खाली बलिया के माटी के बात कइल जाउ, तो इ धरती खुद में क्रांतिकारी रहल बा अऊर क्रांतिकारी लोगन के समर्थन कइले बा.
भोजपुरिया माटी कहीं के होखे, हर जगह लोग इहे बोलेला कि उनकरा इहां के माटी बहुते खांटी ह. इ होखबे करे ला कि सबके आपन जनम भूमि से प्यार होला. एसे सब आपना जनम असथान के बखान करबे करी. भोजपुरिया माटी के त कोना कोना बड़का बड़का लोगन से भरल बा. पहिलका राष्ट्रपति बाबू राजेन्द्र प्रसाद होखसु, चाहे दूसरका आजादी के नेता बाबू जय प्रकाश नारायण, बड़ा लांबा बखान बा ये माटी के. अब त ए इतिहास में दुगो प्रधानमंत्री शास्त्री जी अउरी चंद्रशेखर के नाम भी जुड़ि गइल बा.
अउरी त अउरी, एघरी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लोकसभा के चुनाव लड़े के खातिर एही माटी के चुनले हउवन. एक से एक विद्वान भी ये माटी में पैदा भइले - डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी से लेके डॉ. नामवर सिंह तक के नाम लिहल जा सकेला. अइसे ते 50 हजार वर्ग मील में भोजपुरी भाषा बोलल जाला. लाख टका के बात इ बा कि देश के बाहर जाके भी इहां के लोग अपना माटी के ना भुला पावेला. भोजपुरिया समाज त अइसन ह कि दूर देस में जाइ के भी अपना देस के बखान में आगे रहल बा. आजादी के लड़ाई के समय मॉरीशस, त्रिनिडॉड, फिजी अउर गुआना तक रघुवीर नारायण के बटोहिया गीति गावल जात रहे-
अपर परदेस देस सुभग सुघर बेस
मोरे हिंद जग के निचोड़ रे बटोहिया
सुंदर सुभूमि भइया भारत के भूमि जेही
जन ‘रघुबीर’ सिर नावे रे बटोहिया.
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वो समय आपन देस भारत में त भोजपुरिया लोग तरह तरह के गीत गावते रहल. महेंदर मिसिर के कई गो गीत आजो लोग गावेला, ओहि में एगो गीत के लाइन ह कि ‘हमका नीक नाहीं लागेला गोरन के करनी, रूपया सब ले गइले देले दुअन्नी.’ एह सबके बीच में बलिया जिला के बाते आलागा ह. अब देखीं सबे कि जब हमनी के इसकूल जात रहनी जा, त सुनात रहे कि बलिया बागी ह. इ बात रखत समे आजादी के लड़ाई में कुल्हि देश से पहिले ए जिला के आजाद होखे के कहानी कहल जाला. लोग वो लड़ाई के नेता चित्तू पांड़े के नाम आजुओ लेला. ओघरी एगो गीति खूब गावल गइल. ओकरा को आजुवो सुनल जा सकेला-
अंगरेजवन के दिहले भगाइ हो हमार चितू बाबा
जवन फिरंगिया के सुरुज ना डूबे
अरे बलिया में दिहले डुबाई हो हमार चितू बाबा.
बागी बलिया के कहानी उनइस सौ सैंतालिसे में ना, ओकरा बहुत पहिले अठारह सौ सतावनों में अमर बा. मंगल पांड़े के नाम के नइखे जानत. इनकरा बिन आजादी के लड़ाई के कहानी कहां पूरा होई. भोजपुरी में एगो उनकरो पर बड़ा मशहूर गीति बा-
मंगल बाबा रहले देश के दिवनवा रे ना,
मारि दिहले अंगरेजन के जनवा रे ना.
बैरकपुर कइले विदरोहवा रे ना,
भारत माता गावते गीतिया रे ना,
चढ़ि गइले फांसी के ऊपरवा रे ना.
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अबो बलिया के बागी होखे के इ कहानी दोहरावल जाला. इसकूल से लेके आजु तक इ कहानी लोगन के यादि बा, लेकिन हमनी के जवान होत होत एगो अउरी बात भइल कि बलिया फेरू से इतिहास बना देहलसि. उ काम कइले एहिजा के माटी में पैदा भइले चंद्रशेखर. अब चंद्रशेखर के परिचय दिहला के जरूरत त बा ना. के नइखे जानत कि ऊ देस के प्रधानमंत्री रहले. जवन बतावे का बा उ इबा कि चंद्रशेखरो कम बागी ना रहले. इ कहानी समझे खातिर हमनी के इंदिरा गांधी जी के जमाना में जाय के पड़ी.आजु के पीढ़ी में बहुत कम लोग जानत होई कि सोशलिस्ट नेता चंद्रशेखर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी अउर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से होइके कांग्रेस में गइल रहले.
ओघरी ऊ कांग्रेस के समाजवादी विचारधारा से प्रभावित भइल रहले. बलिया के बागी माटी के बात इ बा कि कांग्रेस में रहि के भी चंद्रशेखर कइ हाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध में खड़ा हो गइले. पार्टी में चंद्रशेखर के संगे रामधन, कृष्णकांत और मोहन धारिया अइसन नेता तब युवा तुर्क के नाम से पहचानल गइले. युवा तुर्क चंद्रशेखर त उनइस सौ एकहतर में इंदिरा गांधी के इच्छा ना होखला के बावजूद कांग्रेस कार्यसमिति के चुनाव में लड़ले अउर जीति गइले. आपातकाल में चंद्रशेखर अइसन नेता रहले, जेकरा कांग्रेस में होते हुए जेल जाये के परल.
राजनीति के कहानी लांबा हो जाई. एहिजा बलिया के माटी के बात होखता. चंद्रशेखर जवना नेता लोग से सीखि के बड़ नेता भइले, ओहिमें आचार्य नरेंद्र देव, जेबी कृपलानी अउर जयप्रकाश नारायण के नाम भी लीहल जाला. जयप्रकाश नारायण जिनकर नाम जेपी भी कहल जाला, ऊहो त बलिये के रहले. माटी के ई असर कि उनइस सौ बयालीस में गिरफतार भइले त जेल के देवाल फानि के भागि गइले. बाहारा निकलि के जेपी अंगरेजन के खिलाफ काम करत रहले. बहुत साल बाद जब इंदिरा गांधी के सरकार बनल तो उनकरा तानाशाही के खिलाफ आवाज उठावे वाला लोगन के नेता बन ले आ दुसरका आजादी के नायक कहवले.
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राजनीति के बात लांबा हो जाला. खाली बलिया के माटी के बात कइल जाउ, तो इ धरती खुद में क्रांतिकारी रहल बा अऊर क्रांतिकारी लोगन के समर्थन कइले बा. तबे त एह धरती पर सेनानी कुंवर सिंह के भी स्वागत भइल रहे. चरचा के आखीर में बतावल जरूरी बा कि बलिया के लोग ‘बलियाटिक’ काहें कहाइल. उनइस सौ बयालीस के आंदोलन में ओइजा के अफसर जवन रिपोट भेजले रहले सनि, वोमे बलिया के लोग के पैट्रियाटिक बतावल गइल रहे. इ पैट्रियाटिक ही धीरे-धीरे बलियाटिक हो गईल.
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