प्रयागराज. यूपी के अपर प्राइमरी स्कूलों में कार्यरत 27000 से ज्यादा अनुदेशकों को 17000 मानदेय दिए जाने के मामले में बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में अहम सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस की डिविजन बेंच में लगभग डेढ़ घंटे बहस हुई. अनुदेशकों की ओर से अधिवक्ता दुर्गा तिवारी और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता डॉ एपी सिंह ने अनुदेशकों का पक्ष रखा, लेकिन अनुदेशकों की ओर से बहस आज पूरी नहीं हो सकी. इसके बाद कोर्ट ने 20 मई की तिथि नियत करते हुए सुनवाई का आदेश दिया है.
गौरतलब है कि इस मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में भी अनुदेशकों की ओर से एक याचिका दाखिल की गई है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की प्रधान पीठ और लखनऊ बेंच में दाखिल दोनों याचिकाओं पर चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच एक साथ सुनवाई कर रही है. इस मामले में केंद्र सरकार की बहस पहले ही पूरी हो चुकी है. राज्य सरकार का कहना है कि भारत सरकार की ओर से उन्हें पूरा फंड नहीं दिया गया है. अनुदेशकों को जो मानदेय दिया जाता है उसमें 60 फीसदी अंशदान केन्द्र सरकार का और राज्य सरकार का 40 फीसदी अंशदान शामिल होता है. कोर्ट ने पूछा है कि केंद्र ने अगर बजट नहीं किया तो राज्य सरकार सुप्रीम क्यों नहीं गई?
दरअसल प्रदेश के 27 हजार से ज्यादा अनुदेशकों का मानदेय केंद्र सरकार ने 2017 में बढ़ाकर 17000 रुपये कर दिया था. जिसको यूपी सरकार ने लागू नहीं किया है. मानदेय बढ़ाने की मांग को लेकर अनुदेशकों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी, इस पर सुनवाई के बाद जस्टिस राजेश चौहान की सिंगल बेंच ने 3 जुलाई 2019 को आदेश पारित किया था कि अनुदेशकों को 2017 से 17000 मानदेय 09 फीसदी ब्याज के साथ दिया जाए, लेकिन राज्य सरकार ने सिंगल बेंच के आदेश का पालन नहीं किया और इस फैसले के खिलाफ विशेष अपील में चली गई है.
याची अनुदेशक विवेक सिंह व आशुतोष शुक्ला समेत कई अन्य अनुदेशकों ने इस मामले में याचिका दाखिल की थी. राज्य सरकार की विशेष अपील पर चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जे जे मुनीर की डिवीजन बेंच सुनवाई कर रही है.
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