गेंदबाजी है, जबकि पेस अटैक हमेशा से ही ऑस्ट्रेलिया की ताकत है. लेकिन, मौजूदा दौरे पर ऑस्ट्रेलिया ने अपने पेस अटैक पर बहुत भरोसा नहीं जताया. नागपुर टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया 4 गेंदबाज के साथ ही उतरा था. इसमें से 2 तेज गेंदबाज थे.
ऑस्ट्रेलिया के पेसर्स से बेहतर रहे भारतीय तेज गेंदबाज
स्पिन गेंदबाजों ने जहां नागपुर टेस्ट में 96 ओवर गेंदबाजी की. वहीं, तेज गेंदबाजों ने 37 ओवर ही फेंके थे. ऑस्ट्रेलिया इस टेस्ट में 3 पेसर के साथ उतर सकता था. दिल्ली में तो अकेले पैट कमिंस ही खेले. ऑस्ट्रेलिया 3 स्पिन गेंदबाजों के साथ उतरा. ऑस्ट्रेलिया की ये रणनीति उसके काम नहीं आई. क्योंकि दिल्ली और नागपुर दोनों ही टेस्ट में भारतीय तेज गेंदबाजों ने अच्छा प्रदर्शन किया. पहले 2 टेस्ट में भारतीय तेज गेंदबाजों का औसत 20.12 का रहा जबकि पैट कमिंस और स्कॉट बोलैंड का औसत 51 का रहा.
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कमबैक के लिए पेस अटैक पर भरोसा दिखाना होगा
अब अगर ऑस्ट्रेलिया को टेस्ट सीरीज में वापसी करनी है और विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल की उम्मीदें बनाए रखनी हैं तो उसे अपनी ताकत यानी पेस अटैक पर भरोसा करना होगा. तभी टेस्ट सीरीज में कंगारू टीम कमबैक कर पाएगी. ऑस्ट्रेलिया को इंदौर में ऐसा करने का मौका मिल सकता है. क्योंकि यहां विकेट पर हमेशा से ही तेज गेंदबाजों को उछाल मिलता है.
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