देवरिया. बरहज विधानसभा सीट पर 2017 के चुनाव में 26 साल बाद भाजपा जीती थी. इससे पहले 1991 में यह सीट भाजपा के खाते में आई थी. तब 1980 में सलेमपुर में पहली बार कमल खिलाने वाले दुर्गा प्रसाद मिश्र ने बरहज सीट भी पहली बार भाजपा की झोली में डाली थी. 1993 में दुर्गा प्रसाद सपा के स्वामी नाथ से 11 हजार वोटों से हार गए थे. 1996 में फिर हारे लेकिन अंतर मात्र 447 वोटों का था. 2002 में भाजपा से टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय ही मैदान में कूद पड़े और बसपा के राम प्रसाद जायसवाल को तीन हजार से अधिक वोटों से हराकर विधानसभा पहुंचे.
इस सीट पर पहला चुनाव 1967 में हुआ था. तब संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी जीती थी. अब तक यहां से तीन बार कांग्रेस, दो-दो बार भाजपा, बसपा और सपा जीत चुकी हैं. दो बार निर्दलीयों के पास भी यह सीट रही है. 90 के दशक से इस सीट पर न तो कोई पार्टी लगातार दो बार जीत पाई और न ही कोई प्रत्याशी. 1969 और 1974 के चुनाव में लगातार दो बार कांग्रेस जीती थी. जबकि 1977 और 1980 के चुनाव में मोहन सिंह लगातार दो बार विधायक बने थे. पहली बार जनता पार्टी से जीते थे, दूसरी बार जनता पार्टी सेकुलर से.
2017 का परिणाम
भाजपा उम्मीदवार सुरेश तिवारी ने बसपा के मुरली मनोहर जायसवाल को 11,716 वोटों के अंतर से हराया था. सुरेश तिवारी को 61,996 जबकि मुरली मनोहर को 50,280 वोट मिले थे.
जातीय समीकरण
लगभग तीन लाख मतदाताओं वाली बरहज विधानसभा सीट पर दलित वोटर करीब 42 हजार हैं. यादव 41 हजार, ब्राह्मण 40 हजार, वैश्य 32 हजार और क्षत्रिय वोटर करीब 30 हजार हैं. देखना रोचक होगा कि इस बार के विधानसभा चुनाव में किस वर्ग के वोटर किस दल पर ऐतबार जताते हैं.
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