हरिकांत शर्मा/आगरा. दिवाली खुशियों का त्यौहार होता है. ये खुशियां अपनों के साथ परिवार में बंटी जाए तो कई गुना बढ़ जाती है. लेकिन कुछ लोगों के नसीब में परिवार का सुख ही नहीं है. लोग दिवाली पर दिए जलाकर रिश्तों को रोशन करते है. लेकिन वृद्धा आश्रम में रह रहे बुजुर्ग माता पिता के जीवन में उन्ही की औलादों ने अंधेरा कर दिया है. उनके परिवार ने दर दर की ठोकर खाने के लिए वृद्धा आश्रम में छोड़ दिया है. यह कहानी किसी एक बुजुर्ग मां बाप की नहीं है.
आगरा के रामलाल वृद्धा आश्रम में 330 बुजुर्ग माता पिता रहते हैं, जिन्हें आज भी अपने परिवार के साथ त्योहार मनाने की आखिरी उम्मीद है. हर त्यौहार पर उनके मन में एक उम्मीद जागती है कि शायद उनके परिवार से इस दिवाली कोई आए और उन्हें अपने घर ले जाए. जहां वह अपनों के साथ दिवाली की खुशियां बांट सकें. लेकिन यह उम्मीद सिर्फ उम्मीद ही रह जाती है.राजरानी गोयल दिल्ली लक्ष्मी नगर की रहने वाली है. किराए के मकान में रहती थी. पिछले 9 सालों से वह रामलला वृद्ध आश्रम में रह रही हैं. लेकिन जैसे ही अपनी बेटी और परिवार के बारे में सोचती हैं. आंखों से आंसू की धारा सभी प्रतिबंध पार करके बाहर निकल आती है.
देखभाल करने वाला कोई नहीं
राजरानी की एक ही बेटी है. बेटी की शादी हो गई. बेटी का भी अब ससुराल में भरा पूरा परिवार है. बेटी के साथ रहने की हिम्मत नहीं हुई. देख भाल करने वाला कोई नही था. पति पहले ही गुजर चुके थे . आश्रम में आने से पहले दिल्ली ही उनकी कमर में चोट लग गयी. खाना देने वाला भी कोई नहीं था. कई दिनों तक भूखी रही. तब बगल में रहने वाले पड़ोसी उसे वृद्ध आश्रम छोड़ गए. जब भी त्यौहार आता है. अपने परिवार और अपनी बेटी के बारे में सोच कर आंखें भर आती हैं.
रामलाल वृद्ध आश्रम में आने वाले 70 % बुजुर्ग लोगों की एक जैसी काहानी है. सभी का परिवार है. बेटा बेटी हैं. लेकिन जैसे ही बच्चों की शादी हुई और घर में बहू आई. उसके बाद से परिवार में माहौल खराब हुआ. आपस में नहीं बनी.रोजाना झगड़े होते थे. उन्हीं के परिवार जन इन बुजुर्गों को वृद्ध आश्रम की चौखट पर छोड़ कर चले गए. कई बुजुर्ग रोज-रोज की कलह से तंग आकर खुद आश्रम चले आये. कोलकाता की रहने वाली रानी गोस्वामी की आगरा में शादी हुई है.10 साल पहले पति गुजर गए. एक बेटा है. आगरा में ही काम करता है. मां ने बेटे की शादी की. लेकिन जैसे ही बहू घर में आई उसके बाद से आपस में नहीं बनी और बेटा अपनी ही मां को वृद्धा आश्रम छोड़ गया. पिछले 10 सालों से अब रानी गोस्वामी वृद्ध आश्रम में ही अन्य लोगों के साथ रहती हैं और हर तीज त्यौहार यहीं मनाती हैं .
वृद्ध आश्रम में बना एक नया परिवार
आशा देवी 71 साल की हैं. सादाबाद की रहने वाली हैं और 8 महीने पहले वृद्ध आश्रम में आई हैं.ससुराल में पूरा भरा परिवार है बेटे हैं पति है. लेकिन घर में आये दिन बहू और बेटा मारपीट करते थे. 8 महीने पहले उन्होंने अपना घर छोड़ दिया.घर छोड़ने के बाद आगरा रामलाल वृद्ध आश्रम में रहने आ गयी.उम्मीद थी कि शायद दिवाली पर को कोई मनाने के लिए आएगा. लेकिन कोई नहीं आया .ये कहते कहते आशा देवी की बूढ़ी आंखें में आंसुओं का समुंदर तैरने लगा.
दिल में घर लौटने की आस
आशा देवी जैसी 330 वृद्धजन अब इसी आश्रम के सदस्यों के साथ मिलकर हर त्योहार को मनाते हैं. हालांकि त्योहारों पर बाहर से लोग आते हैं और उन्हें मिठाइयों के साथ-साथ कपड़े बांटते हैं.लेकिन दिल के एक कोने में आज भी अपने घर लौटने की आस है. आस है कि शायद किसी दिवाली उनके परिवार का कोई सदस्य आये और उन्हें अपने साथ उनके घर ले जाये. लेकिन हर गुज़रते त्यौहार के साथ उनकी उम्मीद कमजोर पड़ती जा रही है. उन्हें नहीं पता कि मरने से पहले अपनों के साथ कोई त्यौहार मना पाएंगे या नहीं.
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