महिला वेटलिफ्टर मीराबाई चानू को देश के
सबसे बड़े खेल पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न के नामित हुई हैं. उनके साथ टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली को भी राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार मिलने वाला है. विराट कोहली को तो पूरा देश जानता है लेकिन चानू को शायद ज्यादा लोग नहीं जानते. इस वेटलिफ्टर ने बेहद ही साधारण परिवार में जन्म लिया और जीवन में काफी दर्द झेले लेकिन इसके बावजूद चानू ने हार नहीं मानी, आइए एक नजर डालते हैं चानू के अबतक के सफर पर.
8 अगस्त 1994 को जन्मी मीराबाई मणिपुर की रहने वाली हैं. इम्फाल से 20 किलोमीटर दूर नोंगपोक काकचिंग गांव में गरीब परिवार में जन्मी चानू छह भाई बहनों में सबसे छोटी हैं.
बचपन में चानू के गांव में वेटलिफ्टिंग सेंटर नहीं था और इसलिए उन्हें रोज़ ट्रेन से 60 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था. चानू ने 2007 में खेलों में अपना सफर शुरू किया. शुरुआत उन्होंने इंफाल के खुमन लंपक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स से की थी.
मीराबाई चानू 11 साल की उम्र में अंडर-15 चैंपियन बनीं थीं और 17 साल की उम्र में जूनियर चैंपियन का खिताब अपने नाम किया था. लोहे का बार खरीदना परिवार के लिए भारी था तो उन्होंने बांस से ही बार बनाकर अपनी मेहनत जारी रखी.
चानू के अंदर बड़ी वेटलिफ्टर बनने की झलक बचपन में ही दिख गई थी. चानू अपने बड़े भाई के साथ जंगल में लकड़ियां बीनने जाती थीं. एक बार जंगल में उनका बड़ा भाई लकड़ियों का भारी गठ्ठर नहीं उठा पाया लेकिन उनसे चार साल छोटी चानू जो कि उस वक्त सिर्फ 12 साल की थीं उन्होंने उस गठ्ठर को आसानी से उठा लिया. इसके बाद वो वेटलिफ्टिंग के खेल में ही आगे बढ़ीं.

चानू ने वैसे तो कई मौकों पर देश का नाम रोशन किया है लेकिन पिछले साल 2017 वर्ल्ड चैंपियनशिप में उन्होंने गोल्ड हासिल कर सुर्खियां बटोरी थी. इसके बाद इस साल अप्रैल में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में भी उन्होंने गोल्ड मेडल हासिल किया था. हालांकि चोट के चलते वो एशियन गेम्स में हिस्सा नहीं ले पाई थीं.
मीराबाई चानू की एक बेहद दिलचस्प बात बहुत कम लोगों को पता है. चानू जब भी विदेश में टूर्नामेंट खेलने जाती हैं तो वो भारत के चावल ले जाती हैं. वो विदेश में जहां भी होती हैं वो भारत के ही चावल उबालकर खाती हैं.
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Tags: Khel ratna
FIRST PUBLISHED : September 17, 2018, 17:20 IST