CAA हिंसा: इलाहाबाद हाईकोर्ट से योगी सरकार को झटका, आरोपियों के पोस्टर हटाने का आदेश

अब कैदियों की रिहाई में नहीं होगी मुश्किल (फाइल फोटो)
CAA Violence: महाधिवक्ता राघवेंद्र प्रताप सिंह ने दलील देते हुए कहा था कि सरकार ने ऐसा इसलिए किया, ताकि आगे इस तरह का प्रयास न किया जाए. हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad high Court) ने उनकी दलील से सहमत नहीं हुआ.
- News18 Uttar Pradesh
- Last Updated: March 9, 2020, 3:55 PM IST
प्रयागराज. नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में लखनऊ (Lucknow) में उपद्रव और तोड़फोड़ करने वाले आरोपियों का पोस्टर लगाए जाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) से योगी सरकार को तगड़ा झटका लगा है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की दलीलों को खारिज करते हुए लखनऊ के डीएम और पुलिस कमिश्नर को अविलंब पोस्टर और बैनर हटाये जाने का आदेश दिया. कोर्ट ने आरोपियों के पोस्टर लगाए जाने की कार्रवाई को अनावश्यक और निजता के अधिकार का उल्लंघन माना है.
कोर्ट ने याचिका निस्तारित की
इसके साथ ही राज्य सरकार को सख्त हिदायत दी है कि किसी भी आरोपी से सम्बन्धित कोई भी निजी जानकारी कतई सार्वजनिक न की जाये. किसी भी आरोपी के नाम, पते और फोन नम्बर जैसी जानकारी सार्वजनिक न की जाये, जिससे कि उसकी पहचान उजागर हो सके. हाईकोर्ट ने डीएम और पुलिस कमिश्नर को 16 मार्च तक अनुपालन रिपोर्ट रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष दाखिल करने का भी आदेश दिया है. चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की स्पेशल बेंच ने ओपेन कोर्ट में फैसला सुनाने के बाद याचिका निस्तारित कर दी है.
राज्य सरकार ने दी थी ये दलीलबता दें कि लखनऊ में हिंसा के आरोपियों से वसूली के पोस्टर लगाए जाने के कदम पर कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए 8 मार्च को मामले की सुनवाई की थी. रविवार होने के बावजूद चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर और जस्टिस राकेश सिन्हा की स्पेशल बेंच ने मामले की सुनवाई की थी. सरकार की ओर कोर्ट में पेश हुए महाधिवक्ता राघवेंद्र प्रताप सिंह ने दलील दी कि सरकार ने ऐसा इसलिए किया, ताकि आगे इस तरह से सार्वजानिक संपत्तियों को नुकसान न पहुंचाया जाए. हालांकि, पीठ सरकार की दलीलों से संतुष्ट नहीं दिखी. कोर्ट का कहना था कि बिना दोषी करार दिए इस तरह से पोस्टर लगाना निजता का हनन है.
सुप्रीम कोर्ट जा सकती है यूपी सरकार
इस बीच, खबर आ रही है कि हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है. हाईकोर्ट का पूरा फैसला मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट जा सकती है. बता दें कि लखनऊ के प्रमुख चौराहों पर 28 आरोपियों के पोस्टर लगाए गए हैं.
यह है मामला
बता दें कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में लखनऊ में 19 दिसम्बर को ठाकुरगंज और कैसरबाग क्षेत्र में हुई हिंसा के आरोपियों के खिलाफ एडीएम सिटी (पश्चिम) की कोर्ट से वसूली आदेश जारी हुआ है. मामले में जिलाधिकारी (लखनऊ) अभिषेक प्रकाश ने कहा कि हिंसा फैलाने वाले सभी जिम्मेदार लोगों के लखनऊ में पोस्टर और बैनर लगाए गए हैं. उन्होंने कहा सभी की संपत्ति कुर्क करने की बात भी कही थी. सभी चौराहों पर ये पोस्टर लगाए गए हैं, जिससे उनके चेहरे बेनकाब हो सकें.

ये भी पढ़ें:SC/ST एक्ट के मामले में कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर को पुलिस ने दी क्लीन चिट
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कोर्ट ने याचिका निस्तारित की
इसके साथ ही राज्य सरकार को सख्त हिदायत दी है कि किसी भी आरोपी से सम्बन्धित कोई भी निजी जानकारी कतई सार्वजनिक न की जाये. किसी भी आरोपी के नाम, पते और फोन नम्बर जैसी जानकारी सार्वजनिक न की जाये, जिससे कि उसकी पहचान उजागर हो सके. हाईकोर्ट ने डीएम और पुलिस कमिश्नर को 16 मार्च तक अनुपालन रिपोर्ट रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष दाखिल करने का भी आदेश दिया है. चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की स्पेशल बेंच ने ओपेन कोर्ट में फैसला सुनाने के बाद याचिका निस्तारित कर दी है.
राज्य सरकार ने दी थी ये दलीलबता दें कि लखनऊ में हिंसा के आरोपियों से वसूली के पोस्टर लगाए जाने के कदम पर कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए 8 मार्च को मामले की सुनवाई की थी. रविवार होने के बावजूद चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर और जस्टिस राकेश सिन्हा की स्पेशल बेंच ने मामले की सुनवाई की थी. सरकार की ओर कोर्ट में पेश हुए महाधिवक्ता राघवेंद्र प्रताप सिंह ने दलील दी कि सरकार ने ऐसा इसलिए किया, ताकि आगे इस तरह से सार्वजानिक संपत्तियों को नुकसान न पहुंचाया जाए. हालांकि, पीठ सरकार की दलीलों से संतुष्ट नहीं दिखी. कोर्ट का कहना था कि बिना दोषी करार दिए इस तरह से पोस्टर लगाना निजता का हनन है.
सुप्रीम कोर्ट जा सकती है यूपी सरकार
इस बीच, खबर आ रही है कि हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है. हाईकोर्ट का पूरा फैसला मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट जा सकती है. बता दें कि लखनऊ के प्रमुख चौराहों पर 28 आरोपियों के पोस्टर लगाए गए हैं.
यह है मामला
बता दें कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में लखनऊ में 19 दिसम्बर को ठाकुरगंज और कैसरबाग क्षेत्र में हुई हिंसा के आरोपियों के खिलाफ एडीएम सिटी (पश्चिम) की कोर्ट से वसूली आदेश जारी हुआ है. मामले में जिलाधिकारी (लखनऊ) अभिषेक प्रकाश ने कहा कि हिंसा फैलाने वाले सभी जिम्मेदार लोगों के लखनऊ में पोस्टर और बैनर लगाए गए हैं. उन्होंने कहा सभी की संपत्ति कुर्क करने की बात भी कही थी. सभी चौराहों पर ये पोस्टर लगाए गए हैं, जिससे उनके चेहरे बेनकाब हो सकें.
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