हिंदू नव वर्ष
अमित सिंह
प्रयागराज : आदिकाल से ही “समय चक्र” गतिमान है, जिसे इसे हिंदू धर्म में ज्योतिष की भाषा में काल गणना के रूप में माना जाता है. संख्यात्मक अंकों के विज्ञान की मानें तो आज से दुनिया का एक अरब 97 करोड़ 29 लाख 40 हजार 125वां साल शुरू हो चुका है जिसे हम हिंदू नव वर्ष के रूप में स्वीकार कर रहे हैं. आज से हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत 2080 लग चुका है. मानव इतिहास में अब तक लगभग 30 कैलेंडर बने हैं, जहां भारत में 20 पंचांग अब तक बन चुके हैं. ग्रहों की दिशा और चाल के अनुसार मौसम में परिवर्तन होता रहता है. सटीक काल गणना के लिए गणित का तरीका भी परिवर्तित होता रहा है.
प्रयागराज के आचार्य लक्ष्मीकांत शास्त्री ने बताया कि अंग्रेजी यानी ग्रेगोरियन कैलेंडर जिसे हम स्टाइल कैलेंडर के नाम से भी जानते हैं. यह सौर डेटिंग प्रणाली पर आधारित है. यहां दिन की गणना दो आधार पर होते हैं एक सूरज और दूसरा चंद्रमा यानी जो हमें दिखता है हम उसे आधार बनाकर गति को नापने का प्रयास करते हैं. माना जाता है कि 1582 में पोप ग्रेगरी ने इसे शुरू किया था. वहीं दूसरी ओर हिंदू कैलेंडर में विक्रम संवत को अत्यंत प्राचीन संवत माना जाता है.
भारत के सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से यह सर्वाधिक लोकप्रिय है. इसे सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने लगभग 2078 वर्ष यानी 57 ईसा पूर्व में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ किया. वर्तमान में भारत के अधिकतर राज्यों में यही प्रचलित है. खास बात यह है कि जब ईसा मसीह का जन्म भी नहीं हुआ था तब से इस कैलेंडर की शुरुआत हुई है. इस कैलेंडर की गणना चंद्र गणना पर आधारित है. जिसमें एक महीने में एक पूर्णिमा और एक अमावस्या आती है.
समय को मापने का हिसाब-किताब समझिए
समय के विज्ञान को समझने के लिए हमें सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी तीनों की चाल को समझना नितांत जरूरी है. पृथ्वी पर रात्रि और दिवस चक्र और मौसम परिवर्तन के के जिम्मेदार सूर्य और चंद्रमा ही होते हैं. पृथ्वी चंद्रमा के साथ मिलकर सूर्य का चक्कर लगाती है. इसी कारण तीनों की चाल समझकर ही सटीक काल गणना की जा सकती है. इसके लिए ज्योतिष की किताबों में विभिन्न प्रकार के सूत्र और सिद्धांत लिखे गए हैं जिनके द्वारा यह गणना की जाती है.
मानव इतिहास में राजा महाराजा अपने अपने अनुसार संवत का निर्धारण करते थे. इसके पीछे का यह तर्क रहता था की जनता में संदेश जाए कि नए युग का निर्माण हो रहा है. शास्त्रों की विधि के मुताबिक किसी भी राजा को नया संगत शुरू करने के लिए पहले राज्य के सभी लोगों का कर्ज चुकाना पड़ता था. इसके बाद ही वह नए संवत की शुरुआत कर सकता था. वैसे तो भारतीय इतिहास में कई कैलेंडर हैं लेकिन वर्तमान में सिर्फ शालिवाहन और विक्रम संवत दो ही प्रचलन में है.
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