नई दिल्ली. सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) और ग्रेग चैपल (Greg Chappell). जब भी ये नाम साथ लिए जाते हैं तो भारतीय क्रिकेट का वो अनचाहा विवाद याद आता है, जिसने भारतीय क्रिकेट को बहुत नुकसान पहुंचाया. लेकिन क्या आप गांगुली और चैपल की दोस्ती के बारे में जानते हैं. ऐसी दोस्ती, कि ये दोनों सात दिन साथ रहे और इसकी खबर किसी भी भारतीय क्रिकेटर को नहीं लगी. टीम के सबसे वरिष्ठ सचिन तेंदुलकर और उप कप्तान राहुल द्रविड़ को भी गांगुली की योजना के बारे में कुछ पता ना था. यह भी सच है कि इन्हीं सात दिनों की दोस्ती का इनाम ग्रेग को तब मिला, जब दादा ने उन्हें तमाम विरोधों के बावजूद टीम इंडिया (Team India) का कोच बनवा दिया.
पूर्व कप्तान और बीसीसीआई (BCCI) के मौजूदा अध्यक्ष सौरव गांगुली ने सात दिन की दोस्ती के बारे में ऑटोबायग्राफी अ सेंचुरी इज नॉट इनफ (A Century Is Not Enough) में लिखा है. गांगुली लिखते हैं, ‘बात 2003 की है. भारतीय टीम हाल ही में विश्व कप के फाइनल में पहुंची थी. इसलिए आगामी सीरीज के लिए भी हमारे हौसले बुलंद थे. हमें साल के आखिरी महीने में ऑस्ट्रेलिया जाना था. यही अब साल की सबसे अहम सीरीज थी. स्टीव वॉ बोल चुके थे कि ऑस्ट्रेलिया को उसके घर में हराने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए. यह सच है कि कम से कम उस दौर में ऑस्ट्रेलिया को उसके घर में हराना असंभव सा था. लेकिन अगर बतौर कप्तान यह बात मैं मान लेता तो सीरीज का फैसला तो मैदान पर उतरने से पहले ही हो जाता. इसलिए मैंने तय कि किया कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आक्रामक होने की जरूरत है. इसके लिए पहला टारगेट मैंने खुद के लिए सेट किया.’
सिडनी में सात दिन का साथ
सौरव गांगुली कहते हैं, ‘मैं सात दिन चैपल के साथ रहा. इस दौरान हम सिडनी में सुबह-शाम नेट प्रैक्टिस करते. प्रैक्टिस पिच बहुत खराब थी, लेकिन यह एक तरह से अच्छा था. मैं खुद को बदतर से बदतर स्थिति के लिए तैयार करना चाहता था. चैपल के साथ रहकर मुझे यह पता चला कि गेंदबाज किस लेंथ पर गेंदबाजी करेंगे. किस मैदान की पिच कैसी है. किस मैदान पर एक स्पिनर के साथ उतरें और किसमें दो स्पिनरों के साथ.’
ग्रेग की समझ गजब की
सौरव गांगुली बताते हैं, ‘ग्रेग को क्रिकेट की गजब की समझ थी. ऑस्ट्रेलियाई मैदान बड़े थे, इसलिए फील्ड प्लेसमेंट भी अहम होती थी. मैं यह समझने के लिए ग्रेग को मैदान के कई हिस्से में ले गया और यह समझने की कोशिश की कि फील्डर को कहां खड़ा करना चाहिए, ताकि वह ज्यादा एरिया कवर कर सके. जब मैं इससे पहले 1992 में ऑस्ट्रेलिया गया था, तब फील्ड प्लेसमेंट बड़ी समस्या लगी थी. ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी अक्सर तीन रन दौड़ लेते थे. हमारी टीम के कई खिलाड़ी विकेटकीपर तक थ्रो ही नहीं कर पाते थे. हम तीन रन कम ही दौड़ पाते थे. इसकी एक वजह फिटनेस और दूसरी वजह फील्ड की सजावट थी. ऑस्ट्रेलियाई अच्छी तरीके से जानते थे कि फील्डर को कहां खड़ा करना है.’
टीम इंडिया को हुआ फायदा
सौरव गांगुली कहते हैं कि ग्रेग के साथ रहने का उन्हें बड़ा फायदा हुआ. उनकी बैटिंग स्टाइल भी बदल गई. वे तेज गेंदबाजों को ज्यादा भरोसे से खेलने लगे. भारतीय टीम जब कुछ महीने बाद ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गई तो उसने ऐतिहासिक प्रदर्शन किया. टेस्ट सीरीज 1-1 से बराबर रही. ऑस्ट्रेलिया आखिरी टेस्ट बड़ी मुश्किल से ड्रॉ करा पाया. कुल मिलाकर एक दशक में पहली बार किसी टीम ने ऑस्ट्रेलिया को उसकी जमीन पर यह एहसास कराया कि वह अजेय नहीं है.
तब किसे पता था कि...
सौरव गांगुली बताते हैं कि जब जॉन राइट के बाद भारतीय टीम का नया कोच चुनने की बारी आई तो उन्होंने ग्रेग चैपल का नाम आगे बढ़ाया. यह भी सच है कि तब ग्रेग चैपल के बड़े भाई इयान चैपल (Ian Chappell) ने ही कहा कि ऐसा करना सही नहीं होगा. भारतीय पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर (Sunil Gavaskar) ने भी चैपल को कोच ना बनाने की सलाह दी. लेकिन बोर्ड ने कप्तान की राय को तवज्जो दी और ग्रेग चैपल नए कोच बन गए. गांगुली के शब्दों में तब कौन जानता था कि यह संबंध भारतीय क्रिकेट का सबसे विवादित विषय बनेगा.
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FIRST PUBLISHED : April 26, 2020, 08:49 IST