प्रयागराज. प्रदेश के उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत लगभग 27000 से अधिक अनुदेशकों का मानदेय 17000 रुपये प्रतिमाह करने के मामले में सुनवाई शुक्रवार को भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में पूरी नहीं हो सकी. सुनवाई के दौरान ये स्पष्ट नहीं हो सका कि केंद्र सरकार ने अनुदेशकों को दिए जाने वाले मानदेय के मद में राज्य सरकार को कितना बजट दिया है. अब राज्य सरकार ने इसके लिए अदालत से समय की मांग की है. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने कहा कि अनुदेशकों की नियुक्ति संविदा के आधार पर की गई है और ऐसे में उसकी शर्तें और मानदेय उन पर लागू होगा.
राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि केंद्र सरकार ने राज्य को अपने अंश का पैसा नहीं दिया है. राज्य सरकार अपने स्तर से अनुदेशकों का पेमेंट कर रही है. अनुदेशकों की तरफ से कहा गया कि केंद्र ने अपनी योजना के तहत परिषदीय विद्यालयों के उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत अनुदेशकों का मानदेय 2017 में 17 हजार कर दिया था. इस दौरान राज्य सरकार ने दावा किया कि ऐसी दलील दी गई है कि केंद्र सरकार की ओर से रुपये रिलीज करने के बावजूद अनुदेशकों को 17000 रुपये प्रतिमाह की दर से पैसा नहीं दिया जा रहा है जो कि पूरी तरह से गलत है. कोर्ट अब मामले से संबंधित अपीलों पर 24 मई को सुनवाई करेगा.
गौरतलब है कि इस मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में भी अनुदेशकों की ओर से एक याचिका दाखिल की गई है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की प्रधान पीठ और लखनऊ बेंच में दाखिल दोनों याचिकाओं पर चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच एक साथ सुनवाई कर रही है. इस मामले में केंद्र की बहस पहले ही पूरी हो चुकी है. राज्य सरकार का कहना है कि भारत सरकार की ओर से उन्हें पूरा फंड नहीं दिया गया है. दरअसल अनुदेशकों को जो मानदेय दिया जाता है उसमें 60 फीसदी अंशदान केन्द्र सरकार का और राज्य सरकार का 40 फीसदी अंशदान शामिल होता है. कोर्ट ने पूछा है कि केंद्र ने अगर बजट नहीं किया तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं गई.
क्या है मामला
प्रदेश के 27 हजार से ज्यादा अनुदेशकों का मानदेय केंद्र ने 2017 में बढ़ाकर 17000 रुपये कर दिया था. जिसको यूपी सरकार ने लागू नहीं किया है. मानदेय बढ़ाने की मांग को लेकर अनुदेशकों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी. इस पर सुनवाई के बाद जस्टिस राजेश चौहान के सिंगल बेंच ने 3 जुलाई 2019 को आदेश पारित किया था कि अनुदेशकों को 2017 से 17000 रुपये का मानदेय 9 फीसदी ब्याज के साथ दिया जाए. लेकिन राज्य सरकार ने सिंगल बेंच के आदेश का पालन नहीं किया और इस फैसले के खिलाफ विशेष अपील में चली गई.
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