अलीगढ़ के कटपुला स्थित बरछी बहादुर की दरगाह पर हिन्दू–मुस्लिम सिख–इसाई सभी धर्म के लोग इबादत करने के लिए दूर-दूर से आते हैं,बाबा बरछी बहादुर की दरगाह 750 साल पुरानी बताई जाती है, दरगाह के बारे में यह मान्यता बताई जाती है कि जो भी यहां चादर चढ़ाकर इबादत करता है उसकी हर मन्नत पूरी होती है और इसका यही कारण है कि यहां रोज सैकड़ों लोग दरगाह पर आते हैं.कहा जाता है ब्रिटिश हुकूमत के समय दरगाह के पास रेल की पटरी बिछाई जा रही थी तभी रात के समय पटरी अपने आप उखड़ जाती थी.एक मुस्लिम इंजीनियर थे उनके ख्वाब में बाबा ने कहा कि दरगाह को छोड़कर पटरी बनाओ जब ऐसा किया गया तभी पटरी बिछाने का काम पूरा हो सका यह बात अलीगढ़ के ऐतिहासिक दस्तावेजों में दर्ज सत्य घटना है.
अजमेर के ख्वाजा गरीब नवाज ने ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकवी को अपना शार्गिद बनाया था और बाबा बरछी बहादुर कालवी के साथी थे बाबा बरछी बहादुर का नाम सैयद तहबुर अली था.उनके अनुयायी हजरत जोरार हसन ने सबसे पहले बरछी बहादुर पर उर्स की शुरुआत की थी.मोहम्मद मुवीन ने बताया कि यह दरगाह शुरू से ही एकता का संदेश देती आई है अलीगढ़ में कई बार दंगे हुए मगर यहां आने में किसी को डर नहीं लगता.हिंदू-मुस्लिम हर धर्म–वर्ग के लोग यहां आकर मुराद मांगते हैं सबकी मुरादें पूरी होती हैं.
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