बुलंदशहर. शिकारपुर विधानसभा सीट कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी. 1974 तक यहां से कांग्रेस उम्मीदवार ही जीतते रहे. आपातकाल के बाद स्थितियां बदलनी शुरू हुईं. 1977 में उत्तर भारत में इंदिरा गांधी के खिलाफ चली हवा का असर यहां भी दिखाई दिया और यह सीट जनता पार्टी के हिस्से चली गई. हालांकि 1980 में फिर से कांग्रेस की वापसी हुई, लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1985 में हुए चुनाव में यहां के मतदाताओं पर सहानुभूति का असर नहीं दिखा. लोकदल के त्रिलोक चंद से कांग्रेस के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा. वीपी सिंह की लहर में 1989 सीट जनता दल के पास चली गई. राम लहर में 1991 भाजपा के हिस्से आई इस सीट पर 16 साल तक भाजपा का कब्जा रहा. वर्तमान में भाजपा के अनिल शर्मा यहां से विधायक हैं.
शिकारपुर विधानसभा सीट पर सबसे पहले 1957 में चुनाव हुआ था. 1967 से लेकर 1973 तक इस सीट का अस्तित्व नहीं रहा. 2008 तक यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रही. परिसीमन के बाद सामान्य के खाते में चली गई. कुल 3.12 लाख मतदाताओं वाली सीट पर सबसे अधिक अनुसूचित जाति के ही वोटर हैं. इनकी संख्या करीब 62 हजार है. ब्राह्मण 58 हजार, मुस्लिम वोटर करीब 50 हजार और क्षत्रिय 45 हजार हैं. यहां जाट समाज के मतदाताओं की संख्या भी ठीक है. 49 हजार वोटरों के साथ निर्णायक साबित हो सकता है. माना जा रहा है कि कृषि कानूनों के खिलाफ चले किसान आंदोलन के बाद भाजपा से जाटों की नाराजगी है. रालोद और सपा के बीच गठबंधन के बाद यह सीट इस बार भाजपा के लिए चुनौती हो सकती है.
2012 में इस सीट पर सपा से गुड्डू पंडित के भाई मुकेश शर्मा जीते थे. उन्होंने बसपा के अनिल शर्मा को 8403 वोटों से हराया था. बाद में अनिल शर्मा भाजपा में शामिल हो गए. 2017 में भाजपा के टिकट से चुनाव लड़े और रामवीर उपाध्याय के भाई और बसपा उम्मीदवार मुकुल उपाध्याय को 50 हजार से अधिक वोटों से हराया.
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