T20 World Cup 2021 का आज से आगाज होने जा रहा है. पिछली बार 2016 में यह टूर्नामेंट खेला गया था. तब से लेकर अब तक टी20 क्रिकेट बहुत बदल गया है. (AFP)
नई दिल्ली. टी20 वर्ल्ड कप-2021 (ICC T20 World Cup 2021) का आगाज आज से हो गया है. भारत इस वैश्विक टूर्नामेंट में खिताब जीतने का प्रबल दावेदार नजर आ रहा है. पिछली बार जब 2016 में भारत ने ही इस टूर्नामेंट की मेजबानी की थी, तब से अब तक काफी बदलाव आ चुका है. तब वेस्टइंडीज ने खिताबी जीत दर्ज की थी. भारत ने 2007 में जोहानिसबर्ग में पहली बार इस खिताब को अपने नाम किया था. तब महेंद्र सिंह धोनी (MS Dhoni) टीम की कमान संभाल रहे थे और इस बार वह मेंटॉर के तौर पर टीम के साथ जुड़े हैं. नजर डालते हैं, उन कुछ बदलावों पर जो 2016 से अब तक टी20 वर्ल्ड कप में आ चुके हैं.
अलग फॉर्मेट के लिए अलग खिलाड़ी
टी20 विश्व कप आखिरी बार जब 2016 में खेला गया, तब ही यह मान लिया गया था कि यह फॉर्मेट वनडे मैचों का विस्तार नहीं है. पिछले पांच साल ने इस बात को और भी मजबूती से पुष्ट किया है कि यह एक पूरी तरह से अलग फॉर्मेट है. इस फॉर्मेट में खेलने के लिए अलग ही स्पेशलिस्ट होते हैं. आंकड़ों को देखें तो 2016 विश्व कप में खेलने वाले 43% से अधिक खिलाड़ियों ने पिछले तीन साल में अपनी टीमों के कम से कम आधे एकदिवसीय मैच खेले थे. यह आंकड़ा अब घटकर 28.5% रह गया है.
कलाई के स्पिनरों की अहमियत
2016 के टी20 वर्ल्ड कप में भारत बिना किसी कलाई के स्पिनर के साथ उतरा था. तब से उन्होंने 69 टी20 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं और 65 में कलाई की स्पिन का इस्तेमाल किया है. अप्रत्याशित परिणाम और विविधता के अलावा इस छोटे फॉर्मेट में पिच भी काफी प्रभावित करती हैं. ऐसे में कलाई की स्पिन अहम हो जाती है. आईपीएल में 2016 के सीजन में केवल तीन कलाई के स्पिनरों ने 30 या अधिक ओवर फेंके.
यह आंकड़ा 2017 में 6, 2018 में 7, 2019 में 9 और 2020 में 8 पहुंचा. खास बात है कि 2017 तक किसी भी आईपीएल सीजन में कलाई के स्पिनरों ने 2000 गेंद नहीं फेंकी थीं लेकिन 2017 और 2020 के बीच चार आईपीएल में 2325, 2571, 2927 और 2723 गेंद कलाई की स्पिन थीं. ये चारों ही ऐसे सीजन रहे, जब कलाई की स्पिन में 100 से अधिक विकेट गिरे थे.
विविधता, अपग्रेड
दशकों तक क्रिकेट में यह देखने को मिला कि यह खेल दोहराव और किसी कौशल की महारत पर निर्भर करता था लेकिन टी20 में ऐसा नहीं होता. आपको खुद को अपग्रेड करना होता है. यदि आप एक गेंदबाज हैं, तो आपको लगातार अपग्रेड करने की जरूरत है. आप एक साल के लिए एक मिस्ट्री बॉलर हैं, लेकिन अगले साल तक बल्लेबाज आपकी विविधताओं के लिए तरीके खोज लेते हैं. ऐसे में उस गेंदबाज को लगातार गेंदों में विविधताएं लानी होती हैं. उदाहरण के लिए, अश्विन के पास अब बहुत सी गेंद फेंकने का कौशल है जैसे ऑफब्रेक, कैरम बॉल, लेग ब्रेक, रॉन्गअन, अलग-अलग सीम पोजीशन और गेंद रिलीज करने के तरीके.
अलग-अलग बल्लेबाजी कॉम्बिनेशन
1990 के दशक में एक विज्ञापन था जिसमें सड़क पर मौजूद व्यक्ति क्रिकेट से जुड़ा ज्ञान बांटता था. ऐसा ही एक था- ये तो आसान है राइटी गया तो राइटी भेज, लेफ्टी गया, लेफ्टी भेज. यदि दाएं हाथ का बल्लेबाज आउट होता है तो दाहिने हाथ के बल्लेबाज को ही खेलने भेजे और यदि बाएं हाथ का बल्लेबाज आउट हो जाता है उसी तरह के बल्लेबाज को मौका दो. टी20 फॉर्मेट में अब दाएं-बाएं संयोजन को बनाए रखने से अलग बात होने लगी है.
आईपीएल में शीर्ष पांच विकेटों के लिए बाएं-दाएं साझेदारी का प्रतिशत 2015 मे 41.5 प्रतिशत था तो 2016 में 50.7% हो गया. लेकिन 2019 और 2020 के सीजन में कहानी अलग हो गई. शीर्ष पांच विकेटों के लिए बाएं-दाएं संयोजनों ने तेज गति से दाएं-दाएं संयोजन ने रन बनाए. 2020 में बाएं-बाएं, दाएं-बाएं से आगे निकल गए लेकिन बाएं-बाएं जोड़े के क्रिकेट दुर्लभ हैं जो टॉप-5 पार्टनरशिप का लगभग 5% ही है.
सुपरस्पेशलिस्ट खिलाड़ी रणनीति का अहम हिस्सा
परंपरागत रूप से, चयन में निरंतरता को क्रिकेट में एक अच्छी चीज के रूप में देखा गया है. लेकिन अब टी20 में ऐसा नहीं है. 2020 के आईपीएल में, मुंबई इंडियंस के ऑफ स्पिनर जयंत यादव ने केवल दो मैच खेले, उनमें से एक फाइनल और दूसरा लीग चरण में एक ही प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ. उन्हें ना तो कोई चोट लगी थी और ना ही फिटनेस से जुड़ी कोई चिंता. यादव का इस्तेमाल सुपरस्पेशलिस्ट खिलाड़ी के तौर पर किया गया. वो भी एक खास टीम, दिल्ली कैपिटल्स के खिलाफ. क्योंकि इस टीम के टॉप-6 बल्लेबाजों में से तीन दाएं और इतने ही बाएं हाथ के थे. तो इस लेफ्ट-राइट कॉम्बिनेशन को तोड़ने के लिए जयंत मैदान में उतरे थे.
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लेफ्ट-राइट बल्लेबाजी कॉम्बिनेशन के बढ़ते इस्तेमाल के कारण ही टी20 में ऑफ स्पिनर्स की वापसी हुई है. क्योंकि बाएं हाथ के बल्लेबाजों से गेंद को दूर करने के लिए कई बाएं हाथ के कलाई के स्पिनर नहीं हैं. टी20 विश्व कप स्क्वाॉड अतिरिक्त खिलाड़ियों को चुनने के बारे में अधिक हैं, जिनका उपयोग केवल एक या दो स्थितियों में किया जाएगा. रोस्टन चेज़, 130 से कम की स्ट्राइक रेट से बल्लेबाजी करते हुए, सपाट पिचों पर वेस्टइंडीज का एक विशिष्ट खिलाड़ी नहीं है; वह केवल कम स्कोर वाले मैचों में या ऐसी टीमों के खिलाफ खेलते हैं, जिसमें बाएं हाथ के बल्लेबाज ज्यादा होते हैं.
टी20 जीतना चाहते हैं? तो ज्यादा बाउंड्री लगाना पड़ेगी
यह सच है कि जो टीम अधिक बाउंड्री लगाती है, वो पांच में से 4 टी20 मैच जीतती है. पिछले दशक के उत्तरार्ध में, ज्यादा से ज्यादा बार गेंद को बाउंड्री के बाहर भेजने की जिम्मेदारी बढ़ गई है. लेकिन, मिडिल ओवर में इसका दबाव सबसे ज्यादा है. खासतौर पर छक्का मारने पर अधिक. यह हम आईपीएल में देख सकते हैं. मुंबई इंडियंस कम आधुनिक टी20 खेल रही थी जब वे जीत नहीं रहे थे; फिर वे बीच के ओवरों में लीडर बन गए.
पिछले 5 साल में मुंबई इंडियंस का आईपीएल रिकॉर्ड देखें तो यह बात समझ आती है. इस टीम ने जिस सीजन में मिडिल ओवर में अधिक बाउंड्री लगाई, टीम चैम्पियन बनीं. 2017 में बाकी टीमों के 52.5% के मुकाबले मुंबई इंडियंस ने मिडिल ओवर में 54.8 फीसदी बाउंड्री स्कोर की. इसी वजह से टीम इस साल चैम्पियन बनीं. 2019 में भी इस टीम ने बाकी टीमों के 52.2 फीसदी के मुकाबले 53.3 फीसदी बाउंड्री लगाई. इस साल भी मुंबई चैम्पियन बनीं. यह बताता है कि मुंबई ने मिडिल ऑर्डर में अपना खेल कितना बदला.
टी20 में सिक्स की अहमियत सबसे ज्यादा
वनडे क्रिकेट में डॉट बॉल से बचने पर सबसे ज्यादा जोर होता है. लेकिन टी20 फॉर्मेट इतना छोटा है कि यहां एक रन का असर बहुत ज्यादा नहीं होता है. चौके भी ठीक हैं. लेकिन इस फॉर्मेट में सिक्स सबसे जरूरी हैं. इसकी अहमियत सबसे ज्यादा है. 2016 में, टी20 चैंपियन वेस्ट इंडीज ने शीर्ष सात टीमों के खिलाफ हर 16.3 गेंद पर छक्के लगाए, जबकि बाकी टीमों ने एक दूसरे के खिलाफ हर 22.5 गेंद में एक छक्का लगाया. पिछले चार आईपीएल में, गेंद-प्रति-छह 20 से कम रह गया है. पिछले साल यह औसत 19.2 था. अब सभी टीमों की यही कोशिश होगी कि इस औसत को बरकरार रखें.
गेंदबाजों को भी बल्लेबाजी करनी होगी
मुंबई इंडियंस ने एक बार तब आईपीएल जीता है, जब निचले क्रम के 5 खिलाड़ियों में हरभजन सिंह, मिचेल जॉनसन, लसिथ मलिंगा, प्रज्ञान ओझा और एक अन्य गेंदबाज टीम में रहा है. यह साल 2013 था. इसके पीछे यही तर्क था कि 20 ओवर का मैच इतना लंबा नहीं होता है कि आप ऑलराउंडर का इस्तेमाल ठीक से कर पाएं. आप एक विकेटकीपर और पार्ट टाइम बॉलर को लेकर 6 बल्लेबाजों के साथ भी खेल सकते हैं. इस सूरत में आपके पास विकेट लेने के लिए पांच विशेषज्ञ गेंदबाज रहेंगे. हालांकि, अब आपको ऐसा देखने को नहीं मिलेगा.
हर टीम अपनी बल्लेबाजी में गहराई चाहती है ताकि टॉप ऑर्डर के बल्लेबाज खुलकर खेल सकें. टीम की कोशिश है कि कम से कम उसके पास 7वें नंबर तक बल्लेबाजी करने वाले खिलाड़ी हों. उसके बाद कम से कम दो और गेंदबाज हों, जो छक्के मारने में सक्षम हों और अगर गेंदबाज छक्के नहीं मार सकते तो उन्हें फिर जसप्रीत बुमराह या युजवेंद्र चहल जैसा बेहतर टी20 गेंदबाज होना चाहिए.
टीम में विराट-बाबर जैसे एक से ज्यादा बल्लेबाजों की जरूरत
टी20 में अब भी एंकर बल्लेबाजों यानी वो बल्लेबाज जिनके इर्द-गिर्द पूरी टीम की बल्लेबाजी घूमती है, जरूरी है. टीम इंडिया का जोर हमेशा से ही इस पर रहा है. रोहित शर्मा-विराट कोहली ऐसे दो बल्लेबाज हैं, जो टी20 में इस भूमिका में रहते हैं. इसे समझने के लिए आप 2016 के टी20 विश्व में भारत और वेस्टइंडीज के बीच हुए सेमीफाइनल मुकाबले के आंकड़े देख सकते हैं.
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इस मैच में रोहित और अजिंक्य रहाणे ने पहले विकेट के लिए 62 रन जोड़े थे. रोहित (43) के आउट होने के बाद विराट खेलने आए थे. कोहली और रहाणे ने दूसरे विकेट के लिए सिर्फ 8.1 ओवर में 66 रन जोड़े थे. इससे आप एंकर बल्लेबाज की अहमियत समझ सकते हैं. हालांकि, इंग्लैंड जैसी टीम शायद ऐसी पार्टनरशिप नहीं कर पाती. क्योंकि वो एक से ज्यादा एंकर बल्लेबाज खिलाने पर यकीन नहीं रखती.
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