प्रयागराज: साल भर हम अलग-अलग अवसर पर अलग-अलग त्योहार मनाते हैं. देखा जाए तो यह त्यौहार ही हैं जो हमें हमारे पुराने रीति-रिवाज से जोड़े रखते हैं. एक पीढ़ी अपने आगे की पीढ़ी को कुछ पुराना और बेहतर देती हैं. डाली छठ भी कुछ ऐसा ही है,यह एक बहुत पुरानी परंपरा है, जो धर्म और आस्था से जुड़ी है.यह पर्व है भगवान सूर्य की पूजा का, यह पर्व है छठी मैया से प्रार्थना करने का. एक वक्त था जब यह त्योहार कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित था, लेकिन आज छठ सिर्फ बिहार में सीमित नहीं है बल्कि अलग-अलग प्रदेशों में अपने-अपने ढंग और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. चार दिन के इस पर्व की शुरुआत नहाए-खाए से होती है, दूसरे दिन खरना होता है और तीसरे दिन संध्या अर्घ्य दिया जाता है. चौथे दिन प्रातः भोर में सूर्य को अर्घ्य दिया जाता हैं. यह व्रत कठिन तपस्या का है जो माता छठी के आशीर्वाद से संपन्न हो जाता है. आज आस्था नगरी के विभिन्न घाटों पर श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंच रहे हैं और छठ की पूजा विधि-विधान से कर रहे हैं. आस्था नगरी आज मिनी बिहार बन गई हैं.आज वह डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगें और छठी मैया से प्रार्थना की.
खास होती है इस पर्व की तैयारी और पूजा
4 दिन के इस पर्व में,प्रत्येक दिन अलग-अलग तैयारियां और विधि-विधान किए जाते हैं. पहले दिन औरतें शाम को लौकी और चने की दाल के साथ चावल खाती हैं. जिसे नहाए-खाए कहा जाता है. दूसरे दिन खरना, जब औरतें घी के परांठे और मीठा भात खाती हैं. तीसरे दिन औरतें निर्जल व्रत रखती हैं और शाम को संगम तट पर पहुंचकर पूजा-अर्चना करती हैं और सूर्य को अर्घ्य देती है.चौथे दिन प्रातः भोर में सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और अपना व्रत खोला जाता है. इस दौरान घर को साफ किया जाता है. गुड़ और आटे का ठेकुआ, चावल के लड्डू बनाए जाते हैं. औरतें कलसूप,दोउरा खरीदती है, जिसमें विभिन्न प्रकार की सीजनल फल जैसे-चकोतरा, सिंघाड़ा, शकरकंद,अनानास,सेब, केला और विभिन्न प्रकार की सब्जियां,अदरक, हल्दी उसमें रखी जाती हैं. रिश्तेदार-नातेदार इस पर्व पर इकट्ठा होते हैं और साथ में इस पर्व को मनाते हैं.
अत: छठी मइया का यह पर्व बेहद खास है.
( रिपोर्ट- प्राची शर्मा)
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