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Prayagraj News : संगम किनारे की जाती है बिना केमिकल वाले तरबूज की खेती, जानिए कैसे करें असली और नकली की पहचान

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तरबूज

तरबूज की खेती 

सुरेश की माता लीला देवी ने आगे बताया कि इन मौसमी फलों और सब्जियों को पूरी तरह से उगाने के लिए 6 महीने तक इसी गंगा किनार ...अधिक पढ़ें

रिपोर्ट : अमित सिंह

प्रयागराज. मार्च के अंतिम दिनों के लय में सूरज की किरणें भी तीव्रता की ओर गतिमान है. ऐसे में इस बढ़ती गर्मी से राहत दिलाने को मौसमी फलों की खेप बाजारों में खूब व्यवसाय कर रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन फलों और सब्जियों की खेती कैसे की जाती है, तो आइए आपको बताते है.

नदी के तराई क्षेत्र के इलाकों में इन फलों और सब्जियों की खेती की जाती है.धर्म नगरी प्रयागराज में भी तमाम प्रकार के खीरा, ककड़ी ,तरबूज और कोहड़ा आदि सब्जियों की खेती की जाती है. प्रयागराज के फाफामऊ स्थित पुल के नीचे फलों और सब्जियों की खेती करने वाले सुरेश कुमार ने बताया कि जैसे ही गंगा नदी का जलस्तर में कमी होती है.हम इसके लिए काम करना शुरू कर देते है. सबसे पहले हम विशेष प्रकार के बीजों का चयन करते है. फिर गंगा के किनारे इसे लगा देते हैं. खास बात यह है कि इन मौसमी फलों को पूरी तरीके से बाजार में उतरने तक चार से पांच महीने का पूरा वक्त लगता है.

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खेत में रहकर करना पड़ता है रखवाली
सुरेश की माता लीला देवी ने आगे बताया कि इन मौसमी फलों और सब्जियों को पूरी तरह से उगाने के लिए 6 महीने तक इसी गंगा किनारे हमें रहना होता है. वहीं दूसरी ओर जानवर जो फसल को नुकसान करने के लिए यहां मौजूद होते हैं, उनसे भी बचना होता है.निराई गुड़ाई और सिंचाई सबसे बेहद और अहम पड़ाव होता है. यानी अगर हम समय पर इसकी सिंचाई न करे तो यह मौसमी फल अपने पूरे आकार और स्थिति पर नहीं आ पाते है. वही अगली कड़ी में कीटनाशक दवाओं का उपयोग भी बहुत जरूरी होता है समय-समय पर इन दवाओं का छिड़काव करना पड़ता है.

कई पीढ़ियों से कर रहे है काम
सुरेश ने आगे बताया तरबूज ककड़ी, खीरा और सब्जियों आदि की खेती का काम वह तीन पीढ़ियों से कर रहे हैं .खास बात यह है कि आपसी सामंजस्य के आधार पर उन्हें गंगा किनारे जमीन भी मिल जाती है. यानी इसके लिए उन्हें किसी भी प्रकार का कोई शुल्क किसी को नहीं देना पड़ता है. उनकी ही तरह अन्य लोग गंगा के किनारे अन्य स्थानों पर इसी प्रकार खेती करते है. यहां कहीं भी किसी प्रकार की विवाद की स्थिति नहीं होती है.

रंग से होता है असली और नकली की पहचान
सुरेश ने बताया कि बाजार में बड़े और आकर्षक तरबूज बेचने के चक्कर में व्यापारी कई प्रकार के वैज्ञानिक प्रयोग कर रहे है, जिसके कारण लोग इसे खाकर बीमार होते हैं . असली और नकली तरबूज चेक करने के लिए सबसे पहले तरबूज के एक छोटे भाग को काट ले और बड़े बर्तन डाल दें. यदि वह एक मिनट के अंदर ही वह रंग छोड़ देता है तो वह निश्चित तौर पर नकली है , लेकिन आधे घंटे के बाद धीरे-धीरे डी रंग छोड़ता है तो वह असली होता है.

Tags: Allahabad news, Uttar Pradesh News Hindi

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