लार्ड कर्जन पुल.
प्रयागराज : अंग्रेजों के जमाने का बना लॉर्ड कर्जन पुल अब प्रयागराज के युवाओं का पिकनिक स्पॉट बन चुका है. फोटोग्राफी करनी हो, फिल्म शूटिंग हो या फिर घंटों दोस्तों के साथ समय बिताना हो, शहर के अधिकतर युवाओं का जमावड़ा यहीं देखने को मिलता है.
117 वर्ष पुराने कर्जन पुल पर 1998 से रेल यातायात और सड़क यातायात को बंद कर दिया गया है. यह केवल अब टूरिस्ट स्पॉट बन कर रहा गया है. 15 जून 1905 को इसे पब्लिक के लिए खोला गया था. जिसका संचालन अवध व रुहेलखंड रेलवे करती थी. अब इसे टूरिस्ट स्पॉट के रूप में विकसित करने की योजना बनाई जा रही है. लेकिन अभी तक इस दिशा में कुछ हो नहीं सका है.
जानिए क्या लार्ड कर्जन पुल का इतिहास
सन् 1899 से 1905 तक वायसराय रहे लार्ड कर्जन के नाम पर इस पुल का नामकरण किया गया था. 1901 में इसके निर्माण को स्वीकृति मिली व जनवरी 1902 में निर्माण शुरू हुआ.पुल में 61 मीटर लंबे गर्डर और 15 पिलर का प्रयोग किया गया है. पुल के नीचे की ओर सिंगल ब्राड गेज रेलवे लाइन है जबकि ऊपर सड़क है. गंगा पर बने इस पुल की लंबाई 5 किलोमीटर है. पुल के ऊपरी हिस्से में बनी सड़क की चौड़ाई 15 फिट है जबकि दोनों तरफ चार फिट एक इंच चौड़े दो फुटपाथ हैं.
बंद होने के पहले पुल से गुजरने वाली अंतिम ट्रेन थी गंगा-गोमती
रेल और सड़क यातायात के लिए पुल को असुरक्षित बताते हुए रेलवे ने 1998 में इस पुल को बंद करने व गिराने का निर्णय लिया था. बंद होने के पहले पुल से अंतिम ट्रेन प्रयागराज से लखनऊ जाने वाली गंगा-गोमती एक्सप्रेस गुजरी थी. शहर के उत्तरी हिस्से में बना यह रेल कम सड़क पुल शहर का तीसरा सबसे पुराना पुल है. वर्ष 1998 में भारी यातायात के लिए इसे निषिद्ध कर रेल व रोड यातायात के लिए बंद कर दिया गया.
ये है कर्जन पुल का असली नाम
शहर के अधिकतर लोग इसे कर्जन पुल के नाम से ही जानते हैं, लेकिन ये इसका आधिकारिक नाम नहीं है. शहर को फैजाबाद और लखनऊ रेल मार्ग से लिंक करने वाले इस पुल का आजादी के बाद अधिकारिक नामकरण मोतीलाल नेहरू सेतु किया गया था. लेकिन स्टील के बने इस पुल को लोग लार्ड कर्जन पुल के नाम से ही जानते थे और आज भी इसी नाम से जानते हैं.
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