उत्तर प्रदेश के मथुरा की एक अदालत में एक अर्जी दायर कर दावा किया गया है कि ठाकुर कटरा केशव मंदिर की मूर्तियां आगरा में जामा मस्जिद के नीचे दबी हैं. जिला सरकारी वकील संजय गौर ने बताया कि वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश ज्योति सिंह की अदालत में दायर की गयी अपनी याचिका में वकील शैलेंद्र सिंह ने आगरा की जामा मस्जिद या जहांनारा मस्जिद की रेडियोलॉजिकल जांच की मांग की. शैलेंद्र सिंह इस मामले में लखनऊ के पांच याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. गौर ने बताया कि वकील ने यह मांग करते हुए दावा किया कि मथुरा के कटरा केशव देव मंदिर की मूर्तियां मस्जिद के नीचे दफन हैं.
ज्ञानवापी मस्जिद काफी समय से विवादित रही है. हिंदू पक्ष का कहना है कि मस्जिद के नीचे असल में मंदिर है, जिसे औरंगजेब के समय में नष्ट कर दिया गया था. इसी बात को कहते हुए सबसे पहले साल 1991 में वाराणसी सिविल कोर्ट में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से ज्ञानवापी में पूजा-अर्चना की अनुमति के लिए याचिका दायर की गई थी. इसके बाद से मस्जिद विवादों में आ गई. याचिका तीन पंडितों ने लगाई थी. इसके बाद साल 2019 में वकील विजय शंकर रस्तोगी ने सिविल कोर्ट में आवेदन किया. इसमें अनुरोध था कि ज्ञानवापी परिसर का सर्वे किया जाए ताकि इसके बारे में सच्चाई सामने आ सके.
याचिका वाराणसी में भगवान विशेश्वर की तरफ से नेक्स्ट फ्रेंड की भूमिका में वाराणसी के रहने वाले विजय शंकर रस्तोगी वा अन्य ने दाखिल की है. याचिका में इस विश्वनाथ मंदिर या विशेश्वर मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास बताया गया है. कहा गया है की बादशाह अकबर के ज़माने में एक बार वाराणसी और उसके आस पास बहुत भयंकर सूखा पड़ा था. बादशाह ने सभी धर्म गुरुओं से बारिश के लिए दुआ करने का आग्रह किया. एक आग्रह वाराणसी के धर्म गुरू नारायण भट्टा से भी किया गया. नारायण भट्टा के दुआ करने पर 24 घंटे में ही बारिश हो गई. इससे बादशाह अकबर बहुत खुश हुए. नारायण भट्टा ने बादशाह से भगवान विशेश्वर का मंदिर बनाने की इजाजत मांगी. बादशाह अकबर ने अपने वित्त मंत्री राजा टोडर मल को मंदिर बनाने का आदेश दिया और इस तरह भगवान विशेश्वर का मंदिर ज्ञानवापी इलाके में बन गया.
ये पूरा ज्ञानवापी इलाका एक बीघा, नौ बिस्वा और छह धूर में फैला है. मान्यता के मुताबिक, खुद भगवान विशेश्वर ने यहां अपने त्रिशूल से गड्ढा खोद कर एक कुआं बनाया था जो आज भी मौजूद है. ज्ञानवापी परिसर में चार मंडप है. यहां पर धर्म का अध्यन किया जाता था. याचिका में लिखा गया है कि 18 अप्रैल 1669 को किसी ने उस वक्त के बादशाह औरंगजेब को गलत जानकारी दी. बादशाह से शिकायत की गई कि मंदिर में अंधविश्वास सिखाया जा रहा है. इसके बादी औरंगजेब ने मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया, जिसका जिक्र अरबी भाषा में लिखी मा असीर-ए-आलमगीरी में है. ये किताब कोलकाता की एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल में मौजूद है.
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FIRST PUBLISHED : April 15, 2021, 07:46 IST