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एटा लोकसभा सीट: यादवलैंड में इस बार बीजेपी और सपा-बसपा गठबंधन में कांटे की लड़ाई

फाइल फोटो

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Loksabha election 2019: हमेशा से यादव लैंड के नाम से जाने जानी वाली एटा लोकसभा क्षेत्र अब यादव बाहुल्य नहीं रह गई है.

    उत्तर प्रदेश की एटा लोकसभा सीट को कभी समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता रहा. यादवलैंड के नाम से मशहूर इस सीट पर ये स्थिति तब थी, जब तक 2009 में इसका परिसीमन नहीं हुआ था. अब 2009 के बाद स्थित बदल चुकी है, परिसीमन के बाद एटा की कई विधानसभाएं बदल चुकी हैं.

    एटा की चार विधानसभाओं में जलेसर विधानसभा आगरा लोकसभा में चली गई. वहीं अलीगंज विधानसभा फर्रुखाबाद लोकसभा में. एटा की दो विधानसभाएं एटा सदर और मारहरा विधानसभा के साथ साथ कासगंज की तीनों विधानसभाएं अमांपुर, पटियाली और कासगंज सदर विधानसभाओं को मिलाकर पांच विधानसभाएं एटा लोकसभा में आ गयी. जिसके बाद जातिगत समीकरण भी बदल गये. हमेशा से यादव लैंड के नाम से जाने जानी वाली एटा लोकसभा क्षेत्र अब यादव बाहुल्य नहीं रह गयी है.

    2019 लोकसभा चुनावों की रणभूमि पूरी तरह सज गयी है और प्रत्याशी स्टार प्रचारकों के साथ-साथ खुद भी चुनाव प्रचार में जुट गये हैं. एटा लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी प्रत्याशी राजवीर सिंह उर्फ़ राजू भैय्या एक बार फिर चुनावी रणभूमि में हैं और उनके सामने सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी कुंवर देवेन्द्र सिंह यादव ताल ठोक रहे हैं. वहीं कांग्रेस सर्मथित पार्टी जन अधिकार पार्टी से सूरज सिंह शाक्य पूरे दमखम के साथ चुनावी रणभूमि में है तो शिवपाल सिंह यादव की नई नवेली पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से डॉ रश्मि यादव भी चुनाव मैदान में हैं.

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    तीसरे चरण में 23 अप्रैल को होने वाले एटा लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन द्वारा जातीय समीकरण साधने की पूरी कोशिश की गयी है. एटा लोकसभा के लिए करीब 16 लाख मतदाता 23 अप्रैल को अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. यादव यहां अच्छी संख्या में मतदाता हैं, लेकिन एटा लोकसभा क्षेत्र में अब एल-आर यानि लोधी और राजपूत मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. 2 लाख 30 हजार यादव मतदाताओं के विपरीत 2 लाख 60 हजार के आस-पास लोधी-राजपूत मतदाता हैं. साथ ही लोधी-राजपूत का सहयोगी शाक्य समुदाय भी 2 लाख के आस-पास है. ऐसे में ये मानसिकता गलत है कि एटा लोकसभा सीट यादव बाहुल्य है.



    जानकारों का मानना है कि यदि सपा यहां अकेले लड़ती तो निश्चित रूप से उसे पराजित होना था क्योंकि जातीय समीकरण संतुलन के आंकड़े उनके पक्ष में नहीं थे. हां, बसपा से गठबंधन के बाद सपा-बसपा संघर्ष की स्थित में है और बीजेपी को अच्छी टक्कर देगी.

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    वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण प्रभाकर राव कहते हैं कि पिछले चुनाव में कांग्रेस की नाकामियों की वजह से बीजेपी को बड़ी जीत हासिल हुई थी. इस बार शायद उतनी बड़ी जीत न हो. लेकिन एटा में अगर सपा अकेले लड़ती तो उसकी हार तय थी. क्योंकि जो जातिगत आंकड़े हैं, वह उसके पक्ष में नहीं हैं. बसपा से गठबंधन होने के बाद उसके पक्ष में मुस्लिम मतदाता भी हैं. लिहाजा वह अब न्ज्प को टक्कर देने की स्थिति में है.

    वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण प्रभाकर राव


    राव के मुताबिक बीजेपी का भी वोट बैंक इस सीट पर करीब साढ़े आठ लाख के आस-पास है. जिनमें लोधी-राजपूत 2 लाख 60 हजार, ब्राह्मण 90 हजार, वैश्य 90 हजार, शाक्य 2 लाख और अन्य एक लाख के आस-पास हैं. जबकि सपा-बसपा गठबंधन का वोट बैंक में डेढ़ लाख मुस्लिम मतदाता, 2 लाख 30 हजार यादव, 1 लाख 80 हजार जाटव मतदाता है व अन्य एक लाख मतदाता है. इस प्रकार अगर हम जातीय संतुलन को देखें तो करीब 8 लाख 50 हजार मतदाता बीजेपी के माने जाते हैं. करीब 6 लाख 50 हजार मतदाता सपा-बसपा गठबंधन व अन्य के पक्ष में हैं. साथ ही गठबंधन मुस्लिम मतदाताओं का बिखराव काफी हद तक रोकने की स्थिति में है और ये वोट एकमुश्त गठबंधन प्रत्याशी को मिल सकता है.

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    जानकारों का कहना है कि करीब 3 माह पूर्व बीजेपी की ऐसी स्थिति नहीं थी, लेकिन हाल ही में पाकिस्तान के खिलाफ की गई एयर स्ट्राइक पर विपक्षियों द्धारा किए गए सवाल ने मोदी का कद बढ़ा दिया है और विपक्षियों का कद कम कर दिया है. वहीं कांग्रेस का घोषणा पत्र जारी हुआ, जिसमें 370 को बनाए रखने के साथ ही देशद्रोह की धारा 124ए को हटाने की बात से बीजेपी को फायदा होगा.

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    Tags: BJP, BSP, Etah news, Etah S24p22, Samajwadi party, Uttar Pradesh Lok Sabha Constituencies Profile

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