नई दिल्ली. टोक्यो पैरालंपिक खेल मंगलवार से शुरू हो रहे हैं. इन खेलों की शुरुआत 1968 से हुई थी तब से लेकर भारत ने इनमें 12 मेडल जीते हैं जिसमें चार गोल्ड, चार सिल्वर और इतने की ब्रॉन्ज मेडल शामिल हैं. भारत ने 1972 में पहली बार पैरालंपिक में हिस्सा लिया था. टोक्यो ओलंपिक 2020 में इस बार 54 खिलाड़ियों का दल भारत की तरफ से गया है, जो अबतक का सबसे बड़ा दल है. भारत को इन खेलों में पांच गोल्ड मेडल सहित कम से कम 15 मेडल की उम्मीद है. अगर भारत उम्मीद के मुताबिक सफलता हासिल करता है तो इस बार मेडल तालिका में शीर्ष 25 में जगह बना सकता है. भारत 2016 रियो पैरालंपिक में दो गोल्ड, एक सिल्वर और एक ब्रॉन्ज मेडल के साथ 43वें स्थान पर रहा था.
आइए जानते हैं कि इस पैरालंपिक में किन खिलाड़ियों ने कौन-कौन सा मेडल जीता
हीडलबर्ग, पैरालंपिक 1972
मुरलीकांत पेटकर (गोल्ड मेडल) : पेटकर ने पुरुषों की 50 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी स्पर्धा में 37.33 सेकंड का समय लेकर विश्व रिकॉर्ड बनाने के साथ गोल्ड मेडल जीता था. यह भारत का पैरालंपिक खेलों में पहला मेडल था. पेटकर सेना में मुक्केबाज थे, लेकिन 1965 के भारत-पाक युद्ध में अपना हाथ गंवाने के बाद वह तैराकी में चले गए थे. वह पैरालंपिक और ओलंपिक में भारत के पहले व्यक्तिगत गोल्ड मेडल विजेता हैं.
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न्यूयार्क (अमेरिका), स्टॉक मैंडविल (ब्रिटेन) पैरालंपिक 1984
जोगिंदर सिंह बेदी (एक सिल्वर, दो ब्रॉन्ज मेडल) : बेदी ने गोला फेंक स्पर्धा में सिल्वर मेडल, जबकि चक्का और भाला फेंक स्पर्धाओं में ब्रॉन्ज मेडल जीते. वह पैरालंपिक खेलों में सबसे अधिक मेडल जीतने वाले भारतीय खिलाड़ियों में शामिल हैं.
भीमराव केसरकर (सिल्वर मेडल) : केसरकर ने 1984 पैरालिंपिक में पुरुषों की भाला फेंक स्पर्धा में सिल्वर मेडल जीता था. हमवतन जोगिंदर सिंह बेदी ने इस स्पर्धा में ब्रॉन्ज मेडल जीता था.
एथेंस पैरालंपिक 2004
देवेंद्र झाझरिया (गोल्ड मेडल) : झाझरिया ने एथेंस खेलों में पुरुषों की भाला फेंक स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतकर पैरालंपिक खेलों में मेडल का भारत का 20 साल का इंतजार समाप्त किया था. एथेंस में 62.15 मीटर के थ्रो के साथ उन्होंने नया विश्व रिकॉर्ड बनाया. उन्होंने 12 साल बाद इसमें सुधार किया. वह टोक्यो में भी अपनी चुनौती पेश करेंगे.
राजिंदर सिंह राहेलू (ब्रॉन्ज मेडल) : राहेलू ने पावरलिफ्टिंग में पुरुषों के 56 किग्रा भार वर्ग में 157.5 किग्रा के प्रयास के साथ ब्रॉन्ज मेडल जीता था. पंजाब के जालंधर जिले के मेहसमपुर गांव में जन्मे राहेलू को आठ महीने की उम्र में पोलियो हो गया था.
लंदन पैरालंपिक, 2012
गिरीशा नागराजेगौड़ा (सिल्वर मेडल) : लंदन पैरालंपिक खेलों में एकमात्र भारतीय मेडल विजेता. नागराजेगौड़ा ने पुरुषों की ऊंची कूद में 1.74 मीटर की कूद लगाकर सिल्वर मेडल जीता था. वह इस स्पर्धा में मेडल जीतने वाले पहले भारतीय थे.
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रियो पैरालंपिक, 2016
देवेंद्र झाझरिया (गोल्ड मेडल) : रियो पैरालंपिक खेलों में झाझरिया ने 63.97 मीटर भाला फेंककर गोल्ड मेडल जीता और इस तरह से पैरालंपिक खेलों में दो गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने. उन्होंने 12 साल पहले एथेंस पैरालंपिक खेलों के अपने विश्व रिकॉर्ड में सुधार किया. अब उनकी निगाह गोल्ड मेडल की हैट्रिक पूरी करने पर है.
मरियप्पन थंगावेलु (गोल्ड मेडल) : थंगावेलु ने रियो खेलों में ऊंची कूद स्पर्धा में 1.89 मीटर कूद लगाकर गोल्ड मेडल जीता. वह देश के तीसरे गोल्ड मेडल विजेता पैरालंपियन बने थे. तमिलनाडु के सलेम जिले के रहने वाले थंगावेलु पांच साल की उम्र में दिव्यांग हो गये थे.
दीपा मलिक (सिल्वर मेडल) : दीपा मलिक पैरालंपिक खेलों में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला है. उन्होंने रियो खेलों में गोला फेंक में 4.61 मीटर के सर्वश्रेष्ठ थ्रो के साथ सिल्वर मेडल जीता. उनके कमर के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त है.
वरुण सिंह भाटी (ब्रॉन्ज मेडल) : भाटी ने रियो खेलों में ऊंची कूद में ब्रॉन्ज मेडल जीता था. इस स्पर्धा में मरियप्पन थंगावेलु ने गोल्ड मेडल जीता था. भाटी ने 1.86 मीटर के व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के साथ ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया था.
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