वैसे तो अलीगढ़ का अचलेश्वरधाम मंदिर 500 साल पुराना है मगर पौराणिक कथाओं में भी इसका वर्णन मिलता है.मुगलों से युद्ध करते हुए एक मराठा यहां पर आए थे जिनका नाम माधवी राज सिंधिया था उन्होंने अचलेश्वरधाम की महिमा के बारे में पता किया फिर उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था.अचलेश्वर धाम और गिरिराज जी मंदिर के महंत योगी कौशल नाथ ने बताया कि यह विश्व में एकमात्र मंदिर है जहां भगवान श्री हनुमान जी महाराज का रूप गिलहरी के रूप में है.यह मान्यता बताई जाती है जब सागर तट पर रामसेतु का निर्माण हो रहा था.तब एक गिलहरी वहां पर रामसेतु बनने में सहायता करवा रही थी तो गिलहरी को भगवान श्रीराम ने हाथ पर बैठाकर उस पर अपनी तीन उंगलियां फेरी थी तभी हनुमान जी गिलहरी का रूप रखकर अलीगढ़ आए थे और उन्होंने यहां विश्राम किया था.
मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है.महंत योगी कौशल नाथ बताते हैं कि द्वापरयुग में महाभारत काल में पांडव का अज्ञातवास दिया गया था.पांडव के दोनों छोटे भाई नकुल और सहदेव यहां आए थे.उन्होंने सरोवर में स्नान किया था उसके बाद बाबा अचलेश्वरधाम की पूजा अर्चना की थी.इसके बाद से धीरे-धीरे धार्मिक मान्यताएं बढ़ती चली गई.अचलेश्वरधाम बाबा सिद्धपीठ है जो भी मन से मन्नत मांगी जाती है अवश्य पूर्ण होती है.इसलिए अक्षरधाम के चारों ओर मंदिर बनते चले गए 500 साल पहले मुगलों के राज्य में मंदिर की देखरेख नहीं हो पाई महंत योगी कौशल नाथ ने बताया कि इस जगह को छोटी ब्रज कोसी परिक्रमा के रूप में भी जाना जाता है.यहां सावन के महीने में मेला लगता है जो कि अलीगढ़ का प्रसिद्ध मेला होता है बाबा अचलेश्वर धाम पूरे शहर में संरक्षक के रूप में प्रसिद्ध है.
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