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टीचर, मैनेजर, मॉन्क, पर्वतारोही के बाद नेशनल क्रिकेटर बने कल्याण दोर्जे, दिलचस्प है कहानी

एस. कल्याण दोर्जे बचपन में बकरियां चराते थे. (File Photo)

एस. कल्याण दोर्जे बचपन में बकरियां चराते थे. (File Photo)

स्कालजांग कल्याण दोर्जे (Skalzang Kalyan Dorje) जम्मू-कश्मीर की क्रिकेट टीम में खेलने वाले पहले लद्दाखी क्रिकेटर हैं. य ...अधिक पढ़ें

    नई दिल्ली. लद्दाख के स्कालजांग दोर्जे (Skalzang Kalyan Dorje) क्रिकेट की दुनिया का कोई बड़ा नाम नहीं है. लेकिन इनके गली क्रिकेट से जम्मू-कश्मीर की टीम में पहुंचने की कहानी जरूर बड़ी है. ऐसा इसलिए, क्योंकि दोर्जे जम्मू-कश्मीर की क्रिकेट टीम में शामिल होने वाले केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के पहले क्रिकेटर हैं. उनके यहां तक पहुंचने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. जम्मू-कश्मीर टीम(Jammu And Kashmir) में शामिल होने से पहले स्कालजांग बौद्ध भिक्षु, फिजिकल एजुकेशन टीचर, पर्वतारोहियों को प्रशिक्षण देने के अलावा खेल का सामान बेचने वाले एक आउटलेट में मैनेजर की नौकरी कर चुके हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अलग-अलग काम करने के बावजूद उनका क्रिकेट के प्रति जुनून कभी कम नहीं हुआ और आखिरकार वो इस मुकाम तक पहुंच ही गए.

    इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में स्कालजांग ने अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि एक वक्त ऐसा भी था जब मैं बकरियां चराता था और अब मैं घरेलू क्रिकेट खेलने वाला लद्दाख का पहला खिलाड़ी हूं. 31 साल के इस ऑलराउंडर ने बताया कि इस साल की शुरुआत मैं सैयद मुश्ताक अली टी20 टूर्नामेंट में जम्मू-कश्मीर की तरफ से खेला. अगर कोरोना के कारण 2020-21 ऱणजी सीजन को रद्द नहीं किया जाता तो वो फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेलने वाले पहले लद्दाखी भी बन जाते. हालांकि, इसकी उम्मीद अभी भी मजबूत है. क्योंकि अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश हो चुके हैं. लेकिन क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ लद्दाख को बीसीसीआई से मान्यता नहीं मिली है. जैसे ही ये काम होगा वो इस उपलब्धि को हासिल कर लेंगे.

    जम्मू-कश्मीर के कप्तान परवेज रसूल भी दोर्जे से प्रभावित
    जम्मू-कश्मीर क्रिकेट टीम के कप्तान परवेज रसूल भी स्कालजांग दोर्जे से प्रभावित हैं. उन्होंने बताया कि पिछले सीजन में नए टैलेंट को ढूंढने के लिए लद्दाख गया था. उस दौरान हमने चार-पांच अच्छे खिलाड़ियों को देखा था. दोर्जे भी उनमें से एक थे. उस समय हमने कुछ अभ्यास मैच खेले थे, जिसमें दोर्जे ने जम्मू-कश्मीर टीम के कुछ खिलाड़ियों को आउट किया था. वे बाएं हाथ के अच्छे स्पिनर होने के साथ बल्लेबाजी भी कर लेते हैं. उनमें क्षमता है, लेकिन बड़े स्तर पर खेलने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी.

    बकरियों को चराते-चराते जम्मू-कश्मीर टीम में पहुंचे दोर्जे
    दोर्जे ने बताया कि बचपन में मैं पहाड़ों पर बकरियों के पीछे दौड़ लगाता था. इसकी वजह से मेरी बुनियाद मजबूत थी और शारीरिक रूप से मैं ज्यादा फिट और चुस्त-दुरुस्त था. इसका फायदा मुझे क्रिकेट में मिला. स्कालजांग को आज भी याद है कि उन्होंने 1999 में कैसे 10 साल की उम्र में क्रिकेट खेलना शुरू किया. दरअसल, उनके एक अंकल जो बैंगलुरु की महाबोधि सोसाइटी में रहते थे, उन्हें अपने साथ ले गए. तब इंग्लैंड में 1999 का क्रिकेट विश्व कप हो रहा था. इसी दौरान साथी बच्चों के साथ उन्होंने क्रिकेट खेलना शुरू किया और धीरे-धीरे इस खेल का जुनून बढ़ता गया. कुछ साल बाद वो मैसूरू चले गए. वहां फिजिकल एजुकेशन में बैचलर डिग्री पूरी की. इसके बाद वहीं के एक स्कूल में खेल शिक्षक के तौर पर काम करने लगे. हालांकि, 2011 में उन्होंने क्रिकेट खेलना छोड़ दिया और खेल शिक्षक के साथ ट्रैकिंग कैंप मैनेजर के रूप में काम करने लगे.

    लद्दाख के लोकल टूर्नामेंट में भी दोर्जे ने अपनी छाप छोड़ी

    चार साल बाद लद्दाख में एक क्रिकेट स्टेडियम बना और उन्होंने दोबारा क्रिकेट खेलना शुरू किया और लद्दाख के कई लोकल टूर्नामेंट में शिरकत की. इस दौरान वो कई बार मैन ऑफ द सीरीज चुने गए. उन्हें इनाम के तौर पर फ्रीज, कूलर, वॉशिंग मशीन मिलने लगे. इससे उनका परिवार बहुत खुश होता था. हालांकि, अभी भी उनका सपना घरेलू क्रिकेट खेलना था. वो तब पूरा हुआ जब उन्हें सैयद मुश्ताक अली टी20 टूर्नामेंट खेलने वाली जम्मू-कश्मीर टीम में जगह मिली. वो आज भी नहीं भूले हैं कि कैसे कप्तान परवेज रसूल ने उन्हें डेब्यू कैप सौंपते हुए कहा था कि आप जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व करने वाले पहले लद्दाखी क्रिकेटर हो. मेरे लिए ये छोटी बात नहीं थी.

    दोर्जे की पूरी कोशिश है कि वो कप्तान रसूल की उम्मीदों पर खरा उतरे और भविष्य में जम्मू-कश्मीर क्रिकेट टीम में अपनी जगह और मजबूत करें. हालांकि, इस राह में उनकी उम्र बड़ा रोड़ा बन सकती है.

    Tags: Cricket news, Jammu and kashmir, Ladakh, Ranji Trophy

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