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1857 में मेरठ से नहीं, बल्कि 15 साल पहले इस जिले से धधकी थी आजादी की पहली चिंगारी

माना जाता है कि 10 मई, 1857 को मेरठ से आजादी के पहले आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जो बाद में पूरे देश में फैल गई.  (प्रतीकात्मक तस्वीर)

माना जाता है कि 10 मई, 1857 को मेरठ से आजादी के पहले आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जो बाद में पूरे देश में फैल गई. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

75th Amrit Mahotsav : मेरठ से लगभग 15 साल पहले बुंदेलखंड के चित्रकूट जिले में स्वाधीनता की पहली चिंगारी धधकी थी. स्वतंत ...अधिक पढ़ें

चित्रकूट. देश को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने के लिए प्रारंभ हुआ स्वाधीनता संग्राम आंदोलन 1857 से माना जाता है, लेकिन यह हकीकत नहीं है. बल्कि इसके भी लगभग 15 साल पहले बुंदेलखंड के चित्रकूट जिले में स्वतंत्रता के दीवानों ने पवित्र मंदाकिनी नदी के किनारे अंग्रेजों द्वारा गोकशी किए जाने से नाराज होकर उन्हें यहां से खदेड़ने और सबक सिखाने के लिए ठान लिया था. इसके लिए हिंदू-मुस्लिम सभी लोगों ने एकजुट होकर यह तय किया कि चित्रकूट की मऊ तहसील जो अंग्रेजों के बैठने का मुख्य स्थान हुआ करता था. सब लोग वहीं पहुंचकर एक पंचायत लगाएंगे और पंचायत में गोकशी के लिए इन्हें जिम्मेदार ठहराते हुए सजा के रूप में पेड़ में फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा.

6 जून 1842 को बड़ी संख्या में लोग एकत्र होकर मऊ पहुंचे और वहां पर छह अंग्रेज अफसरों को बंधक बना लिया इसके बाद मुकदमा उनके खिलाफ मुकदमा चलाकर फांसी पर चढ़ा दिया । चित्रकूट में हुई इस घटना का व्यापक असर हुआ और पूरे बुंदेलखंड में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजो के छक्के छुड़ा दिए जिसके फलस्वरूप लगभग 3 सप्ताह तक बुंदेलखंड आजाद रहा. चित्रकूट में अंग्रेजों को फांसी देने की घटना का उल्लेख तत्कालीन बांदा जिले के गजेटियर में भी मिलता है.

गोरों को फांसी देने से आक्रोश फैलता गया

चित्रकूट से देश को आजाद कराने की शुरु हुई. इस मुहिम में लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया, अंग्रेज अफसरों को फांसी पर लटका देने से आग बबूला अंग्रेजों ने बुंदेलखंड में आक्रमण कर दिया. चित्रकूट के मऊ तहसील के कई क्रांतिकारियों को खजाना लूटने के आरोप में उन्हें मसीना भाग में फांसी पर लटका दिया गया, जिससे लोगों मे काफी आक्रोश अंग्रेजों के खिलाफ हो गया. गोरों को भगाने को लेकर क्रांति की अग्नि और तेज धधक उठी, लेकिन अंग्रेजों की यातना का यह दौर लगातार जारी रहा.

जिस जगह गोरों को फांसी दी गई, वहीं हिंदुस्तानियों को फंदे पर लटकाया

मऊ में जिस जगह पर अंग्रेजों को फांसी पर चढ़ाया गया था. उसी स्थान पर गोरों ने स्वतंत्रता संग्राम शामिल में कई लोगों को फांसी पर चढ़ा कर बदला लेते रहे. आज चित्रकूट के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उस मंजर को याद कर सिहर उठते हैं. बुंदेलखंड में अब मात्र तीन स्वतंत्रता सेनानी बचे है, जिनमें से चित्रकूट के बीपी शुक्ला इनके अनुसार अंग्रेजों का रवैया इतना क्रूर था कि लोग उनके नाम से ही सहम जाते थे.

Tags: 1857 Indian Mutiny, 75th Independence Day, Chitrakoot Jail, Chitrakoot News

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