रिपोर्ट: हरिकांत शर्मा
आगरा. ईकोसिस्टम और फूड चैन को बनाए रखना है, तो गौरेया का जिंदा रहना बेहद जरूरी है. हर साल गौरैया के संरक्षण के लिए बड़े-बड़े आयोजन 20 मार्च को किए जाते हैं. दरअसल इन को विश्व गौरैया दिवस (World Sparrow Day) मनाया जाता है. इसी के उपलक्ष में आगरा वन विभाग की तरफ से आई लव आगरा सेल्फी प्वाइंट से जागरूकता रैली निकाली गई. रैली के बाद एक वर्कशॉप आयोजित की गई, जिसमें शहर के युवा, एनसीसी कैडेट्स और अधिकारी मौजूद रहे. बता दें कि पूरे विश्व में 60 फीसदी से ज्यादा गौरेया विलुप्त हो चुकी हैं, जो ईकोसिस्टम और फूड चैन को खतरा है.
आगरा वन विभाग की तरफ से गौरैया को बचाने का संदेश ताजमहल के साये से दिया गया. आई लव सेल्फी प्वाइंट से ताज नेचर वॉक तक साइकिल रैली निकाली गई .इस दौरान एक वर्कशॉप का आयोजन भी किया गया. आगरा फॉरेस्ट ऑफिसर आरूषी मिश्रा ने कहा कि गौरैया को बचाना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसका संबंध हमारे बचपन से है. हमने मां से गौरैया के बारे में खूब कहानियां सुनी हैं. इसके अलावा गौरैया हमारे पर्यावरण को स्थिर रखने में सहयोग करती है. फसलों को बचाने के साथ ईकोसिस्टम को ठीक रखती है. इसे बचाने की बेहद जरूरी जरूरत है. गौरैया धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है क्योंकि आधुनिकीकरण के चलते हमारे घर अब पहले जैसे नहीं रहे. अब कांच के घर हैं, लिहाजा शीशे के घरों में गौरैया अपना घोंसला नहीं रखती है. इसके अलावा गांव देहातों तक मोबाइल टावर लगाए जा रहे हैं. इन टावरों से निकलने वाले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणें गौरेया को विचलित कर देती हैं. इससे प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है. यह सबसे बड़ी वजह मानी जा रही है. इसे बचाने के लिए अपने घरों में लकड़ी का या फिर जूट का घोंसला रखें. पीने के लिए छतों पर पानी रखें. लोगों को जागरूक भी करें. पेड़ लगाएं और कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल कम करें.
इस वजह से आया संकट
दरअसल अंधाधुंध तरीके से हो रही जंगलों की कटाई और बढ़ते शहरीकरण से गौरैया की प्रजातियां नष्ट हो रही है. एक अनुमान के मुताबिक, 60 फीसदी तक गौरैया की संख्या कम हो गई है. ताज के शहर आगरा में भी एकाध ही जगह पर गौरैया अब देखने को मिलती है. गौरैया की घटती संख्या से ईकोसिस्टम व फूड सिस्टम को भी खतरा उत्पन्न हो गया है. लॉकडाउन में ग्रामीण इलाकों में गौरैया दिखी थी, लेकिन फिर से तेज गति के साथ यह प्रजाति विलुप्त होती जा रही है. भारत में ही इसकी 6 प्रजाति पाई जाती हैं. घरेलू गौरैया का वैज्ञानिक नाम पैसर डोमेस्टिकस. खेती के लिए गौरैया बेहद उपयोगी मानी जाती है. फसल से कीड़ों को खाकर फसल को सुरक्षित रखने में सहयोग करती है.
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