(ममता त्रिपाठी)
2022 के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने मायावती की पार्टी को झकझोर के रख दिया है. बहुजन समाज पार्टी का ये आजतक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा है. ऐसे नतीजों के बाद से मायावती काफी सक्रिय हो गई हैं और उन्होंने पूरे संगठन को ही भंग करके नए सिरे से उसे खड़ा करने में जुट गईं हैं. दलितों की राजनीति करने वाली मायावती को लगता है कि अन्य जातियों को साथ लिए बिना उत्तर प्रदेश में राजनीति करना मुश्किल है. जातियों की सोशल इंजीनियरिंग का स्वाद वो 2007 में भी चख चुकी हैं जब वो 206 सीटों के साथ बहुमत में आकर मुख्यमंत्री बनी थीं. इसलिए 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले मायावती नए सिरे से जातियों की सोशल इंजीनियरिंग करने में जुट गई हैं.
आपको बता दें कि अभी तक बसपा हर विधानसभा में एक अध्यक्ष नियुक्त करती थी और आमतौर पर ये जिम्मेदारी किसी दलित नेता को मिलती थी मगर अब बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसे बदलते हुए इस पद पर चार नेता नियुक्त करने की बात कही है. ये चार नेता अलग अलग जातियों के होगें. हार की समीक्षा बैठक के दौरान मायावती ने पार्टी के नेताओं से कहा है कि 4 महत्वपूर्ण समूह बनाए जाएगे, दलित, ओबीसी, मुस्लिम और सवर्णों का.
अपने समुदाय को जोड़ने के लिए चार नेता
हर विधानसभा में इन 4 नेताओं को जिम्मेदारी दी जाएगी जो कि अपने समुदाय को पार्टी से जोड़ने का काम करेंगे. विधानसभा के लेवल पर इस तरह के काम से पार्टी मजबूत होगी और इसका जनाधार बढ़ेगा. गौरतलब है कि इस बार विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को सिर्फ 12.88 प्रतिशत वोट मिले हैं और महज एक सीट ही जीत सकी है जबकि पार्टी ने 403 सीटों पर चुनाव लड़ा था. बसपा सु्प्रीमों का खुद का मानना था कि जाटव बिरादरी के अलावा किसी अन्य बिरादरी ने उन्हे वोट नहीं किया जिसकी वजह से उन्हे करारी हार का सामना करना पड़ा.
भाईचारा कमेटी की शुरुआत
बसपा के नेता अनीस मंसूरी का कहना है कि अब पार्टी का पूरा फोकस 2024 का लोकसभा चुनाव है, उसके लिए प्लानिंग तेज कर दी गई है. बहन जी ने 18 जोनल कोऑर्डिनेटर को हटा दिया है और तीन नए समन्वयक नियुक्त किए हैं जिनमें दो दलित और एक मुस्लिम है. पार्टी का मानना है कि नुक्कड़ सभाओं और रैलियों से ज्यादा जोर डोर टू डोर और व्यक्तिगत प्रचार पर रहेगा. तीनों समन्वयकों की रिपोर्ट के आधार पर विधानसभावार नेताओं कि नियुक्ति की जाएगी. पार्टी एक बार फिर से भाईचारा कमेटी की शुरुआत करने जा रही है.
मुस्लिम ध्रुवीकरण हार के लिए जिम्मेदार
आपको बता दें कि मायावती ने अपनी हार की वजह मुस्लिमों का ध्रुवीकरण बताया है, उनका मानना है कि मुसलमान वोटों के साथ अगर बसपा का बेस वोट मिल जाता तो सिर्फ बसपा ही भाजपा को हरा सकती थी. सपा के लोगों ने माहौल बनाकर हमारे वोटरों को बरगला दिया जिसके चलते जाटवों के साथ ही अन्य दलित उपजातियों ने भी भाजपा को वोट दे दिया. ऐसा माना जाता है कि यूपी में कुल 21 प्रतिशत दलित हैं और जिसमें जाटव वोट 13 प्रतिशत है. मायावती जाटव समाज से ही आती हैं.
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