बुलंदशहर हिंसा: दो साल बाद भी अनसुलझे हैं कई पहलु, मुख्य आरोपी ने लिख दी किताब

बुलंदशहर हिंसा के मुख्य आरोपी शिखर अग्रवाल की किताब का कवर पेज
Two Years of Bulandshahr Violence: दो वर्ष पहले भड़की हिंसा के बाद बुलंदशहर जिला प्रशासन और पुलिस ने एफआईआर तो दर्ज की और कार्रवाई भी हुई. लेकिन आज दो वर्ष बाद भी कुछ अनसुलझे पहलू है.
- News18Hindi
- Last Updated: December 3, 2020, 12:33 PM IST
बुलंदशहर. 3 दिसंबर की तारीख बुलंदशहर (Bulandshahr) पर लगे कलंक का दिन है. आज से दो वर्ष पहले 3 दिसम्बर 2018 में बुलंदशहर जिले के स्याना कोतवाली के चिंगरावटी चौकी पर खूनी संघर्ष हुआ था, जिसमें एक पुलिस (Police) इंस्पेक्टर सहित दो लोगों की दिन दहाड़े हत्या कर दी गयी थी. जिसके बाद दंगे में शहीद इंस्पेक्टर सुबोध कुमार से लुटे हुए सरकारी मोबाइल और सरकारी पिस्टल आज तक बुलंदशहर जनपद की पुलिस बरामद नही कर पाई है. लेकिन इस बीच मुख्य आरोपी ने एक किताब लिखकर खुद को निर्दोष बताया है.
दो साल पहले भड़की थी हिंसा
दो वर्ष पहले भड़की हिंसा के बाद बुलंदशहर जिला प्रशासन और पुलिस ने एफआईआर तो दर्ज की और कार्रवाई भी हुई. लेकिन आज दो वर्ष बाद भी कुछ अनसुलझे पहलू है. बता दें कि 3 दिसंबर 2018 को हुए दंगे में 27 नामजद और 50 से 60 अज्ञात लोगों के विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत हुआ था. मुकदमे में 21 धारा लगाई गई थी. मामला मीडिया की सुर्खियां में रहा था. भारत तो भारत विदेश की मीडिया भी मामले को कवर कर रही थी. इस मुकदमे में 44 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. जिसमें 41 लोगों की जमानत हाइकोर्ट इलाहाबाद ने मंजूर कर दी थी और 3 आरोपी अभी भी जेल में बंद है. इस दंगे ने सैकड़ों लोगों की जिंदगी में तूफान ला दिया था. तत्कालीन सीओ, एसपी सिटी, एसएसपी, और डीएम तक पर गाज गिरी थी.
मुख्य आरोपी ने लिख दी पूरी किताबउधर दंगे के मुख्य आरोपी बनाए गए शिखर अग्रवाल इस पूरी घटना को इतिहास में दर्ज करने के लिए एक किताब भी लिख चुके हैं. जिसका कवर पेज प्रकाशित कर किताब का नाम "मेरा अपराध" रखा गया है. इस हिंसा ने पुलिस की भर्ती देख रहे युवाओं को उनके रास्ते से भटका दिया. ये हिंसा बुलंदशहर की शांत बहने वाली हवा में ज़हर घोल गई. जिस वक्त ये हिंसा हुई उस समां बुलंदशहर में तब्लीगी इस्तिमा चल रहा था, जिसमें लाखों की तादाद में लोग आए हुए थे. अगर वक़्त रहते हिंसा पर काबू नही किया जाता तो ऐसी स्थति हो जाती जिसकी कल्पना भी नही की जा सकती थी. पुलिस ने नामजद 27 लोगों में से करीब 5 को विवेचना में बाहर कर दिया. बाकी अज्ञात में लोगों को जेल भेज दिया.
आज भी है लोगों में खौफ
लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि दो साल बाद आज भी इंस्पेक्टर से लूटी हुई पिस्टल बरामद नहीं हो सकी है. न ही पुलिस का सरकारी फोन बरामद हुआ है. इस हिंसा में प्रभावित हुए गांव चिंगरावठी, महाव, हरवानपुर, खाद मोहननगर, बरौली, वानी कटिरि, और नगर स्याना शामिल हैं. इन गांव में जब भी रात को पुलिस की गाड़ी गुजरती है तो आज भी लोगों का दिल दहल जाता है. शिखर अग्रवाल का कहना है कि वो मेडिकल में डॉक्टर की पढ़ाई कर रहे थे. उस वक़्त वो भाजयुमो के नगर अध्य्क्ष स्याना हुआ करते थे. शिखर ने बताया कि पुलिस ने निर्दोष लोगों को इस मुकदमे में जेल भेज दिया. शिखर अपनी पुस्तक के माध्यम से इस हिंसा से सम्बंधित काफी रहस्यों का खुलासा करंगे. किताब 4 जनवरी से 12 जनवरी के बीच विश्व पुस्तक मेले वाले दिनों में प्रकाशित की जाएगी.
दो साल पहले भड़की थी हिंसा
दो वर्ष पहले भड़की हिंसा के बाद बुलंदशहर जिला प्रशासन और पुलिस ने एफआईआर तो दर्ज की और कार्रवाई भी हुई. लेकिन आज दो वर्ष बाद भी कुछ अनसुलझे पहलू है. बता दें कि 3 दिसंबर 2018 को हुए दंगे में 27 नामजद और 50 से 60 अज्ञात लोगों के विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत हुआ था. मुकदमे में 21 धारा लगाई गई थी. मामला मीडिया की सुर्खियां में रहा था. भारत तो भारत विदेश की मीडिया भी मामले को कवर कर रही थी. इस मुकदमे में 44 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. जिसमें 41 लोगों की जमानत हाइकोर्ट इलाहाबाद ने मंजूर कर दी थी और 3 आरोपी अभी भी जेल में बंद है. इस दंगे ने सैकड़ों लोगों की जिंदगी में तूफान ला दिया था. तत्कालीन सीओ, एसपी सिटी, एसएसपी, और डीएम तक पर गाज गिरी थी.
मुख्य आरोपी ने लिख दी पूरी किताबउधर दंगे के मुख्य आरोपी बनाए गए शिखर अग्रवाल इस पूरी घटना को इतिहास में दर्ज करने के लिए एक किताब भी लिख चुके हैं. जिसका कवर पेज प्रकाशित कर किताब का नाम "मेरा अपराध" रखा गया है. इस हिंसा ने पुलिस की भर्ती देख रहे युवाओं को उनके रास्ते से भटका दिया. ये हिंसा बुलंदशहर की शांत बहने वाली हवा में ज़हर घोल गई. जिस वक्त ये हिंसा हुई उस समां बुलंदशहर में तब्लीगी इस्तिमा चल रहा था, जिसमें लाखों की तादाद में लोग आए हुए थे. अगर वक़्त रहते हिंसा पर काबू नही किया जाता तो ऐसी स्थति हो जाती जिसकी कल्पना भी नही की जा सकती थी. पुलिस ने नामजद 27 लोगों में से करीब 5 को विवेचना में बाहर कर दिया. बाकी अज्ञात में लोगों को जेल भेज दिया.
आज भी है लोगों में खौफ
लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि दो साल बाद आज भी इंस्पेक्टर से लूटी हुई पिस्टल बरामद नहीं हो सकी है. न ही पुलिस का सरकारी फोन बरामद हुआ है. इस हिंसा में प्रभावित हुए गांव चिंगरावठी, महाव, हरवानपुर, खाद मोहननगर, बरौली, वानी कटिरि, और नगर स्याना शामिल हैं. इन गांव में जब भी रात को पुलिस की गाड़ी गुजरती है तो आज भी लोगों का दिल दहल जाता है. शिखर अग्रवाल का कहना है कि वो मेडिकल में डॉक्टर की पढ़ाई कर रहे थे. उस वक़्त वो भाजयुमो के नगर अध्य्क्ष स्याना हुआ करते थे. शिखर ने बताया कि पुलिस ने निर्दोष लोगों को इस मुकदमे में जेल भेज दिया. शिखर अपनी पुस्तक के माध्यम से इस हिंसा से सम्बंधित काफी रहस्यों का खुलासा करंगे. किताब 4 जनवरी से 12 जनवरी के बीच विश्व पुस्तक मेले वाले दिनों में प्रकाशित की जाएगी.