OpenAI का चैटबॉट है ChatGPT
नई दिल्ली. जब से OpenAI ने ChatGPT को पेश किया है, तब से ही ये चैटबॉट काफी चर्चा में है. ये चैटबॉट आम इंसानों की भाषा को समझने और उस पर प्रतिक्रिया देने में सक्षम है. ये आम इंसानों की तरह वाक्य बना लेता है. ये लिरिक्स बनाने से लेकर रेसीपी तक लिख लेता है. ये पहले के चैटबॉट्स की तरह नस्लवादी या घृणित भाषा का उपयोग भी नहीं करता है. लेकिन, इसमें एक दिक्कत भी सामने आई है.
दरअसल, ChatGPT के जवाब काफी हद तक इंसानों जैसे ही हैं. लेकिन, रीडर्स को इंसानों की भाषा और चैटबॉट की भाषा में अंतर करन पाना मुश्किल हो जाएगा. दिक्कत ये है कि चैटबॉट खुद गलत होने के बाद भी सही लगने जैसे लाइन फ्रेम कर पा रहा है. इसे पिछले हफ्ते रिलीज किया गया था और इसे काफी लोगों ने टेस्ट भी किया था.
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर अरविंद नारायणन ने इस चैटबॉट को इसके रिलीज के दिन ही टेस्ट किया और इसे कुछ सवाल किए. इसे लेकर उन्होंने कॉन्क्लूजन दिया कि- आप चैटबॉट के दिए गलत जवाबों को तब तक नहीं पहचान सकते, जब तक आपको सही जवाब ना पता हो.
उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि मैंने कोई सबूत नहीं देखा है कि ChatGPT इतना प्रेरक है कि यह विशेषज्ञों को समझाने में सक्षम है. लेकिन, ये निश्चित रूप से एक समस्या है कि गैर-विशेषज्ञों को यह बहुत ही व्यावहारिक और आधिकारिक और विश्वसनीय लग सकता है.
जब बॉट ने Microsoft को लेकर लिखा आर्टिकल
जब इस बॉट से Microsoft की त्रैमासिक कमाई के बारे में एक आर्टिकल लिखने के लिए कहा गया, तब बॉट ने काफी क्रेडिबल कॉपी तैयार किया जो माइक्रोसॉफ्ट के 2021 के फाइनेंशियल रिजल्ट्स पर आर्टिकल हो सकता था. इस आर्टिकल में रेवेन्यू, प्रॉफिट, क्लाउड कम्प्यूटिंग और वीडियो-गेम सेल्स के बारे में जिक्र था. इस बॉट ने ऐसी गलतियां नहीं कीं, जिससे ये समझ आता कि ये किसी बॉट ने लिखा है.
हद तो तब हो गई जब इस बॉट ने अपनी विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला का एक नकली कोट शामिल कर दिया. दिक्कत यहीं पर हुई. बॉट ने जो नकली कमेंट कोरोना के दौरान कंपनी के काम को लेकर लिखा था, वो इतना सटीक लग रहा था कि Microsoft रिपोर्टर को भी यह जांचना पड़ा कि क्या यह वास्तविक था.
इस साल की शुरुआत में माइक्रोसॉफ्ट AI एथिक्स के वाइस प्रेसिडेंट ने भी कहा था कि GPT जैसे लैंग्वेज मॉडल्स ने ये समझ लिया है कि इंसान अपनी बात कोट के जरिए रखते हैं, इसलिए सॉफ्टवेयर भी इसे कॉपी करते हैं. लेकिन, इनमें एथिक्स को लेकर इंसानी समझ की कमी होती है.
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