CWG 2022: अचिंता शेउली ने भारत को वेटलिफ्टिंग में तीसरा गोल्ड मेडल दिलाया. उन्हें वेटलिफ्टर बनाने में मां और भाई ने बड़ा संघर्ष किया है. (AP)
नई दिल्ली. जंगली झाड़ियों और ऊंचे पेड़ों के बीच ईंट का टूटा-फूटा सा ढांचा, जिसे घर भी नहीं कहा जा सकता है. पास ही दीवार पर लगा बड़ा सा तिरंगा…आसपास बिखरे पड़े मेटल प्लेट्स. पहली नजर में तो किसी को भी देखकर यकीन नहीं होगा कि ऐसे किसी स्थान से चैंपियन भी निकल सकते हैं. लेकिन कोलकाता से एक घंटे की दूरी पर मौजूद द्यूलपुर का यह वही घर है, जहां से जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप मेडलिस्ट और नेशनल रिकॉर्ड होल्डर अचिंता शेउली ने अपने सफर की शुरुआत की थी. अचिंता शेउली ने रविवार को बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में कुल 313 किलो वेट उठाकर गोल्ड मेडल जीता
अंचिता की इस सफलता से सिर्फ उनके परिवारवाले ही खुश नहीं है, बल्कि उनके बचपन के कोच अस्तम दास भी गदगद हैं. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘जब मैंने पहली बार अचिंता को देखा, तो वह बहुत दुबले-पतले थे और बिल्कुल भी वेटलिफ्टर जैसे नहीं दिखते थे लेकिन उसके पास गति थी जो किसी भी खेल में एक एथलीट के लिए बहुत अहम होती है.’
बड़े भाई को देखकर जगा अचिंता को वेटलिफ्टिंग का शौक
अचिंता से पहले उनके बड़े भाई आलोक वेटलिफ्टिंग में उतर चुके थे. उन्होंने एक बार बॉडी बिल्डिंग प्रतियोगिता देखी और उसके बाद इस खेल का जुनून ऐसे सिर चढ़ा कि वो सीधे कोच अस्तम दास के जिम में पहुंच गए, जो उनके घर के बिल्कुल करीब था. कुछ सालों बाद अचिंता भी उस जिम में जाने लगे.
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11 साल के थे तब पिता का निधन हो गया था
आलोक ने बताया कि हम नेशनल की तैयारी कर रहे थे, जब 2013 में हमारे पिता का निधन हो गया था. पिता के गुजरने के बाद हमारी आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी. मैं कॉलेज के दूसरे वर्ष में था, जब यह हुआ और अचानक परिवार को संभालने की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गई, इसलिए मुझे वेटलिफ्टिंग छोड़नी पड़ी, लेकिन अचिंता ने खेल जारी रखा और इसमें कोच अस्तम दास का अहम रोल है.
कोच ने ट्रेनिंग के साथ खुराक का भी रखा पूरा ध्यान
नेशनल लेवल के पूर्व वेटलिफ्टर अस्तम दास का जिक्र करते हुए आलोक कहते हैं, “अस्तम ही हैं, जिन्होंने मुझे और अचिंता को अपनी देखरेख में तैयार करने का काम किया. वो हमें फ्री में ट्रेनिंग देते थे. वो वेटलिफ्टिंग के लिए इतने समर्पित थे कि उन्होंने इसके लिए अपनी बीएसएफ की नौकरी तक छोड़ दी थी.
पहले दुबले-पतले और अंडरवेट थे अचिंता
अस्तम कहते हैं कि अचिंता जब पहली बार उनके पास आए थे तो बेहद-दुबले पतले और अंडरवेट थे. लेकिन, एक बात थी, जो उन्हें बाकियों से अलग बनाती थी, वो थी वेटलिफ्टिंग में अच्छा करने की भूख. वो आसानी से हार नहीं मानते थे. मेरे पास कद-काठी में उनसे बेहतर वेटलिफ्टर भी थे लेकिन, शेउली ने अपने कभी न हार मानने के जज्बे से ऊंचा मुकाम हासिल किया. कोच ने सिर्फ उन्हें ट्रेनिंग ही नहीं दी, बल्कि उनकी खुराक का भी ध्यान रखा.
कैसे बदला अचिंता का वेटलिफ्टिंग करियर?
पिता की मौत के बाद अचिंता 2013 में जूनियर नेशनल चैंपियनशिप में उतरे वो चौथे स्थान पर रहे. लेकिन आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट के कोच की नजर उन पर पड़ी और अगले साल उन्होंने सेना के लिए ट्रायल्स दिया और वो बंगाल से चुने जाने वाले इकलौते वेटलिफ्टर बने. यहां से उनके प्रोफेशनल वेटलिफ्टर बनने की शुरुआत हुई.
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सेना में आने के बाद बदल गया करियर
अचिंता के बड़े भाई आलोक बताते हैं, ‘2014 में उन्हें आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट के लिए सेलेक्ट कर लिया गया. इसके बाद उन्होंने यूथ नेशनल गेम्स में हिस्सा लिया. वो तीसरे स्थान पर रहे. अगले साल सेना में भर्ती हो गए. इसी साल उन्हें पहली बार भारतीय कैंप के लिए बुलावा आया. यहीं से उनके चमकदार करियर की शुरुआत हुई. उन्होंने जूनियर वर्ल्ड, एशियन चैंपियनशिप औ फिर कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में पदक जीता और अब कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीतकर इतिहास रचा.’
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अचिंता को वेटलिफ्टर बनाने में मां और भाई का बड़ा योगदान
पिता की मौत के बाद बड़े भाई आलोक और मां ने अचिंता को वेटलिफ्टर बनाने के लिए दिन-रात एक कर दिया. मां ने कपड़े सिले. बड़े भाई ने भी इस काम में उनका हाथ बंटाया. एक लोडिंग कंपनी में नौकरी की, ताकि अचिंता को पैसे की दिक्कत न हो और वो अपनी ट्रेनिंग पर पूरी तरह ध्यान दे सके.
अचिंता के बड़े भाई फिलहाल फायर ब्रिगेड में संविदा कर्मचारी हैं और उनका वेटलिफ्टिंग में बड़ा मुकाम बनाने का सपना आज भी जिंदा है. लेकिन, अब वो अपने इस सपने को भाई के जरिए जी रहे हैं.
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