रिपोर्ट: अमित सिंह
प्रयागराज: हम भले ही 5G के दौर में आ चुके हों, लेकिन सदियों पहले भी किताबों की प्रासंगिकता थी और आज भी है. यकीनन किताबें कभी आउट ऑफ फैशन नहीं हो सकतीं. ये अलग बात है कि ये किताबें चाहे बड़ी दुकान पर बिकती हों या सड़क किनारे पटरियों पर. पूरब के ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इर्द-गिर्द सड़कों के किनारें ऐसी कई दुकानें रोज लगती हैं, जहां पर नई-पुरानी हजारों किताबें बेची जाती हैं.
तभी तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर संतोष सिंह इन दुकानों को ‘किताबों का सस्ता मॉल’ कहते हैं. उन्होंने बताया कि इविवि क्षेत्र के चारो तरफ पटरियों पर करीब 20 से अधिक दुकानें लगती हैं, जिन्हें लगते हुए करीब 100 वर्ष से अधिक हो चुके हैं. इनकी खास बात यह है कि विश्वविद्यालय ही नहीं बल्कि तमाम परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थी भी यहां से किताबें खरीदते हैं. इन दुकानों में किताबों की वैरायटी अधिक और कीमत बेहद कम है. यहां करीब 10000 से अधिक विभिन्न विषयों की किताबें मिल जाती हैं.
पहली किताब पटरियों से ही खरीदी
प्रोफेसर संतोष सिंह ने अपने छात्र जीवन को याद करते हुए बताया कि कि मैंने अपनी पहली किताब पटरी दुकानदारों से ही खरीदी थी, जो लगभग मेरे समय में ₹30 के आसपास थी. यदि मैं उस समय किसी बड़ी दुकान पर जाता तब मुझे वही किताब करीब डेढ़ सौ रुपये के आसपास मिलती. अतः पटरी पर लगी दुकान से बड़ी सहजता से मुझे कम दाम में किताब प्राप्त हो गई.
पुरानी किताबें खरीदने के कई फायदे
प्रो. संतोष सिंह ने बताया कि लगभग इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना के पहले ही पटरियों की दुकानों पर किताबें खरीदी और बेची जा रही हैं. पढ़ी हुई पुरानी किताबें मिलने से कई फायदे होते हैं. उनमें आपको महत्वपूर्ण टॉपिक मार्क मिलेंगे, क्योंकि उनसे पहले किसी सीनियर छात्र ने इसे पढ़ी है. साथ ही इनमें विषयवार चिन्हीकरण भी किया है. जब उनका कार्य इससे खत्म हो जाता है तो वह अपने छोटे भाइयों या मित्रों को भेंट दे देते हैं या फिर इन पटरी दुकानदारों को बेच देते हैं.
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